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वैदिक परम्परा में पुराणों और उप-पुराणों का जैसा विभाग पाया जाता है वैसा जैन परम्परा में नहीं पाया जाता। परन्तु यहाँ जो भी पुराण-साहित्य विद्यमान है वह अपने ढंग का निराला है। जहाँ अन्य पुराणकार प्राय: इतिवृत्त की यथार्थता को सुरक्षित नहीं रख सके हैं वहाँ [[जैन]] पुराणकारों ने यथार्थता को अधिक सुरक्षित रखा है। इसीलिये आज के निष्पक्ष विद्वानों का यह स्पष्ट मत है कि प्राक्कालीन भारतीय संस्कृति को जानने के लिये जैन पुराणों से उनके कथा ग्रन्थ से जो ज्ञान प्राप्त होता है, वह असामान्य है। यहाँ कतिपय दिगम्बर जैन पुराणों और चरित्रों की सूची इस प्रकार है-  
 
वैदिक परम्परा में पुराणों और उप-पुराणों का जैसा विभाग पाया जाता है वैसा जैन परम्परा में नहीं पाया जाता। परन्तु यहाँ जो भी पुराण-साहित्य विद्यमान है वह अपने ढंग का निराला है। जहाँ अन्य पुराणकार प्राय: इतिवृत्त की यथार्थता को सुरक्षित नहीं रख सके हैं वहाँ [[जैन]] पुराणकारों ने यथार्थता को अधिक सुरक्षित रखा है। इसीलिये आज के निष्पक्ष विद्वानों का यह स्पष्ट मत है कि प्राक्कालीन भारतीय संस्कृति को जानने के लिये जैन पुराणों से उनके कथा ग्रन्थ से जो ज्ञान प्राप्त होता है, वह असामान्य है। यहाँ कतिपय दिगम्बर जैन पुराणों और चरित्रों की सूची इस प्रकार है-  
  
क्रमांक - पुराणनाम - कर्ता - रचनाकाल
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{| align="right" style="margin:5px;"
 
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|+कतिपय दिगम्बर जैन पुराणों और चरित्रों की सूची
1.- पद्मपुराण - पद्मचरित - आचार्य रविषेण - 705
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! क्रमांक  
 
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! पुराणनाम  
2.- महापुराण - आदिपुराण - आचार्य जिनसेन - नौवीं शती
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! रचनाकर्ता
 
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! रचनाकाल
3.- पुराण - गुणभद्र - 10वीं शती
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|1.-  
4.- अजित - पुराण - अरुणमणि - 1716
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| पद्मपुराण - पद्मचरित  
 
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| आचार्य रविषेण
5.- आदिपुराण - ([[कन्नड भाषा|कन्नड़]]) - कवि पंप --
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| 705 ई.
 
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6.- आदिपुराण - भट्टारक - चन्द्रकीर्ति - 17वीं शती
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| 2.-  
 
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| महापुराण - आदिपुराण  
7.- आदिपुराण - भट्टारक - सकलकीर्ति - 15वीं शती
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| आचार्य जिनसेन  
 
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| नौवीं शती
8.- उत्तर पुराण - भ0 सकलकीर्ति - 15वीं शती
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|3.-
9.- कर्णामृत - पुराण - केशवसेन - 1608
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| पुराण  
 
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| गुणभद्र
10.- जयकुमार - पुराण - ब्र0 कामराज - 1555
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| 10वीं शती
 
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11.- चन्द्रप्रभपुराण - कवि अगासदेव - --
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| 4.-
 
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| अजित - पुराण  
12.- चामुण्ड पुराण - (क0) चामुण्डराय - श0 सं0 980
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| अरुणमणि  
 
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| 1716
13.- धर्मनाथ पुराण - (क0) कवि बाहुबली - --
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|5.-
14.- नेमिनाथ पुराण - ब्र0 नेमिदत्त - 1575 के लगभग
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| आदिपुराण - ([[कन्नड भाषा|कन्नड़]])  
 
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| कवि पंप
15.- पद्मनाभपुराण - भट्टारक शुभचन्द्र - 17वीं शती
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| --
 
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16.- पउम चरिउ - ([[अपभ्रंश भाषा|अपभ्रंश]]) - चतुर्मुख देव --
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|6.-
 
