"गीता 1:2": अवतरणों में अंतर
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'''प्रसंग-''' | '''प्रसंग-''' | ||
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< | [[धृतराष्ट्र]]<ref>धृतराष्ट्र [[पाण्डु]] के बड़े भाई थे। [[गाँधारी]] इनकी पत्नी थी और [[कौरव]] इनके पुत्र। पाण्डु के बाद [[हस्तिनापुर]] के राजा बने।</ref>के पूछने पर [[संजय]]<ref>संजय [[धृतराष्ट्र]] की राजसभा का सम्मानित सदस्य था। जाति से वह बुनकर था। वह विनम्र और धार्मिक स्वभाव का था और स्पष्टवादिता के लिए प्रसिद्ध था। वह राजा को समय-समय पर सलाह देता रहता था।</ref> कहते है- | ||
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'''संजय बोले-''' | '''संजय बोले-''' | ||
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उस समय राजा < | उस समय राजा [[दुर्योधन]]<ref>[[धृतराष्ट्र]]-[[गांधारी]] के सौ पुत्रों में सबसे बड़ा पुत्र दुर्योधन था। दुर्योधन [[गदा शस्त्र|गदा]] युद्ध में पारंगत था और [[श्रीकृष्ण]] के बड़े भाई [[बलराम]] का शिष्य था।</ref> ने व्यूह रचनायुक्त [[पांडव|पांडवों]] <ref>पांडव [[कुन्ती]] के पुत्र थे। इनके नाम [[युधिष्ठर]], [[भीम]], [[अर्जुन]], [[नकुल]] और [[सहदेव]] थे।</ref> की सेना को देखकर और [[द्रोणाचार्य]]<ref>द्रोणाचार्य [[कौरव]] और पांडवों के गुरु थे। कौरवों और पांडवों ने द्रोणाचार्य के आश्रम में ही अस्त्रों और शस्त्रों की शिक्षा पायी थी। [[अर्जुन]] द्रोणाचार्य के प्रिय शिष्य थे।</ref>के पास जाकर यह वचन कहा ।।2।। | ||
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तदा = उस समय; दुर्योंधन: = दुर्योधन ने; व्यूढम् = व्यूहरचनायुक्त; पाण्डवानीकम् = पाण्डवों की सेना को; | तदा = उस समय; दुर्योंधन: = दुर्योधन ने; व्यूढम् = व्यूहरचनायुक्त; पाण्डवानीकम् = पाण्डवों की सेना को; द्रष्टा= देखकर; तु = और; आचार्यम् = द्रोणाचार्य के; उपसंगम्य = पास जाकर (यह); अब्रवीत् = कहा; | ||
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05:02, 4 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण
गीता अध्याय-1 श्लोक-2 / Gita Chapter-1 Verse-2
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख |
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