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[[चित्र:Jain-Tirthankar-Neminath-Mathura-Museum-36.jpg|thumb|300px| नेमिनाथ तीर्थंकर <br /> Neminath Tirthankar]]
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[[चित्र:Jain-Tirthankar-Neminath-Mathura-Museum-36.jpg|thumb|230px| नेमिनाथ तीर्थंकर <br /> Neminath Tirthankar]]
* अवैदिक धर्मों में [[जैन]] धर्म सबसे प्राचीन है, प्रथम तीर्थंकर भगवान [[ऋषभदेव]] माने जाते हैं।
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'''नेमिनाथ''' [[जैन धर्म]] के प्रसिद्ध बाईसवें [[तीर्थंकर]] थे। अवैदिक धर्मों में जैन धर्म सबसे प्राचीन है। नेमिनाथ जी का जन्म सौरीपुर, [[द्वारका]] के हरिवंश कुल में [[श्रावण माह]] के [[शुक्ल पक्ष]] की [[पंचमी]] तिथि को [[चित्रा नक्षत्र]] में हुआ था। इनकी [[माता]] का नाम शिवा देवी और [[पिता]] का नाम राजा समुद्रविजय था। इनके शरीर का [[रंग]] श्याम जबकि चिह्न [[शंख]] था।
*[[जैन|जैन]] धर्म के अनुसार भी ऋषभ देव का [[मथुरा]] से संबंध था।
 
*जैन धर्म में की प्रचलित अनुश्रुति के अनुसार, नाभिराय के पुत्र भगवान [[ॠषभनाथ तीर्थंकर|ऋषभदेव]] के आदेश से [[इन्द्र]] ने 52 देशों की रचना की थी।
 
*[[शूरसेन]] देश और उसकी राजधानी मथुरा भी उन देशों में थी
 
*जैन `हरिवंश [[पुराण]]' में प्राचीन [[भारत]] के जिन [[महाजनपद|18 महाराज्यों]] का उल्लेख हुआ है, उनमें [[शूरसेन]] और उसकी राजधानी मथुरा का नाम भी है।
 
  
*जैन मान्यता के अनुसार प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव के सौ पुत्र हुए थे।  
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*भगवान नेमिनाथ के [[यक्ष]] का नाम गोमेध और यक्षिणी का नाम [[अम्बिका देवी]] था।
*जैन धर्म के सातवें तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ का विहार मथुरा में हुआ था।<ref>जिनप्रभ सूरि कृत 'बिबिध तीर्थ कल्प' का 'मथुरा पुरी कल्प' प्रकरण, पृष्ठ 17 व 85</ref> अनेक विहार-स्थल पर [[कुबेरा देवी]] द्वारा जो स्तूप बनाया गया था, वह जैन धर्म के इतिहास में बड़ा प्रसिद्ध रहा है।
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*जैन धर्मावलम्बियों के अनुसार नेमिनाथ जी के गणधरों की कुल संख्या 11 थी, जिनमें वरदत्त स्वामी इनके प्रथम गणधर थे।
*चौदहवें तीर्थंकर अनंतनाथ का स्मारक तीर्थ भी मथुरा में यमुना नदी के तटपर था।
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*इनके प्रथम आर्य का नाम यक्षदिन्ना था।
*बाईसवें तीर्थंकर नेमिनाथ को जैन धर्म में श्री [[कृष्ण]] के समकालीन और उनका चचेरा भाई माना जाता है।  
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*नेमिनाथ ने सौरीपुर में [[श्रावण मास]] के शुक्ल पक्ष की [[षष्ठी]] को दीक्षा ग्रहण की थी।
*इस प्रकार जैन धर्म-ग्रंथों की प्राचीन अनुश्रुतियों में ब्रज के प्राचीनतम इतिहास के अनेक सूत्र मिलते हैं।  
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*इसके बाद 54 दिनों तक कठोर तप करने के बाद [[गिरनार पर्वत]] पर 'मेषश्रृंग वृक्ष' के नीचे आसोज [[अमावस्या]] को '[[कैवल्य ज्ञान]]' को प्राप्त किया।
*जैन ग्रंथों मे उल्लेख है कि यहाँ पार्श्वनाथ [[महावीर|महावीर स्वामी]] ने यात्रा की थी।
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*कथानुसार भगवान नेमिनाथ जब राजा उग्रसेन की पुत्री राजुलमती से विवाह करने पहुंचे तो वहाँ उन्होंने कई पशुओं को देखा।
*[[पउमचरिय|पउमचरिय]] में एक कथा वर्णित है जिसके अनुसार सात साधुओं द्वारा सर्वप्रथम मथुरा में ही श्वेतांबर जैन संम्प्रदाय का प्रचार किया गया था।
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*ये सारे पशु बारातियों के भोजन हेतु मारे जाने वाले थे।
*एक अनुश्रुति में मथुरा को इक्कीसवें तीर्थंकर नेमिनाथ<ref>बीस़ी भट्टाचार्य, जैन आइकोनोग्राफी (लाहौर, 1939), पृ 80</ref> की जन्मभूमि बताया गया है, किंतु उत्तर पुराण में इनकी जन्मभूमि [[मिथिला]] वर्णित है।<ref>बी.सी भट्टाचार्य, जैन आइकोनोग्राफी (लाहौर, 1939), पृ 79</ref>
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*यह देखकर नेमिनाथ का [[हृदय]] करुणा से व्याकुल हो उठा और उनके मन में वैराग्य उत्पन्न हो गया।
*विविधतीर्थकल्प से ज्ञात होता है कि नेमिनाथ का मथुरा में विशिष्ट स्थान था।<ref>विविधतीर्थकल्प, पृ 80</ref>  
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*तभी वे [[विवाह]] का विचार छोड़कर तपस्या को चले गए।
*मथुरा पर प्राचीन काल से ही विदेशी आक्रामक जातियों, [[शक]], [[यवन]] एवं [[कुषाण|कुषाणों]] का शासन रहा।
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*70 साल तक साधक जीवन जीने के बाद [[आषाढ़ मास|आषाढ़]] [[शुक्ल पक्ष|शुक्ल]] की [[अष्टमी]] को भगवान नेमिनाथ जी ने एक हज़ार [[साधु|साधुओं]] के साथ गिरनार पर्वत पर [[निर्वाण]] को प्राप्त किया।
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*बाईसवें तीर्थंकर नेमिनाथ को जैन धर्म में [[श्रीकृष्ण]] के समकालीन और उनका चचेरा भाई माना जाता है।
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*इस प्रकार जैन धर्म-ग्रंथों की प्राचीन अनुश्रुतियों में [[ब्रज]] के प्राचीनतम इतिहास के अनेक सूत्र मिलते हैं।  
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नेमिनाथ तीर्थंकर
Neminath Tirthankar