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| आदिपुराण
17.- [[पउम चरिउ]] - [[स्वयंभू देव|स्वयंभूदेव]] --
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| भट्टारक चन्द्रकीर्ति
 
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| 17वीं शती
18.- पद्मपुराण - भ0 सोमतेन -
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| 7.-
19.- पद्मपुराण- भ0 धर्मकीर्ति - 1656
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| आदिपुराण -
 
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| भट्टारक सकलकीर्ति  
20.- पद्मपुराण -(अपभ्रंश) - कवि रइधू - 15-16 शती
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| 15वीं शती
 
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21.- पद्मपुराण - भ0 चन्द्रकीर्ति - 17वीं शती
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|8.-
 
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| उत्तर पुराण  
22.- पद्मपुराण - ब्रह्म जिनदास - 13-16 शती
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| भट्टारक सकलकीर्ति
 
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| 15वीं शती
23.- पाण्डव पुराण - भ0 शुभचन्द्र - 1608
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|9.-
24.- पाण्डव पुराण - (अपभ्रंश) - भ0 यशकीर्ति - 1497
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| कर्णामृत - पुराण  
 
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| केशवसेन
25.- पाण्डव पुराण - भ0 श्रीभूषण - 1658
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| 1608
 
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26.- पाण्डव पुराण - वादिचन्द्र - 1658
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| जयकुमार - पुराण  
27.- पार्श्वपुराण - (अपभ्रंश) - पद्मकीर्ति - 989
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| ब्र0 कामराज  
 
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| 1555
28.- पार्श्वपुराण - कवि रइधू - 15-16 शती
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|11.-
29.- पार्श्वपुराण - चन्द्रकीर्ति - 1654
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| चन्द्रप्रभपुराण  
 
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| कवि अगासदेव
30.- पार्श्वपुराण - वादिचन्द्र - 1658
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| --
 
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31.- महापुराण - [[मल्लिषेण|आचार्य मल्लिषेण]] - 1104
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|12.-
 
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| चामुण्ड पुराण  
32.- महापुराण - (अपभ्रंश) - महाकवि पुष्पदन्त --
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| चामुण्डराय  
 
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| श. सं. 980
33.- मल्लिनाथपुराण - (क) कवि नागचन्द्र --
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|13.-
34.- पुराणसार - श्रीचन्द्र --
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| धर्मनाथ पुराण
 
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| कवि बाहुबली  
35.- महावीरपुराण (वर्धमान चरित) - असग 910
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| --
 
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|-
36.- महावीर पुराण - भ0 सकलकीर्ति - 15वीं शती
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| 14.-
 
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| नेमिनाथ पुराण  
37.- मल्लिनाथ पुराण - सकलकीर्ति - 15वीं शती
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| नेमिदत्त  
 
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| 1575 के लगभग
38.- मुनिसुव्रत पुराण - ब्रह्म कृष्णदास --
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|15.-
39.- मुनिसुव्रत पुराण - भ0 सुरेन्द्रकीर्ति --
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| पद्मनाभपुराण  
 
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| भट्टारक शुभचन्द्र
40.- वागर्थसंग्रह पुराण - कवि परमेष्ठी - आ0 जिनसेन के महापुराण से प्राक्
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| 17वीं शती
 
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41.- शान्तिनाथ पुराण - असग - 910
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|16.-
 
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| पउम चरिउ - ([[अपभ्रंश भाषा|अपभ्रंश]])  
42.- शान्तिनाथ पुराण - भ0 श्रीभूषण - 1658
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| चतुर्मुख देव
 
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43.- श्रीपुराण - भ0 गुणभद्र --
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|17.-
44.- हरिवंशपुराण - पुन्नाट संघीय - जिनसेन - श0 सं0 705
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| [[पउम चरिउ]]
 
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| [[स्वयंभू देव|स्वयंभूदेव]]
45.- हरिवंशपुराण - (अपभ्रंश) - स्वयंभूदेव -
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46.- हरिवंशपुराण - तदैव - चतुर्मुख देव
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|18.-
 
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| पद्मपुराण  
47.- हरिवंशपुराण - ब्रह्म जिनदास - 15-16 शती
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| सोमतेन
 
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48.- हरिवंशपुराण - तदैव् भ0 - यश:कीर्ति - 1507
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| 19.-
49.- हरिवंशपुराण - भ0 श्रुतकीर्ति - 1552
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| पद्मपुराण
 
