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* 'सँ', ‘साँ’ इत्यादि अनुनासिक रूपों में ‘चंद्रबिंदु’ के स्थान पर ‘बिंदु’ लगाने की रीति सुविधार्थ प्रयुक्त होती है जहाँ कोई मात्रा शिरोरेखा के ऊपर लगी होती है (सिँ- सिं, सीँ- सीं, सोँठ- सोंठ, सोँध- सोंध)।
* व्यंजन-गुच्छों में जब ‘स’ पहले आकर अन्य व्यंजनों से मिलता है, तब साधारणतया उसका रूप ‘स्‌’ होता है (स्कंद, स्तुति, स्नान, हास्य स्वर) परंतु ‘र’ से मिलने पर ‘स्र’ होता है। जैसे- स्रष्टा, सहस्र। तीन व्यंजनों का गुच्छ ‘स्त्र’ (स्‌ + त्‌ + र्‌) बहुत शब्दों में प्रयुक्त होता है जैसे- अस्त्र, शस्त्र, वस्त्र, स्त्री। ‘स्र’ तथा ‘स्त्र’ के अंतर में ध्यान देना आवश्यक है।
* व्यंजन-गुच्छों में, पहले आकर ‘स’ से मिलने वाले व्यंजन प्राय: अपनी खड़ी रेखा छोड़कर मिलते हैं। जैसे- बक्सा, शख़्त, वत्स, शम्य परंतु ‘र्’ शिरोरेखा के ऊपर स्थित होता है। जैसे- उर्स, पर्स, वर्स और ट्‌, ठ्‌, ड् तथा ढ् अपने हलंत रूप में ही मिलते हैं। जैसे- नोट्स, बर्ड्स।
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==स अक्षर वाले शब्द==
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* समय
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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10:59, 11 जनवरी 2017 के समय का अवतरण

विवरण देवनागरी वर्णमाला में ऊष्म वर्णों के वर्ग का तीसरा व्यंजन है।
भाषाविज्ञान की दृष्टि से यह वर्त्स्य, अघोष, संघर्षी है।
व्याकरण [ संस्कृत सो + ड ] पुल्लिंग- शिव, विष्णु, चंद्रमा, जीवात्मा, पवन, हवा, ज्ञान, चिंतन, दीप्ति, सर्प।
विशेष प्राय: ‘श’ को तालव्य श, ‘ष’ को ‘मूर्द्धन्य ष’ और ‘स’ को ‘दत्त्य स’ कहकर तीनों वर्णों में अंतर स्पष्ट करना सरल होता है।
संबंधित लेख , , , , , ,
अन्य जानकारी बोलने या लिखने में असावधानी से ‘स’ के स्थान पर ‘श’ या ‘श’ के स्थान पर ‘स’ के प्रयोग में कभी ‘तत्सम’ शब्द का ‘तद्भव’ में परिवर्तन हो जाता है। जैसे- शिर-सिर, दश-दस, कभी निरर्थक शब्द बन सकता है परंतु कभी-कभी भिन्न अर्थ वाला शब्द बन जाता है जैसे- सील-शील, शाल-साल।

देवनागरी वर्णमाला में ऊष्म वर्णों के वर्ग का तीसरा व्यंजन है। भाषाविज्ञान की दृष्टि से यह वर्त्स्य, अघोष, संघर्षी है।

विशेष-
  • 'सँ', ‘साँ’ इत्यादि अनुनासिक रूपों में ‘चंद्रबिंदु’ के स्थान पर ‘बिंदु’ लगाने की रीति सुविधार्थ प्रयुक्त होती है जहाँ कोई मात्रा शिरोरेखा के ऊपर लगी होती है (सिँ- सिं, सीँ- सीं, सोँठ- सोंठ, सोँध- सोंध)।
  • व्यंजन-गुच्छों में जब ‘स’ पहले आकर अन्य व्यंजनों से मिलता है, तब साधारणतया उसका रूप ‘स्‌’ होता है (स्कंद, स्तुति, स्नान, हास्य स्वर) परंतु ‘र’ से मिलने पर ‘स्र’ होता है। जैसे- स्रष्टा, सहस्र। तीन व्यंजनों का गुच्छ ‘स्त्र’ (स्‌ + त्‌ + र्‌) बहुत शब्दों में प्रयुक्त होता है जैसे- अस्त्र, शस्त्र, वस्त्र, स्त्री। ‘स्र’ तथा ‘स्त्र’ के अंतर में ध्यान देना आवश्यक है।
  • व्यंजन-गुच्छों में, पहले आकर ‘स’ से मिलने वाले व्यंजन प्राय: अपनी खड़ी रेखा छोड़कर मिलते हैं। जैसे- बक्सा, शख़्त, वत्स, शम्य परंतु ‘र्’ शिरोरेखा के ऊपर स्थित होता है। जैसे- उर्स, पर्स, वर्स और ट्‌, ठ्‌, ड् तथा ढ् अपने हलंत रूप में ही मिलते हैं। जैसे- नोट्स, बर्ड्स।
  • ‘स्’ का द्वित्व भी होता है- स्म (क़िस्सा, ग़ुस्स, रस्सा)।
  • बोलने या लिखने में असावधानी से ‘स’ के स्थान पर ‘श’ या ‘श’ के स्थान पर ‘स’ के प्रयोग में कभी ‘तत्सम’ शब्द का ‘तद्भव’ में परिवर्तन हो जाता है। जैसे- शिर-सिर, दश-दस, कभी निरर्थक शब्द बन सकता है परंतु कभी-कभी भिन्न अर्थ वाला शब्द बन जाता है जैसे- सील-शील, शाल-साल।
  • प्राय: ‘श’ को तालव्य श, ‘ष’ को ‘मूर्द्धन्य ष’ और ‘स’ को ‘दत्त्य स’ कहकर तीनों वर्णों में अंतर स्पष्ट करना सरल होता है।
  • [ संस्कृत सो + ड ] पुल्लिंग- शिव, विष्णु, चंद्रमा, जीवात्मा, पवन, हवा, ज्ञान, चिंतन, दीप्ति, सर्प।
  • तत्सम संज्ञा शब्दों के पहले जुड़कर अनेक सार्थक शब्द बनाने की क्षमता के कारण (जैसे- सपरिवार) ‘स’ अत्यंत व्यापक प्रयोग वाला उपसर्ग है।[1]

स की बारहखड़ी

सा सि सी सु सू से सै सो सौ सं सः

स अक्षर वाले शब्द


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पुस्तक- हिन्दी शब्द कोश खण्ड-2 | पृष्ठ संख्या- 2392

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