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पंच परमेष्ठिन जैन धर्म द्वारा पूजनीय हैं। जैन धर्म ईश्वर की सत्ता में विश्वास नहीं करता। वह मनुष्य में देवत्व और ईश्वरत्व को देखता है। अर्हत्, तीर्थकर मानव शरीर में ईश्वर कहे गए हैं।

  • पंच परमेष्ठिन के अंतर्गत 'अर्हत्' (तीर्थकर), 'सिद्ध', 'आचार्य', 'उपाध्याय' एवं साधु (श्रमण) आते हैं।
  • पंच नमोकार मंत्र में इन्हीं पंच परमेष्ठियों का अभिवादन, वंदन और स्मरण किया जाता है।
  • उच्च साधना, तपश्चर्य, त्याग से कोई भी व्यक्ति कैवल्य प्राप्त कर अर्हत् बन सकता है।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

भारतीय संस्कृति कोश, भाग-2 |प्रकाशक: यूनिवर्सिटी पब्लिकेशन, नई दिल्ली-110002 |संपादन: प्रोफ़ेसर देवेन्द्र मिश्र |पृष्ठ संख्या: 460 |

  1. चंचरीक एवं जैन : जैन वर्शिप एंड रिचुअल्स।

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