"कृष्ण बाललीला": अवतरणों में अंतर
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[[श्रीकृष्ण|भगवान श्रीकृष्ण]] जब पौगंड अवस्था<ref>1 वर्ष से लेकर 5 वर्ष</ref> में थे, तब तक उन्होंने गृह लीलाएँ कीं। जब वे मात्र छ: दिन के ही थे, तब चतुर्दशी के दिन [[पूतना वध|पूतना]] आई, जब भगवान तीन माह के हुए तो करवट उत्सव मनाया जा रहा था, तभी [[शकटासुर वध|शकटासुर]] आया, भगवान ने सकट भंजन करके उस राक्षस का उद्धार किया। इसी तरह बाल लीलाएँ, माखन चोरी लीला, ऊखल बंधन लीला, [[यमलार्जुन मोक्ष|यमलार्जुन का उद्धार]] आदि दिव्य लीलाएँ कीं। श्रीकृष्ण की प्रत्येक लीला दिव्य है और हर लीला का आध्यात्मिक पक्ष है। | [[श्रीकृष्ण|भगवान श्रीकृष्ण]] जब पौगंड अवस्था<ref>1 वर्ष से लेकर 5 वर्ष</ref> में थे, तब तक उन्होंने गृह लीलाएँ कीं। जब वे मात्र छ: दिन के ही थे, तब चतुर्दशी के दिन [[पूतना वध|पूतना]] आई, जब भगवान तीन माह के हुए तो करवट उत्सव मनाया जा रहा था, तभी [[शकटासुर वध|शकटासुर]] आया, भगवान ने सकट भंजन करके उस राक्षस का उद्धार किया। इसी तरह बाल लीलाएँ, माखन चोरी लीला, ऊखल बंधन लीला, [[यमलार्जुन मोक्ष|यमलार्जुन का उद्धार]] आदि दिव्य लीलाएँ कीं। श्रीकृष्ण की प्रत्येक लीला दिव्य है और हर लीला का आध्यात्मिक पक्ष है। | ||
[[कृष्ण|श्रीकृष्ण]] के व्यक्तित्व के अनेक पहलू हैं। वे माँ के सामने रूठने की लीलाएँ करने वाले बालकृष्ण हैं तो [[अर्जुन]] को '[[गीता]]' का ज्ञान देने वाले योगेश्वर कृष्ण। भगवान श्रीकृष्ण ने अपने बाल्यकाल में अनेकों लीलाएँ कीं, जैसे- | [[कृष्ण|श्रीकृष्ण]] के व्यक्तित्व के अनेक पहलू हैं। वे माँ के सामने रूठने की लीलाएँ करने वाले बालकृष्ण हैं तो [[अर्जुन]] को '[[गीता]]' का ज्ञान देने वाले योगेश्वर कृष्ण। भगवान श्रीकृष्ण ने अपने बाल्यकाल में अनेकों लीलाएँ कीं, जैसे- | ||
==पूतना वध== | ==पूतना वध== | ||
बन्दीगृह में शिशु के रोने की आवाज़ सुनकर पहरेदारों ने [[कंस|राजा कंस]] को [[देवकी]] के गर्भ से कन्या होने का समाचार दिया। कंस उसी क्षण अति व्याकुल होकर हाथ में नंगी तलवार लेकर बन्दीगृह की ओर दौड़ा। बन्दीगृह पहुँचते ही उसने तत्काल उस कन्या को देवकी के हाथ से छीन लिया। देवकी अति कातर होकर कंस के सामने गिड़गिड़ाने लगी- “हे भाई! तुमने मेरे | बन्दीगृह में शिशु के रोने की आवाज़ सुनकर पहरेदारों ने [[कंस|राजा कंस]] को [[देवकी]] के गर्भ से कन्या होने का समाचार दिया। कंस उसी क्षण अति व्याकुल होकर हाथ में नंगी तलवार लेकर बन्दीगृह की ओर दौड़ा। बन्दीगृह पहुँचते ही उसने तत्काल उस कन्या को देवकी के हाथ से छीन लिया। देवकी अति कातर होकर कंस के सामने गिड़गिड़ाने लगी- “हे भाई! तुमने मेरे छह बालकों का वध कर दिया है। इस बार तो कन्या का जन्म हुआ है। तुम्हारे काल की आकाशवाणी तो पुत्र के द्वारा होने की हुई थी। इस कन्या को मत मारो।” | ||
{{Main|पूतना वध}} | {{Main|पूतना वध}} | ||
==यमलार्जुन मोक्ष== | ==यमलार्जुन मोक्ष== | ||
