तीर्थंकर शब्द का जैन धर्म में बड़ा ही महत्त्व है। 'तीर्थ' का अर्थ है, जिसके द्वारा संसार समुद्र तरा जाए, पार किया जाए और वह अहिंसा धर्म है। जैन धर्म में उन 'जिनों' एवं महात्माओं को तीर्थंकर कहा गया है, जिन्होंने प्रवर्तन किया, उपदेश दिया और असंख्य जीवों को इस संसार से 'तार'[1] दिया।
जैन तीर्थंकर
जैन धर्म में 24 तीर्थंकर माने गए हैं। उन चौबीस तीर्थंकरों के नाम इस प्रकार प्रसिद्ध हैं-
- ॠषभनाथ तीर्थंकर,
- अजितनाथ
- सम्भवनाथ
- अभिनन्दननाथ
- सुमतिनाथ
- पद्मप्रभ
- सुपार्श्वनाथ
- चन्द्रप्रभ
- पुष्पदन्त
- शीतलनाथ
- श्रेयांसनाथ
- वासुपूज्य
- विमलनाथ
- अनन्तनाथ
- धर्मनाथ
- शान्तिनाथ
- कुन्थुनाथ
- अरनाथ
- मल्लिनाथ
- मुनिसुब्रनाथ
- नमिनाथ
- नेमिनाथ तीर्थंकर
- पार्श्वनाथ तीर्थंकर
- वर्धमान महावीर
धर्ममार्ग के नेता
इन 24 तीर्थंकरों ने अपने-अपने समय में धर्ममार्ग से च्युत हो रहे जन-समुदाय को संबोधित किया और उसे धर्ममार्ग में लगाया। इसी से इन्हें धर्ममार्ग और मोक्षमार्ग का नेता तीर्थ प्रवर्त्तक 'तीर्थंकर' कहा गया है। जैन सिद्धान्त के अनुसार 'तीर्थंकर' नाम की एक पुण्य[2] कर्म प्रकृति है। उसके उदय से तीर्थंकर होते और वे तत्त्वोपदेश करते हैं। आचार्य विद्यानंद ने स्पष्ट कहा है[3] कि 'बिना तीर्थंकरत्वेन नाम्ना नार्थोपदेशना' अर्थात् बिना तीर्थंकर-पुण्यनामकर्म के तत्त्वोपदेश संभव नहीं है।[4]
वीथिका
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तीर्थंकर पार्श्वनाथ
Tirthankara Parsvanatha -
आसनस्थ जैन तीर्थंकर
Seated Jaina Tirthankara -
तीर्थंकर ऋषभनाथ
Tirthankara Rishabhanath -
आसनस्थ जैन तीर्थंकर
Seated Jaina Tirthankara -
आसनस्थ जैन तीर्थंकर
Seated Jaina Tirthankara -
जैन तीर्थंकर
Jaina Tirthankara -
आसनस्थ जैन तीर्थंकर
Seated Jaina Tirthankara -
तीर्थंकर ऋषभनाथ
Tirthankara Rishabhanath
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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