समय चक्र बढ़ता जाता है -दिनेश सिंह

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अगणित तारे जग के नभ पर
संघर्ष निरत बढ़ते सब पथ पर
नहीं चला जो समय संग वो
उल्का बन गिर जाता है
समय चक्र बढ़ता जाता है

बदल रही पल पल प्रबतियाँ
नव मानव युग है बदल रहा
युग-परिवर्तन संग नहीं ढला
वह एक कथा बन जाता है
समय चक्र बढ़ता जाता है

पड़ी यहाँ घायल मानवता
समय किसे देखे इसको
बंद किवाड़े कर आँखों के
जग आगे बढ़ जाता है
समय चक्र बढ़ता जाता है

सत-प्रेम की नगरी भस्म हुयी
परमारथ कथा पुरानी है
स्वार्थ साधकर बढ़ा यहाँ जो
वही विजयी कहलाता है
समय चक्र बढ़ता जाता है

टीका टिप्पणी और संदर्भ

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