[[यशोदा|यशोदा मैया]] द्वारा ऊखल से बाँध दिये जाने के बाद भगवान श्यामसुन्दर ने उन दोनों अर्जुन वृक्षों को मुक्ति देने की सोची, जो पहले यक्षराज कुबेर के पुत्र थे। इनके नाम थे- 'नलकूबर' और 'मणिग्रीव'। नलकूबर तथा मणिग्रीव के पास धन, सौंदर्य और ऐश्वर्य की पूर्णता थी। इनकी गिनती रुद्र भगवान के अनुचरों में थी, इससे इनका घमंड बढ़ गया था। | [[यशोदा|यशोदा मैया]] द्वारा ऊखल से बाँध दिये जाने के बाद भगवान श्यामसुन्दर ने उन दोनों अर्जुन वृक्षों को मुक्ति देने की सोची, जो पहले यक्षराज कुबेर के पुत्र थे। इनके नाम थे- 'नलकूबर' और 'मणिग्रीव'। नलकूबर तथा मणिग्रीव के पास धन, सौंदर्य और ऐश्वर्य की पूर्णता थी। इनकी गिनती रुद्र भगवान के अनुचरों में थी, इससे इनका घमंड बढ़ गया था। | ||
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==बकासुर वध== | ==बकासुर वध== | ||
[[मथुरा]] के राजा कंस ने अनेक प्रयास किए, जिससे [[श्रीकृष्ण]] का वध किया जा सके, किन्तु वह अपने प्रयत्नों में सफल नहीं हो पा रहा था। इन्हीं प्रयत्नों के अंतर्गत कंस के एक दैत्य ने श्रीकृष्ण को मारने के लिए एक बगुले का रूप धारण किया। बगुले का रूप धारण करने के ही कारण उसे 'बकासुर' कहा गया। | [[मथुरा]] के राजा कंस ने अनेक प्रयास किए, जिससे [[श्रीकृष्ण]] का वध किया जा सके, किन्तु वह अपने प्रयत्नों में सफल नहीं हो पा रहा था। इन्हीं प्रयत्नों के अंतर्गत कंस के एक दैत्य ने श्रीकृष्ण को मारने के लिए एक बगुले का रूप धारण किया। बगुले का रूप धारण करने के ही कारण उसे 'बकासुर' कहा गया। | ||
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==अघासुर वध== | ==अघासुर वध== | ||
मथुरा के राजा कंस के दैत्यों में अघासुर बड़ा भयानक था। वह वेश बदलने में दक्ष तो था ही, बड़ा शूरवीर और मायावी भी था। कंस ने कृष्ण को हानि पहुँचाने के लिए बकासुर के | मथुरा के राजा कंस के दैत्यों में अघासुर बड़ा भयानक था। वह वेश बदलने में दक्ष तो था ही, बड़ा शूरवीर और मायावी भी था। कंस ने कृष्ण को हानि पहुँचाने के लिए बकासुर के पश्चात् अघासुर को भेजा। | ||
दोपहर के पहले का समय था। गऊएँ चर रहीं थीं। ग्वाल-बाल इधर-उधर घूम रहे थे। बालकृष्ण चरती गायों को बड़े ध्यान से देख रहे थे। बालकृष्ण यह जानकर चकित हो उठे कि उनके ग्वाल बालों में कोई भी नहीं दिखाई पड़ रहा है। गऊएँ रह-रहकर हुंकार रही हैं। बालकृष्ण विस्मित होकर आगे बढ़े। वे ग्वाल-बालों को पुकार-पुकार कर उन्हें खोजने लगे, किंतु न तो उन्हें कोई उत्तर मिला, न ही कोई ग्वाल-बाल दिखाई पड़ा। कृष्ण चिंतित होकर सोचने लगे, आख़िर सब गए तो कहाँ गए? कोई उत्तर क्यों नहीं दे रहा है? | दोपहर के पहले का समय था। गऊएँ चर रहीं थीं। ग्वाल-बाल इधर-उधर घूम रहे थे। बालकृष्ण चरती गायों को बड़े ध्यान से देख रहे थे। बालकृष्ण यह जानकर चकित हो उठे कि उनके ग्वाल बालों में कोई भी नहीं दिखाई पड़ रहा है। गऊएँ रह-रहकर हुंकार रही हैं। बालकृष्ण विस्मित होकर आगे बढ़े। वे ग्वाल-बालों को पुकार-पुकार कर उन्हें खोजने लगे, किंतु न तो उन्हें कोई उत्तर मिला, न ही कोई ग्वाल-बाल दिखाई पड़ा। कृष्ण चिंतित होकर सोचने लगे, आख़िर सब गए तो कहाँ गए? कोई उत्तर क्यों नहीं दे रहा है? | ||