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| धर्मकीर्ति  
50.- हरिवंशपुराण - महाकवि रइधू - 15-16 शती
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| 1656
 
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|-
51.- हरिवंशपुराण - भ0 धर्मकीर्ति - 1671
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| 20.-
 
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| पद्मपुराण -(अपभ्रंश)
52.- हरिवंशपुराण - कवि रामचन्द्र - 1560 के पूर्व
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कवि रइधू
 
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15-16 शती
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| 21.-
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| पद्मपुराण -  
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| चन्द्रकीर्ति
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| 17वीं शती
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| 22.-
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| पद्मपुराण
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| ब्रह्म जिनदास
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| 13-16 शती
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| 23.-
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| पाण्डव पुराण
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| शुभचन्द्र
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| 1608
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| 24.-
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| पाण्डव पुराण - (अपभ्रंश)  
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| यशकीर्ति
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| 1497
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| 25.-
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| पाण्डव पुराण
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| 1658
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| पाण्डव पुराण  
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| वादिचन्द्र  
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| 1658
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| पार्श्वपुराण - (अपभ्रंश)
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| पद्मकीर्ति  
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| 28.-
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| पार्श्वपुराण  
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| 15-16 शती
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| पार्श्वपुराण  
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| पार्श्वपुराण  
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| महापुराण  
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| [[मल्लिषेण|आचार्य मल्लिषेण]]  
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| महापुराण - (अपभ्रंश)
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| महाकवि पुष्पदन्त
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| मल्लिनाथपुराण  
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| महावीरपुराण (वर्धमान चरित)  
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| असग
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| महावीर पुराण  
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| सकलकीर्ति  
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| मल्लिनाथ पुराण
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| मुनिसुव्रत पुराण
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| मुनिसुव्रत पुराण
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| सुरेन्द्रकीर्ति
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| वागर्थसंग्रह पुराण
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| कवि परमेष्ठी  
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| शान्तिनाथ पुराण
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| शान्तिनाथ पुराण
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| भ0 श्रीभूषण  
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| श्रीपुराण
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| भ0 गुणभद्र
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| हरिवंशपुराण - पुन्नाट संघीय  
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| जिनसेन  
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| हरिवंशपुराण - (अपभ्रंश)  
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| स्वयंभूदेव
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| हरिवंशपुराण -तदैव
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| चतुर्मुख देव
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| हरिवंशपुराण  
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| 15-16 शती
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| हरिवंशपुराण- तदैव्
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| हरिवंशपुराण  
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| भ0 श्रुतकीर्ति
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| महाकवि रइधू  
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| 15-16 शती
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| भ0 धर्मकीर्ति
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| हरिवंशपुराण
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| कवि रामचन्द्र
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| 1560 के पूर्व
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*इनके अतिरिक्त चरित-ग्रन्थ हैं, जिनकी संख्या पुराणों की संख्या से अधिक है और जिनमें वराङ्गचरित, जिनदत्तचरित, जम्बूस्वामीचरित, [[जसहर चरिउ]], [[णाय कुमार चरिउ|नागकुमार चरिउ]], आदि कितने ही महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ सम्मिलित हैं। इनमें रविषेण का पद्मपुराण, जिनसेन का महापुराण ([[आदि पुराण]]), गुणभद्र का [[उत्तर पुराण]] और पुन्नाट संघीय जिनसेन का हरिंवशपुराण विश्रुत और सर्वश्रेष्ठ पुराण माने जाते हैं, क्योंकि इनमें पुराण का पूर्ण लक्षण घटित होता है। इनकी रचना पुराण और काव्य दोनों की शैली से की गई है।  
 
*इनके अतिरिक्त चरित-ग्रन्थ हैं, जिनकी संख्या पुराणों की संख्या से अधिक है और जिनमें वराङ्गचरित, जिनदत्तचरित, जम्बूस्वामीचरित, [[जसहर चरिउ]], [[णाय कुमार चरिउ|नागकुमार चरिउ]], आदि कितने ही महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ सम्मिलित हैं। इनमें रविषेण का पद्मपुराण, जिनसेन का महापुराण ([[आदि पुराण]]), गुणभद्र का [[उत्तर पुराण]] और पुन्नाट संघीय जिनसेन का हरिंवशपुराण विश्रुत और सर्वश्रेष्ठ पुराण माने जाते हैं, क्योंकि इनमें पुराण का पूर्ण लक्षण घटित होता है। इनकी रचना पुराण और काव्य दोनों की शैली से की गई है।  
  

