गयी भर हृदय कोई झंकार
कली ज्यो अस्फुट त्यों थे गात
नयन यूँ चंचल ज्यों द्युतिमान
तेज मुख पर उर्वशी सामान
देख पाते कुछ पल ये नैन
हुयी ओझल वो कर पद चाप
दिखाकर तिरछे अपने गात
हिला ज्यों मंद पवन में पात
अधर में यूँ मधुरिम मुस्कान
खिला ज्यों मुकुलों का मधुमास
पगो के नूपुर की रुनझुन
जलद से गिरे बूंद ज्यों धुन
खुले थे अनुपम केश कलाप
छायी हो ज्यों बदली आकाश
तरुण सुन्दरता-ज्यों जलजात
हुआ मन पल भर को अज्ञात
थे फैले तिछर्न नयन के जाल
गयी अविस्मित चितवन डाल
गूंथता ये मन सौरभ हार
कौन भर गयी हृदय झंकार
मेरे मानस का ये अंतरिछ
अभी सूना था कुछ पल पूर्व
एकाएक कौतूहल ये बोल
बोलने लगे जलद पट खोल
मेरे मन भावों का आकाश
उड़ा कैसे ये नही याख्यान
सहज भावो से वो सुकुमारि
हर लिया कैसे था अनजान