[[चित्र:Kaliya-Mardan-krishna.jpg|thumb|200px|left|[[कृष्ण]] द्वारा [[कालिय नाग]] दमन]] | |||
==कालिय दमन== | ==कालिय दमन== | ||
कालिय नाग कद्रू का पुत्र और पन्नग जाति का नागराज था। वह पहले रमण द्वीप में निवास करता था, किंतु पक्षीराज गरुड़ से शत्रुता हो जाने के कारण वह [[यमुना नदी]] में एक कुण्ड में आकर रहने लगा था। यमुना का यह कुण्ड गरुड़ के लिए अगम्य था, क्योंकि इसी स्थान पर एक दिन क्षुधातुर गरुड़ ने तपस्वी सौभरि के मना करने पर भी अपने अभीष्ट मत्स्य को बलपूर्वक पकड़कर खा डाला था, इसीलिए महर्षि सौभरि ने गरुड़ को शाप दिया था कि यदि गरुड़ फिर कभी इस कुण्ड में घुसकर मछलियों को खायेंगे तो उसी क्षण प्राणों से हाथ धो बैठेंगे। कालिय नाग यह बात जानता था, इसीलिए वह यमुना के उक्त कुण्ड में रहने आ गया था। | कालिय नाग कद्रू का पुत्र और पन्नग जाति का नागराज था। वह पहले रमण द्वीप में निवास करता था, किंतु पक्षीराज गरुड़ से शत्रुता हो जाने के कारण वह [[यमुना नदी]] में एक कुण्ड में आकर रहने लगा था। यमुना का यह कुण्ड गरुड़ के लिए अगम्य था, क्योंकि इसी स्थान पर एक दिन क्षुधातुर गरुड़ ने तपस्वी सौभरि के मना करने पर भी अपने अभीष्ट मत्स्य को बलपूर्वक पकड़कर खा डाला था, इसीलिए महर्षि सौभरि ने गरुड़ को शाप दिया था कि यदि गरुड़ फिर कभी इस कुण्ड में घुसकर मछलियों को खायेंगे तो उसी क्षण प्राणों से हाथ धो बैठेंगे। कालिय नाग यह बात जानता था, इसीलिए वह यमुना के उक्त कुण्ड में रहने आ गया था। | ||
==शकटासुर वध== | ==शकटासुर वध== | ||
एक दिन कृष्ण को निंद्रामग्न देखकर माता यशोदा उनको एक छकड़े के नीचे लिटा गयीं ताकि बाहर आंगन में हवा लगती रहे और छकड़े की छाया के कारण बालक का धूप से बचाव भी होता रहे। वह यमुना स्नान के लिये चली गयी। वहां उनका मन न लगा। वह तत्काल स्नान करके वापस आ गयी। जैसे ही वह वापिस आयी, देखा कि छकड़ा उलटा पड़ा हुआ है। उसका प्रत्येक भाग टूटा पड़ा है। पहिया अलग, जुआ अलग...वह घबराकर दौड़ी। | एक दिन कृष्ण को निंद्रामग्न देखकर माता यशोदा उनको एक छकड़े के नीचे लिटा गयीं ताकि बाहर आंगन में हवा लगती रहे और छकड़े की छाया के कारण बालक का धूप से बचाव भी होता रहे। वह यमुना स्नान के लिये चली गयी। वहां उनका मन न लगा। वह तत्काल स्नान करके वापस आ गयी। जैसे ही वह वापिस आयी, देखा कि छकड़ा उलटा पड़ा हुआ है। उसका प्रत्येक भाग टूटा पड़ा है। पहिया अलग, जुआ अलग...वह घबराकर दौड़ी। | ||
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==तृणावर्त उद्धार== | ==तृणावर्त उद्धार== | ||
[[चित्र:Krishna Leela(6).jpg|thumb|200|कृष्ण लीला]] | |||
