एक्स्प्रेशन त्रुटि: अनपेक्षित उद्गार चिन्ह "१"।

सिद्धसेन द्वितीय

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
व्यवस्थापन (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:05, 14 सितम्बर 2010 का अवतरण (Text replace - "==सम्बंधित लिंक==" to "==संबंधित लेख==")
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
  • इनका समय 9वीं शती माना जाता है।
  • इन्होंने न्यायशास्त्र का एकमात्र 'न्यायावतार' ग्रन्थ लिखा है, जिसमें जैन न्यायविद्या का 32 कारिकाओं में सांगोपांग निरूपण किया है।
  • इनकी रची कुछ द्वात्रिंशतिकाएँ भी हैं जिनमें तीर्थंकर की स्तुति के बहाने जैन दर्शन और जैन न्याय का भी दिग्दर्शन किया गया है।

संबंधित लेख