11:44, 28 जून 2011 का अवतरण

भारतीय धर्मग्रन्थों में 'पुराण' शब्द का प्रयोग इतिहास के अर्थ में आता है। कितने विद्वानों ने इतिहास और पुराण को पंचम वेद माना है। चाणक्य ने अपने अर्थशास्त्र में इतिवृत्त, पुराण, आख्यायिका, उदाहरण, धर्मशास्त्र तथा अर्थशास्त्र का समावेश किया है। इससे यह सिद्ध होता है कि इतिहास और पुराण दोनों ही विभिन्न हैं। इतिवृत्त का उल्लेख समान होने पर भी दोनों अपनी अपनी विशेषता रखते हैं। इतिहास जहाँ घटनाओं का वर्णन कर निर्वृत हो जाता है वहाँ पुराण उनके परिणाम की ओर पाठक का चित्त आकृष्ट करता है।

सर्गश्च प्रतिसर्गश्च वंशो मन्वन्तराणि च।
वंशानुचरितान्येव पुराणं पंचलक्षणम्॥

जिसमें सर्ग, प्रतिसर्ग, वंश, मन्वन्तर और वंश-परम्पराओं का वर्णन हो, वह पुराण है। सर्ग, प्रतिसर्ग आदि पुराण के पाँच लक्षण हैं। तात्पर्य यह कि इतिवृत्त केवल घटित घटनाओं का उल्लेख करता है परन्तु पुराण महापुरुषों के घटित घटनाओं का उल्लेख करता हुआ उनसे प्राप्त फलाफल पुण्य-पाप का भी वर्णन करता है तथा व्यक्ति के चरित्र निर्माण की अपेक्षा बीच-बीच में नैतिक और धार्मिक शिक्षाओं का प्रदर्शन भी करता है। इतिवृत्त में जहाँ केवल वर्तमान की घटनाओं का उल्लेख रहता है वहाँ पुराण में नायक के अतीत और अनागत भवों का भी उल्लेख रहता है और वह इसलिये कि जनसाधारण समझ सके कि महापुरुष कैसे बना जा सकता है। अवनत से उन्नत बनने के लिये क्या-क्या त्याग, परोपकार और तपस्याएँ करनी पड़ती हैं। मानव के जीवन-निर्माण में पुराण का बड़ा ही महत्त्वपूर्ण स्थान है। यही कारण है कि उसमें जनसाधारण की श्रद्धा आज भी यथापूर्व अक्षुण्ण है।

वैदिक परम्परा में पुराणों और उप-पुराणों का जैसा विभाग पाया जाता है वैसा जैन परम्परा में नहीं पाया जाता। परन्तु यहाँ जो भी पुराण-साहित्य विद्यमान है वह अपने ढंग का निराला है। जहाँ अन्य पुराणकार प्राय: इतिवृत्त की यथार्थता को सुरक्षित नहीं रख सके हैं वहाँ जैन पुराणकारों ने यथार्थता को अधिक सुरक्षित रखा है। इसीलिये आज के निष्पक्ष विद्वानों का यह स्पष्ट मत है कि प्राक्कालीन भारतीय संस्कृति को जानने के लिये जैन पुराणों से उनके कथा ग्रन्थ से जो ज्ञान प्राप्त होता है, वह असामान्य है। यहाँ कतिपय दिगम्बर जैन पुराणों और चरित्रों की सूची इस प्रकार है-