नेमिनाथ जैन धर्म के प्रसिद्ध बाईसवें तीर्थंकर थे। अवैदिक धर्मों में जैन धर्म सबसे प्राचीन है। नेमिनाथ जी का जन्म सौरीपुर, द्वारका के हरिवंश कुल में श्रावण माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को चित्रा नक्षत्र में हुआ था। इनकी माता का नाम शिवा देवी और पिता का नाम राजा समुद्रविजय था। इनके शरीर का रंग श्याम जबकि चिह्न शंख था।

  • भगवान नेमिनाथ के यक्ष का नाम गोमेध और यक्षिणी का नाम अम्बिका देवी था।
  • जैन धर्मावलम्बियों के अनुसार नेमिनाथ जी के गणधरों की कुल संख्या 11 थी, जिनमें वरदत्त स्वामी इनके प्रथम गणधर थे।
  • इनके प्रथम आर्य का नाम यक्षदिन्ना था।
  • नेमिनाथ ने सौरीपुर में श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को दीक्षा ग्रहण की थी।
  • इसके बाद 54 दिनों तक कठोर तप करने के बाद गिरनार पर्वत पर 'मेषश्रृंग वृक्ष' के नीचे आसोज अमावस्या को 'कैवल्य ज्ञान' को प्राप्त किया।
  • कथानुसार भगवान नेमिनाथ जब राजा उग्रसेन की पुत्री राजुलमती से विवाह करने पहुंचे तो वहाँ उन्होंने कई पशुओं को देखा।
  • ये सारे पशु बारातियों के भोजन हेतु मारे जाने वाले थे।
  • यह देखकर नेमिनाथ का हृदय करुणा से व्याकुल हो उठा और उनके मन में वैराग्य उत्पन्न हो गया।
  • तभी वे विवाह का विचार छोड़कर तपस्या को चले गए।
  • 70 साल तक साधक जीवन जीने के बाद आषाढ़ शुक्ल की अष्टमी को भगवान नेमिनाथ जी ने एक हज़ार साधुओं के साथ गिरनार पर्वत पर निर्वाण को प्राप्त किया।
  • बाईसवें तीर्थंकर नेमिनाथ को जैन धर्म में श्रीकृष्ण के समकालीन और उनका चचेरा भाई माना जाता है।
  • इस प्रकार जैन धर्म-ग्रंथों की प्राचीन अनुश्रुतियों में ब्रज के प्राचीनतम इतिहास के अनेक सूत्र मिलते हैं।
  • 'विविधतीर्थकल्प' से ज्ञात होता है कि नेमिनाथ का मथुरा में विशिष्ट स्थान था।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. विविधतीर्थकल्प, पृ 80

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