हे अर्जुन[1] ! इन तीनों नरक के द्वारों से मुक्त पुरुष अपने कल्याण का आचरण करता है, इससे वह परमगति को जाता है अर्थात् मुझको प्राप्त हो जाता है ।।22।।
Freed from these three gates of hell, man works his own salvation and thereby attains the supreme goal i.e., God. (22)
कौन्तेय = हे अर्जुन ; एतै: = इन ; त्रिभि: = तीनों ; तमोद्वारै: = नरक के द्वारों से ; विमुक्त: = मुक्त हुआ ; नर: = पुरुष ; आत्मन: = अपने ; श्रेय: = कल्याण का ; आचरति = आचरण करता है ; तत: = इससे (वह) ; पराम् = परम ; गतिम् = गति को ; याति = जाता हे अर्थात् मेरे को प्राप्त होता है ;
↑महाभारत के मुख्य पात्र है। वे पाण्डु एवं कुन्ती के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। द्रोणाचार्य के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। द्रौपदी को स्वयंवर में भी उन्होंने ही जीता था।