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'''सुधर्मन''' [[तीर्थंकर|जैन तीर्थंकर]] [[महावीर|महावीर स्वामी]] के बाद जैन संघ के अध्यक्ष नियुक्त हुए थे। जैन संघ के अध्यक्ष के रूप में सुधर्मन ने लगातार 22 वर्षों तक [[जैन धर्म]] की सेवा की थी।
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'''सुधर्मन''' [[तीर्थंकर|जैन तीर्थंकर]] [[महावीर|महावीर स्वामी]] के बाद जैन संघ के अध्यक्ष नियुक्त हुए थे। जैन संघ के अध्यक्ष के रूप में सुधर्मन ने लगातार 22 वर्षों तक [[जैन धर्म]] की सेवा की थी। सुधर्मन महावीर स्वामी के प्रमुख ग्यारह अनुयायियों में से एक था।
  
*जैन संघ की स्थापना स्वयं महावीर ने की थी। उनके ग्यारह निकटतम शिष्यों को '''गणधर''' अर्थात "समूह का प्रधान" कहा जाता था।
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*जैन संघ की स्थापना स्वयं महावीर ने की थी। इस संघ में उन्होंने अपने ग्यारह प्रमुख अनुयायी को शामिल किया था। उनके ग्यारह निकटतम शिष्यों को '''गणधर''' अर्थात "समूह का प्रधान" कहा जाता था।
*महावीर की मृत्यु के पश्चात उनके एकमात्र गणधर सुधर्मन को जैन संघ का थेर बनाया गया था।
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*तीर्थंकर महावीर के जीवन काल में ही 10 गणधरों की मृत्यु हो गई थी, केवल एक गणधर 'सुधर्मन' ही जीवित रहा था।  
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*महावीर की मृत्यु के पश्चात उनके एकमात्र बचे गणधर सुधर्मन को जैन संघ का थेर बनाया गया।
 
*सुधर्मन की महावीर स्वामी की मृत्यु के बीस वर्ष बाद मृत्यु हुई।
 
*सुधर्मन की महावीर स्वामी की मृत्यु के बीस वर्ष बाद मृत्यु हुई।
 
*सुधर्मन की मृत्यु के बाद जम्बु संघ के प्रधान रहे, जो 44 वर्षों तक [[जैन धर्म]] की सेवा करते रहे।  
 
*सुधर्मन की मृत्यु के बाद जम्बु संघ के प्रधान रहे, जो 44 वर्षों तक [[जैन धर्म]] की सेवा करते रहे।  

14:21, 16 अगस्त 2013 का अवतरण

सुधर्मन जैन तीर्थंकर महावीर स्वामी के बाद जैन संघ के अध्यक्ष नियुक्त हुए थे। जैन संघ के अध्यक्ष के रूप में सुधर्मन ने लगातार 22 वर्षों तक जैन धर्म की सेवा की थी। सुधर्मन महावीर स्वामी के प्रमुख ग्यारह अनुयायियों में से एक था।

  • जैन संघ की स्थापना स्वयं महावीर ने की थी। इस संघ में उन्होंने अपने ग्यारह प्रमुख अनुयायी को शामिल किया था। उनके ग्यारह निकटतम शिष्यों को गणधर अर्थात "समूह का प्रधान" कहा जाता था।
  • तीर्थंकर महावीर के जीवन काल में ही 10 गणधरों की मृत्यु हो गई थी, केवल एक गणधर 'सुधर्मन' ही जीवित रहा था।
  • महावीर की मृत्यु के पश्चात उनके एकमात्र बचे गणधर सुधर्मन को जैन संघ का थेर बनाया गया।
  • सुधर्मन की महावीर स्वामी की मृत्यु के बीस वर्ष बाद मृत्यु हुई।
  • सुधर्मन की मृत्यु के बाद जम्बु संघ के प्रधान रहे, जो 44 वर्षों तक जैन धर्म की सेवा करते रहे।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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