क्षितिज-वृत्त से दिनकर अपनी
आभा लेकर वह डूब चुका था
कुञ्ज तटी के शांति भवन में
निर्वाक खड़ा मै देख रहा था
अथक परिश्रम कर एक खग
था एक नीड़ निर्माण कर रहा
तृण तृण जोड़ जोड़कर पाती
था प्रेमारस से सींच रहा
शांति चीरता दूर परिधि से
एक तूफान कराल उठा
छिन्न भिन्न कर दिया नीड़
वह उसका सुख ना देख सका
होकर विक्षुब्ध वो व्योम विहारी
फिर एक साख पर बैठ गया था
शायद वह अपनी निर्बलता या
भाग्य-नियति को कोस रहा था
निरख विध्वंसित नीड़ विहग का
हृदय विक्षुब्धिध ब्याकुल विव्हल
यहाँ सबलता के सम्मुख
नित प्रलय सेज पर सोता निर्बल