स्वच्छंद नीले गगन में उड़ रही है मुक्ताहंसिनी
किसी के गीत की उपमा बनी थी जो अभी तक
प्रगति-पथ पर चली वो ज्योति पथ पर बिछाती
स्वच्छंद नीले गगन में उड़ रही है मुक्ताहंसिनी
अवहेलना जिसकी युगों से हुई थी
किसी की काम की कामना अब तक बनी थी
नवरूप अब लेकर जगी वो प्रेम की अनुगामिनी
स्वच्छंद नीले गगन में उड़ रही है मुक्ताहंसिनी
जिसके रूप का वर्णन नहीं कोई कर सका
कवि क्या शेष-नारद आदि नहीं कोई गा सका
हटाकर काम की मूरत को वह मुक्त धारा बनी
स्वच्छंद नीले गगन में उड़ रही है मुक्ताहंसिनी
दिया मद तोड़ जो कटीले तरु खड़े थे
बदल दी दृष्टि जग की जो कभी एकत्व थे
किया निर्माण निज नीड़ को वो अभिलाषनी
स्वच्छंद नीले गगन में उड़ रही है मुक्ताहंसिनी