यद्यपि लोभ से भ्रष्टचित्त हुए ये लोग कुल के नाश से उत्पन्न दोष को और मित्रों से विरोध करने में पाप को नहीं देखते, तो भी हे जनार्दन ! कुल के नाश से उत्पन्न दोष को जानने वाले हम लोगों को इस पाप से हटने के लिये क्यों नहीं विचार करना चाहिए ।।38-39।।
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Even if these people, with minds blinded by greed, perceive no evil in destroying their own race and no sin in treason to friends, why should not we, o Krishna, who see clearly the sin accruing form the destruction of one’s family think of turning away from this crime. (38-39)
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