कतिपय दिगम्बर जैन पुराणों और चरित्रों की सूची
क्रमांक पुराणनाम रचनाकर्ता रचनाकाल
1.- पद्मपुराण - पद्मचरित आचार्य रविषेण 705 ई.
2.- महापुराण - आदिपुराण आचार्य जिनसेन नौवीं शती
3.- पुराण गुणभद्र 10वीं शती
4.- अजित - पुराण अरुणमणि 1716
5.- आदिपुराण - (कन्नड़) कवि पंप --
6.- आदिपुराण भट्टारक चन्द्रकीर्ति 17वीं शती
7.- आदिपुराण - भट्टारक सकलकीर्ति 15वीं शती
8.- उत्तर पुराण भट्टारक सकलकीर्ति 15वीं शती
9.- कर्णामृत - पुराण केशवसेन 1608
10.- जयकुमार - पुराण ब्र0 कामराज 1555
11.- चन्द्रप्रभपुराण कवि अगासदेव --
12.- चामुण्ड पुराण चामुण्डराय श. सं. 980
13.- धर्मनाथ पुराण कवि बाहुबली --
14.- नेमिनाथ पुराण नेमिदत्त 1575 के लगभग
15.- पद्मनाभपुराण भट्टारक शुभचन्द्र 17वीं शती
16.- पउम चरिउ - (अपभ्रंश) चतुर्मुख देव --
17.- पउम चरिउ स्वयंभूदेव --
18.- पद्मपुराण सोमतेन --
19.- पद्मपुराण धर्मकीर्ति 1656
20.- पद्मपुराण -(अपभ्रंश) कवि रइधू 15-16 शती
21.- पद्मपुराण - चन्द्रकीर्ति 17वीं शती
22.- पद्मपुराण ब्रह्म जिनदास 13-16 शती
23.- पाण्डव पुराण शुभचन्द्र 1608
24.- पाण्डव पुराण - (अपभ्रंश) यशकीर्ति 1497
25.- पाण्डव पुराण श्रीभूषण 1658
26.- पाण्डव पुराण वादिचन्द्र 1658
27.- पार्श्वपुराण - (अपभ्रंश) पद्मकीर्ति 989
28.- पार्श्वपुराण कवि रइधू 15-16 शती
29.- पार्श्वपुराण चन्द्रकीर्ति 1654
30.- पार्श्वपुराण वादिचन्द्र 1658
31.- महापुराण आचार्य मल्लिषेण 1104
32.- महापुराण - (अपभ्रंश) महाकवि पुष्पदन्त --
33.- मल्लिनाथपुराण कवि नागचन्द्र --
34.- पुराणसार श्रीचन्द्र --
35.- महावीरपुराण (वर्धमान चरित) असग 910
36.- महावीर पुराण सकलकीर्ति 15वीं शती
37.- मल्लिनाथ पुराण सकलकीर्ति 15वीं शती
38.- मुनिसुव्रत पुराण ब्रह्म कृष्णदास --
39.- मुनिसुव्रत पुराण सुरेन्द्रकीर्ति --
40.- वागर्थसंग्रह पुराण कवि परमेष्ठी
41.- शान्तिनाथ पुराण असग 910
42.- शान्तिनाथ पुराण भ0 श्रीभूषण 1658
43.- श्रीपुराण भ0 गुणभद्र --
44.- हरिवंशपुराण - पुन्नाट संघीय जिनसेन श. सं. 705
45.- हरिवंशपुराण - (अपभ्रंश) स्वयंभूदेव --
46.- हरिवंशपुराण -तदैव चतुर्मुख देव --
47.- हरिवंशपुराण ब्रह्म जिनदास 15-16 शती
48.- हरिवंशपुराण- तदैव् भ0 - यश:कीर्ति 1507
49.- हरिवंशपुराण भ0 श्रुतकीर्ति 1552
50.- हरिवंशपुराण महाकवि रइधू 15-16 शती
51.- हरिवंशपुराण भ0 धर्मकीर्ति 1671
52.- हरिवंशपुराण कवि रामचन्द्र 1560 के पूर्व
  • इनके अतिरिक्त चरित-ग्रन्थ हैं, जिनकी संख्या पुराणों की संख्या से अधिक है और जिनमें वराङ्गचरित, जिनदत्तचरित, जम्बूस्वामीचरित, जसहर चरिउ, नागकुमार चरिउ, आदि कितने ही महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ सम्मिलित हैं। इनमें रविषेण का पद्मपुराण, जिनसेन का महापुराण (आदि पुराण), गुणभद्र का उत्तर पुराण और पुन्नाट संघीय जिनसेन का हरिंवशपुराण विश्रुत और सर्वश्रेष्ठ पुराण माने जाते हैं, क्योंकि इनमें पुराण का पूर्ण लक्षण घटित होता है। इनकी रचना पुराण और काव्य दोनों की शैली से की गई है।