श्रीभगवान् बोले-
हे पार्थ[2] ! अनन्य प्रेम से मुझ में आसक्त चित्त तथा अनन्य भाव से मेरे परायण होकर योग में लगा हुआ तू जिस प्रकार से सम्पूर्ण विभूति, बल, ऐश्वर्यादि गुणों से युक्त, सबके आत्मरूप मुझको संशयरहित जानेगा, उसको सुन ।।1।।
|
Sri Bhagavan said:
Arjuna, now listen how with the mind attached to me through exclusive love and practicing yoga with absolute dependence on me, you will know me the repository of all power, strength and glory and other attributes, the universal soul in entirety and without any shadow of doubt.
|