'तृणावर्त' नामक दैत्य मथुरा के राजा कंस की प्रेरणा से [[गोकुल]] गया। उससे बवंडर का रूप धारण किया तथा श्रीकृष्ण को उड़ा ले चला। श्रीकृष्ण ने अत्यंत भारी रूप धारण कर लिया तथा दैत्य की गरदन दबाते रहे। अंत में वह निष्प्राण होकर कृष्ण सहित ब्रज में गिर पड़ा। | 'तृणावर्त' नामक दैत्य मथुरा के राजा कंस की प्रेरणा से [[गोकुल]] गया। उससे बवंडर का रूप धारण किया तथा श्रीकृष्ण को उड़ा ले चला। श्रीकृष्ण ने अत्यंत भारी रूप धारण कर लिया तथा दैत्य की गरदन दबाते रहे। अंत में वह निष्प्राण होकर कृष्ण सहित ब्रज में गिर पड़ा। | ||
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==वृषभासुर वध== | ==वृषभासुर वध== | ||
वृषभासुर एक असुर था, जिसे कृष्ण का वध करने के लिए मथुरा के राजा कंस द्वारा भेजा गया था। यह भयंकर साँड़ के रूप में कृष्ण का वध करने आया था। वृषभासुर को 'अरिष्टासुर' भी कहा गया है। | वृषभासुर एक असुर था, जिसे कृष्ण का वध करने के लिए मथुरा के राजा कंस द्वारा भेजा गया था। यह भयंकर साँड़ के रूप में कृष्ण का वध करने आया था। वृषभासुर को 'अरिष्टासुर' भी कहा गया है। | ||
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==धेनुकासुर वध== | ==धेनुकासुर वध== | ||
धेनुक अथवा धेनुकासुर महाभारतकालीन एक असुर था, जिसका वध बलराम ने अपनी बाल अवस्था में किया था। जब कृष्ण तथा बलराम अपने सखाओं के साथ ताड़ के वन में फलों को खाने गये, तब असुर धेनुकासुर ने गधे के रूप में उन पर हमला किया। बलराम ने उसके पैर पकड़कर और घुमाकर पेड़ पर पटक दिया, जिससे प्राण निकल गये। | धेनुक अथवा धेनुकासुर महाभारतकालीन एक असुर था, जिसका वध बलराम ने अपनी बाल अवस्था में किया था। जब कृष्ण तथा बलराम अपने सखाओं के साथ ताड़ के वन में फलों को खाने गये, तब असुर धेनुकासुर ने गधे के रूप में उन पर हमला किया। बलराम ने उसके पैर पकड़कर और घुमाकर पेड़ पर पटक दिया, जिससे प्राण निकल गये। | ||
{{Main|धेनुक वध}} | {{Main|धेनुक वध}} | ||
==कागासुर वध== | ==कागासुर वध== | ||
कागासुर 'सूरसागर' के अनुसार मथुरा के राजा कंस का सहायक एक असुर था, जिसने कृष्ण को मारने के लिए कौए का रूप धारण कर लिया था। | कागासुर 'सूरसागर' के अनुसार मथुरा के राजा कंस का सहायक एक असुर था, जिसने कृष्ण को मारने के लिए कौए का रूप धारण कर लिया था। |
10:08, 9 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण
कृष्ण बाललीला
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अन्य नाम | वासुदेव, मोहन, द्वारिकाधीश, केशव, गोपाल, नंदलाल, बाँके बिहारी, कन्हैया, गिरधारी, मुरारी, मुकुंद, गोविन्द, यदुनन्दन, रणछोड़ आदि |
अवतार | सोलह कला युक्त पूर्णावतार (विष्णु) |
वंश-गोत्र | वृष्णि वंश (चंद्रवंश) |
कुल | यदुकुल |
पिता | वसुदेव |
माता | देवकी |
पालक पिता | नंदबाबा |
पालक माता | यशोदा |
जन्म विवरण | भाद्रपद, कृष्ण पक्ष, अष्टमी |
समय-काल | महाभारत काल |
परिजन | रोहिणी (विमाता), बलराम (भाई), सुभद्रा (बहन), गद (भाई) |
गुरु | संदीपन, आंगिरस |
विवाह | रुक्मिणी, सत्यभामा, जांबवती, मित्रविंदा, भद्रा, सत्या, लक्ष्मणा, कालिंदी |
संतान | प्रद्युम्न, अनिरुद्ध, सांब |
विद्या पारंगत | सोलह कला, चक्र चलाना |
रचनाएँ | 'गीता' |
शासन-राज्य | द्वारिका |
संदर्भ ग्रंथ | 'महाभारत', 'भागवत', 'छान्दोग्य उपनिषद'। |
