हे अर्जुन[1] ! तमोगुण के बढ़ने पर अन्त:करण और इन्द्रियों में अप्रकाश, कर्मव्य-कर्मों में अप्रवृत्ति और प्रमाद अर्थात् व्यर्थ चेष्टा और निद्रादि अन्त:करण की मोहिनी वृत्तियाँ- ये सब ही उत्पन्न होते हैं ।।13।।
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With the growth of Tamas, Arjuna, obtuseness of the mind and senses, disinclination to perform one’s obligatory duties, frivolity and stupor-all these appear. (13)
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