"गीता 1:20-21": अवतरणों में अंतर

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हे राजन् ! इसके बाद कपिध्वज <balloon link="अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे। अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर मे जीतने वाला वो ही था। ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">
हे राजन् ! इसके बाद कपिध्वज [[अर्जुन]]<ref>[[महाभारत]] के मुख्य पात्र है। [[पाण्डु]] एवं [[कुन्ती]] के वह तीसरे पुत्र थे। अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वह [[द्रोणाचार्य]] का सबसे प्रिय शिष्य था। [[द्रौपदी]] को [[स्वयंवर]] में जीतने वाला भी वही था।</ref> ने मोर्चा बाँधकर डटे हुए [[धृतराष्ट्र]]<ref>धृतराष्ट्र [[पाण्डु]] के बड़े भाई थे। [[गाँधारी]] इनकी पत्नी थी और [[कौरव]] इनके पुत्र। वे पाण्डु के बाद [[हस्तिनापुर]] के राजा बने थे।</ref> सम्बन्धियों को देखकर, उस शस्त्र चलने की तैयारी के समय धनुष उठाकर [[श्रीकृष्ण]]<ref>'गीता' कृष्ण द्वारा [[अर्जुन]] को दिया गया उपदेश है। कृष्ण भगवान [[विष्णु]] के [[अवतार]] माने जाते हैं। कृष्ण की स्तुति लगभग सारे [[भारत]] में किसी न किसी रूप में की जाती है।</ref> महाराज से यह वचन कहा-हे अच्युत ! मेरे रथ को दोनों सेनाओं के बीच में खड़ा कीजिये ।।20-21।।
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धृतराष्ट्र</balloon> सम्बन्धियों को देखकर, उस शस्त्र चलने की तैयारी के समय धनुष उठाकर <balloon link="कृष्ण" title="गीता कृष्ण द्वारा अर्जुन को दिया गया उपदेश है। कृष्ण भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं। कृष्ण की स्तुति लगभग सारे भारत में किसी न किसी रूप में की जाती है।  
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श्रीकृष्ण</balloon> महाराज से यह वचन कहा-हे अच्युत ! मेरे रथ को दोनों सेनाओं के बीच में खड़ा कीजिये ।।20-21।।


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महीपते = हे राजन्; अथ =उसके उपरान्त; कपिध्वज: = कपिध्वज; पाण्डव: = अर्जुन ने; व्यवस्थितान् = खड़े हुए; धार्तराष्ट्रान् = धृतराष्ट्र पुत्रों को; दृष्टा = देखकर; तदा = उस; शस्त्रसंपाते = शस्त्र चलने की तैयारी के समय; धनु: = धनुष; उद्यम्य = उठाकर; हृषीकेशम् = हषीकेश श्रीकृष्ण महाराज से; इदम् = यह; वाक्यम् = वचन; आह = कहा; अच्युत = हे अच्युत; मे = मेरे; रथम् = रथ को; उभयौ: = दोनों; सेनयों: = सेनाओं के; मध्ये =बीचमें; स्थापय =खड़ा करिये;  
महीपते = हे राजन्; अथ =उसके उपरान्त; कपिध्वज: = कपिध्वज; पाण्डव: = अर्जुन ने; व्यवस्थितान् = खड़े हुए; धार्तराष्ट्रान् = धृतराष्ट्र पुत्रों को; द्रष्टा= देखकर; तदा = उस; शस्त्रसंपाते = शस्त्र चलने की तैयारी के समय; धनु: = धनुष; उद्यम्य = उठाकर; हृषीकेशम् = हषीकेश श्रीकृष्ण महाराज से; इदम् = यह; वाक्यम् = वचन; आह = कहा; अच्युत = हे अच्युत; मे = मेरे; रथम् = रथ को; उभयौ: = दोनों; सेनयों: = सेनाओं के; मध्ये =बीचमें; स्थापय =खड़ा करिये;  
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05:03, 4 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण

गीता अध्याय-1 श्लोक-20,21 / Gita Chapter-1 Verse-20,21

अथ व्यवस्थितान्दृष्ट्वा धार्तराष्ट्रान्कपिध्वज:।
प्रवृत्ते शस्त्रसम्पाते धनुरूद्यम्य पाण्डव: ।।20।।
ह्रषीकेशं तदा वाक्यमिदमाह महीपते ।
अर्जुन उवाच
सेनयोरूभयोर्मध्ये रथं स्थापय मेऽच्युत ।।21।।



हे राजन् ! इसके बाद कपिध्वज अर्जुन[1] ने मोर्चा बाँधकर डटे हुए धृतराष्ट्र[2] सम्बन्धियों को देखकर, उस शस्त्र चलने की तैयारी के समय धनुष उठाकर श्रीकृष्ण[3] महाराज से यह वचन कहा-हे अच्युत ! मेरे रथ को दोनों सेनाओं के बीच में खड़ा कीजिये ।।20-21।।

Now, O lord of the earth, seeing your sons arrayed against him, and when missiles were ready to be huled, Arjuna, son of Pandu, took up his blow and them addressed the following words to lord Krishna; place my chariot between the two armies.


महीपते = हे राजन्; अथ =उसके उपरान्त; कपिध्वज: = कपिध्वज; पाण्डव: = अर्जुन ने; व्यवस्थितान् = खड़े हुए; धार्तराष्ट्रान् = धृतराष्ट्र पुत्रों को; द्रष्टा= देखकर; तदा = उस; शस्त्रसंपाते = शस्त्र चलने की तैयारी के समय; धनु: = धनुष; उद्यम्य = उठाकर; हृषीकेशम् = हषीकेश श्रीकृष्ण महाराज से; इदम् = यह; वाक्यम् = वचन; आह = कहा; अच्युत = हे अच्युत; मे = मेरे; रथम् = रथ को; उभयौ: = दोनों; सेनयों: = सेनाओं के; मध्ये =बीचमें; स्थापय =खड़ा करिये;



अध्याय एक श्लोक संख्या
Verses- Chapter-1

1 | 2 | 3 | 4, 5, 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17, 18 | 19 | 20, 21 | 22 | 23 | 24, 25 | 26 | 27 | 28, 29 | 30 | 31 | 32 | 33, 34 | 35 | 36 | 37 | 38, 39 | 40 | 41 | 42 | 43 | 44 | 45 | 46 | 47

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे। अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वह द्रोणाचार्य का सबसे प्रिय शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर में जीतने वाला भी वही था।
  2. धृतराष्ट्र पाण्डु के बड़े भाई थे। गाँधारी इनकी पत्नी थी और कौरव इनके पुत्र। वे पाण्डु के बाद हस्तिनापुर के राजा बने थे।
  3. 'गीता' कृष्ण द्वारा अर्जुन को दिया गया उपदेश है। कृष्ण भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं। कृष्ण की स्तुति लगभग सारे भारत में किसी न किसी रूप में की जाती है।

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