मृत्यु | पैर में तीर लगने से। |
संबंधित लेख | कृष्ण जन्म घटनाक्रम, कृष्ण बाललीला, गोवर्धन लीला, कृष्ण बलराम का मथुरा आगमन, कंस वध, कृष्ण और महाभारत, कृष्ण का अंतिम समय |
भगवान श्रीकृष्ण जब पौगंड अवस्था[1] में थे, तब तक उन्होंने गृह लीलाएँ कीं। जब वे मात्र छ: दिन के ही थे, तब चतुर्दशी के दिन पूतना आई, जब भगवान तीन माह के हुए तो करवट उत्सव मनाया जा रहा था, तभी शकटासुर आया, भगवान ने सकट भंजन करके उस राक्षस का उद्धार किया। इसी तरह बाल लीलाएँ, माखन चोरी लीला, ऊखल बंधन लीला, यमलार्जुन का उद्धार आदि दिव्य लीलाएँ कीं। श्रीकृष्ण की प्रत्येक लीला दिव्य है और हर लीला का आध्यात्मिक पक्ष है।
श्रीकृष्ण के व्यक्तित्व के अनेक पहलू हैं। वे माँ के सामने रूठने की लीलाएँ करने वाले बालकृष्ण हैं तो अर्जुन को 'गीता' का ज्ञान देने वाले योगेश्वर कृष्ण। भगवान श्रीकृष्ण ने अपने बाल्यकाल में अनेकों लीलाएँ कीं, जैसे-
पूतना वध
बन्दीगृह में शिशु के रोने की आवाज़ सुनकर पहरेदारों ने राजा कंस को देवकी के गर्भ से कन्या होने का समाचार दिया। कंस उसी क्षण अति व्याकुल होकर हाथ में नंगी तलवार लेकर बन्दीगृह की ओर दौड़ा। बन्दीगृह पहुँचते ही उसने तत्काल उस कन्या को देवकी के हाथ से छीन लिया। देवकी अति कातर होकर कंस के सामने गिड़गिड़ाने लगी- “हे भाई! तुमने मेरे छह बालकों का वध कर दिया है। इस बार तो कन्या का जन्म हुआ है। तुम्हारे काल की आकाशवाणी तो पुत्र के द्वारा होने की हुई थी। इस कन्या को मत मारो।”
यमलार्जुन मोक्ष
यशोदा मैया द्वारा ऊखल से बाँध दिये जाने के बाद भगवान श्यामसुन्दर ने उन दोनों अर्जुन वृक्षों को मुक्ति देने की सोची, जो पहले यक्षराज कुबेर के पुत्र थे। इनके नाम थे- 'नलकूबर' और 'मणिग्रीव'। नलकूबर तथा मणिग्रीव के पास धन, सौंदर्य और ऐश्वर्य की पूर्णता थी। इनकी गिनती रुद्र भगवान के अनुचरों में थी, इससे इनका घमंड बढ़ गया था।
बकासुर वध
मथुरा के राजा कंस ने अनेक प्रयास किए, जिससे श्रीकृष्ण का वध किया जा सके, किन्तु वह अपने प्रयत्नों में सफल नहीं हो पा रहा था। इन्हीं प्रयत्नों के अंतर्गत कंस के एक दैत्य ने श्रीकृष्ण को मारने के लिए एक बगुले का रूप धारण किया। बगुले का रूप धारण करने के ही कारण उसे 'बकासुर' कहा गया।
अघासुर वध
मथुरा के राजा कंस के दैत्यों में अघासुर बड़ा भयानक था। वह वेश बदलने में दक्ष तो था ही, बड़ा शूरवीर और मायावी भी था। कंस ने कृष्ण को हानि पहुँचाने के लिए बकासुर के पश्चात् अघासुर को भेजा।
दोपहर के पहले का समय था। गऊएँ चर रहीं थीं। ग्वाल-बाल इधर-उधर घूम रहे थे। बालकृष्ण चरती गायों को बड़े ध्यान से देख रहे थे। बालकृष्ण यह जानकर चकित हो उठे कि उनके ग्वाल बालों में कोई भी नहीं दिखाई पड़ रहा है। गऊएँ रह-रहकर हुंकार रही हैं। बालकृष्ण विस्मित होकर आगे बढ़े। वे ग्वाल-बालों को पुकार-पुकार कर उन्हें खोजने लगे, किंतु न तो उन्हें कोई उत्तर मिला, न ही कोई ग्वाल-बाल दिखाई पड़ा। कृष्ण चिंतित होकर सोचने लगे, आख़िर सब गए तो कहाँ गए? कोई उत्तर क्यों नहीं दे रहा है?
