श
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श
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विवरण | श देवनागरी वर्णमाला में ऊष्म वर्णों के वर्ग का पहला व्यंजन है। |
भाषाविज्ञान की दृष्टि से | यह तालव्य, अघोष, संघर्षी तथा ईषद्विवृत है। |
व्याकरण | [ संस्कृत (धातु) शी + ड ] पुल्लिंग- हर्ष, आनंद, शस्त्रास्त्र, हथियार, शिव, महादेव, मंगल, कल्याण। |
संबंधित लेख | य, ल, व, र, ष, स, ह |
अन्य जानकारी | व्यंजन-गुच्छों में जब ‘श’ पहले आकर अन्य व्यंजनों से मिलता है, तब साधारणतया उसका रूप ‘श्’ होता है। जैसे- श्याम, विश्व, श्लोक परंतु ‘र’ से मिलने पर ‘श्र’ होता है। जैसे- श्री, विश्राम, श्रम। |
श देवनागरी वर्णमाला में ऊष्म वर्णों के वर्ग का पहला व्यंजन है। भाषाविज्ञान की दृष्टि से यह तालव्य, अघोष, संघर्षी तथा ईषद्विवृत है।
- विशेष-
- ‘श्’ में प्राय: ‘ऋ’ जुड़ने पर उसका रूप ‘श्रृ’ ‘शृ’ होता है।
- शँ, शाँ, इत्यादि अनुनासिक रूपों में ‘चंद्रबिंदु’ के स्थान पर ‘बिंदु’ लगाने की रीति सुविधार्थ प्रयुक्त होती है जहाँ कोई मात्रा शिरोरेखा के ऊपर लगी होती है (शिँ- शिं, शीँ- शीं, शेँ- शें इत्यादि)।
- व्यंजन-गुच्छों में जब ‘श’ पहले आकर अन्य व्यंजनों से मिलता है, तब साधारणतया उसका रूप ‘श्’ होता है (श्याम, विश्व, श्लोक) परंतु ‘र’ से मिलने पर ‘श्र’ होता है (श्री, विश्राम, श्रम)।
- पहले आकर ‘श’ से मिलने वाले व्यंजन प्राय: अपनी खड़ी रेखा छोड़कर मिलते हैं (नक़्शा, बख़्शना) परंतु ‘र्’ शिरोरेखा के ऊपर ‘रेफ’ के रूप में स्थित होता है (विमर्श, आदर्श)।
- भाषा वैज्ञानिक कारणों से बहुत बार ‘श’ को ‘स’ में परिवर्तन विविध बोलियों में हो जाता है। जैसे- शाक-साग, श्यामल-साँवला, श्रावण-सावन, देशी-देसी। कहीं-कहीं निरर्थक या भिन्न अर्थ वाला शब्द बन जाता है। जैसे- शर-सर, शाल-साल, शील- सील, शकल-सकल या ‘तत्सम’ शब्द ‘तद्भव’ रूप (शठ-सठ, उपदेश-उपदेस)। अत: वर्तनी में ‘श’ और ‘स’ के ठीक प्रयोग पर ध्यान देना चाहिये।
- [ संस्कृत (धातु) शी + ड ] पुल्लिंग- हर्ष, आनंद, शस्त्रास्त्र, हथियार, शिव, महादेव, मंगल, कल्याण।[1]
श की बारहखड़ी
श | शा | शि | शी | शु | शू | शे | शै | शो | शौ | शं | शः |
श अक्षर वाले शब्द
- शयनिका
- शहद
- शब्दकोश
- शरीर
- शरणार्थी
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ पुस्तक- हिन्दी शब्द कोश खण्ड-2 | पृष्ठ संख्या- 2325
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