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'''ण''' [[देवनागरी वर्णमाला]] में टवर्ग का पाँचवाँ [[व्यंजन (व्याकरण)|व्यंजन]] है। भाषाविज्ञान की दृष्टि से यह [[मूर्धन्य व्यंजन|मूर्धन्य]], घोष, अल्पप्राण तथा नासिक्य व्यंजन है। | |||
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* उक्त घंटा, कंठ आदि रूपों में 'ण्/ण्' के स्थान पर अनुस्वार जैसी बिंदी का प्रयोग केवल सुविधार्थ प्रचलित है और उसे अनुस्वार समझने की भूल नहीं करनी चाहिए। जिन शब्दों (कण्व, मृण्मय, पण्य, हिरण्य इत्यादि) में 'ण्' स्पष्ट बोला/सुना जाता है, वहाँ बिंदी का प्रयोग निषिद्ध है, 'ण्' ही लिखा जाना चाहिए। | |||
* 'ण' के पहले आकर उससे संयुक्त होने वाले (अर्थात व्यंजन-गुच्छ बनाने वाले) व्यंजन प्राय: ग्, ण्, र् और ष् ही हैं और संयुक्त रूप में इन्हें क्रमश: ग्ण, ण्ण, ष्ण (रुग्ण, अक्षुण्ण, कर्ण, कृष्ण) लिखा जाता है। | |||
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==ण अक्षर वाले शब्द== | ==ण अक्षर वाले शब्द== | ||
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06:52, 18 दिसम्बर 2016 का अवतरण
ण
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विवरण | ण देवनागरी वर्णमाला में टवर्ग का पाँचवाँ व्यंजन है। |
भाषाविज्ञान की दृष्टि से | यह मूर्धन्य, घोष, अल्पप्राण तथा नासिक्य व्यंजन है। |
व्याकरण | [ संस्कृत- नख्+ड् ] पुल्लिंग- शिव, बुद्ध, आभूषण, दान, ज्ञान, पीने का जल रखने का स्थान, जल-घर। विशेषण- गुणरहित। |
विशेष | संस्कृत से आए शब्दों का 'ण' हिंदी के तद्भव शब्दों में प्राय: 'न' बन जाता है। जैसे- रामायण > रामायन, कारण > कारन, मरण > मरन। अरबी, फारसी, अँग्रेज़ी इत्यादि विदेशी स्रोतों से आए हिंदी शब्दों में 'ण' नहीं होता। |
संबंधित लेख | ट, ड, ढ, ठ |
अन्य जानकारी | 'ण' के पहले आकर उससे संयुक्त होने वाले (अर्थात व्यंजन-गुच्छ बनाने वाले) व्यंजन प्राय: ग्, ण्, र् और ष् ही हैं और संयुक्त रूप में इन्हें क्रमश: ग्ण, ण्ण, ष्ण (रुग्ण, अक्षुण्ण, कर्ण, कृष्ण) लिखा जाता है। |
ण देवनागरी वर्णमाला में टवर्ग का पाँचवाँ व्यंजन है। भाषाविज्ञान की दृष्टि से यह मूर्धन्य, घोष, अल्पप्राण तथा नासिक्य व्यंजन है।
- विशेष-
- संस्कृत से आए शब्दों का 'ण' हिंदी के तद्भव शब्दों में प्राय: 'न' बन जाता है। जैसे- रामायण > रामायन, कारण > कारन, मरण > मरन। अरबी, फारसी, अँग्रेज़ी इत्यादि विदेशी स्रोतों से आए हिंदी शब्दों में 'ण' नहीं होता।
- 'ण्' के बाद आकर व्यंजन-गुच्छ बनाने वाले व्यंजन प्राय: ट, ठ, ड, ढ, ण, म, य और व ही है और संयुक्त रूप में उन्हें क्रमश: घण्टा (घंटा), कण्ठ (कंठ), अण्ड (अंड), षण्ढ (षंठ), अक्षुण्ण, मृण्मय, गण्य, कण्व के समान लिखा जाता है।
- उक्त घंटा, कंठ आदि रूपों में 'ण्/ण्' के स्थान पर अनुस्वार जैसी बिंदी का प्रयोग केवल सुविधार्थ प्रचलित है और उसे अनुस्वार समझने की भूल नहीं करनी चाहिए। जिन शब्दों (कण्व, मृण्मय, पण्य, हिरण्य इत्यादि) में 'ण्' स्पष्ट बोला/सुना जाता है, वहाँ बिंदी का प्रयोग निषिद्ध है, 'ण्' ही लिखा जाना चाहिए।
- 'ण' के पहले आकर उससे संयुक्त होने वाले (अर्थात व्यंजन-गुच्छ बनाने वाले) व्यंजन प्राय: ग्, ण्, र् और ष् ही हैं और संयुक्त रूप में इन्हें क्रमश: ग्ण, ण्ण, ष्ण (रुग्ण, अक्षुण्ण, कर्ण, कृष्ण) लिखा जाता है।
- र्ण् (र्+ण) विशेष ध्यान देने योग्य है, जो अनेक शब्दों में आता है। जैसे- उत्तीर्ण, कर्ण, पर्ण, वर्ण।
- 'र्', 'ष्' और 'ण' के संयुक्त रूप 'र्ष्ण' वाले कुछ तत्सम शब्द ही मिलते हैं - कार्ष्ण, वार्ष्णेय इत्यादि।
- हिंदी में 'ण' के संयुक्त रूप 'र्ष्ण' वाले कुछ तत्सम शब्द बहुत थोड़े हैं और वे 'प्राकृत' भाषा या राजस्थानी आदि से ही प्राप्त हैं। शब्दों के मध्य में 'ण' प्रचुरता से आता है। जैसे- गणना, वणिक, कण, हरण इत्यादि।
- शब्दों के अंत में 'स्वरयुक्त ण' ही प्रयुक्त होता, 'ण्' नहीं।
- [ संस्कृत- नख्+ड् ] पुल्लिंग- शिव, बुद्ध, आभूषण, दान, ज्ञान, पीने का जल रखने का स्थान, जल-घर। विशेषण- गुणरहित।[1]
ण अक्षर वाले शब्द
- उपकरण
- उच्चारण
- हरियाणा
- कल्याण
- ग्रामीण
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ पुस्तक- हिन्दी शब्द कोश खण्ड-1 | पृष्ठ संख्या- 1113
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