कालिय दमन
कालिय नाग कद्रू का पुत्र और पन्नग जाति का नागराज था। वह पहले रमण द्वीप में निवास करता था, किंतु पक्षीराज गरुड़ से शत्रुता हो जाने के कारण वह यमुना नदी में एक कुण्ड में आकर रहने लगा था। यमुना का यह कुण्ड गरुड़ के लिए अगम्य था, क्योंकि इसी स्थान पर एक दिन क्षुधातुर गरुड़ ने तपस्वी सौभरि के मना करने पर भी अपने अभीष्ट मत्स्य को बलपूर्वक पकड़कर खा डाला था, इसीलिए महर्षि सौभरि ने गरुड़ को शाप दिया था कि यदि गरुड़ फिर कभी इस कुण्ड में घुसकर मछलियों को खायेंगे तो उसी क्षण प्राणों से हाथ धो बैठेंगे। कालिय नाग यह बात जानता था, इसीलिए वह यमुना के उक्त कुण्ड में रहने आ गया था।
शकटासुर वध
एक दिन कृष्ण को निंद्रामग्न देखकर माता यशोदा उनको एक छकड़े के नीचे लिटा गयीं ताकि बाहर आंगन में हवा लगती रहे और छकड़े की छाया के कारण बालक का धूप से बचाव भी होता रहे। वह यमुना स्नान के लिये चली गयी। वहां उनका मन न लगा। वह तत्काल स्नान करके वापस आ गयी। जैसे ही वह वापिस आयी, देखा कि छकड़ा उलटा पड़ा हुआ है। उसका प्रत्येक भाग टूटा पड़ा है। पहिया अलग, जुआ अलग...वह घबराकर दौड़ी।
तृणावर्त उद्धार
'तृणावर्त' नामक दैत्य मथुरा के राजा कंस की प्रेरणा से गोकुल गया। उससे बवंडर का रूप धारण किया तथा श्रीकृष्ण को उड़ा ले चला। श्रीकृष्ण ने अत्यंत भारी रूप धारण कर लिया तथा दैत्य की गरदन दबाते रहे। अंत में वह निष्प्राण होकर कृष्ण सहित ब्रज में गिर पड़ा।
वृषभासुर वध
वृषभासुर एक असुर था, जिसे कृष्ण का वध करने के लिए मथुरा के राजा कंस द्वारा भेजा गया था। यह भयंकर साँड़ के रूप में कृष्ण का वध करने आया था। वृषभासुर को 'अरिष्टासुर' भी कहा गया है।
धेनुकासुर वध
धेनुक अथवा धेनुकासुर महाभारतकालीन एक असुर था, जिसका वध बलराम ने अपनी बाल अवस्था में किया था। जब कृष्ण तथा बलराम अपने सखाओं के साथ ताड़ के वन में फलों को खाने गये, तब असुर धेनुकासुर ने गधे के रूप में उन पर हमला किया। बलराम ने उसके पैर पकड़कर और घुमाकर पेड़ पर पटक दिया, जिससे प्राण निकल गये।
कागासुर वध
कागासुर 'सूरसागर' के अनुसार मथुरा के राजा कंस का सहायक एक असुर था, जिसने कृष्ण को मारने के लिए कौए का रूप धारण कर लिया था।
कृष्ण बाललीला |
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1 वर्ष से लेकर 5 वर्ष
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