बाहर के विषय- भोगों को न चिन्तन करता हुआ बाहर ही त्यागकर और नेत्रों की दृष्टि को भृकुटी के बीच में स्थित करके तथा नासिका में विचरने वाले प्राण और अपानवायु को सम करके, जिसकी इन्द्रियाँ, मन और बुद्धि जीती हुई हैं- ऐसा जो मोक्षपरायण मुनि इच्छा, भय और क्रोध से रहित हो गया है, वह सदा मुक्त ही है ।।27-28।।
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Shutting out all thoughts of external enjoyments, with the gaze fixed on the space between the eye-brows, having regulated the prana outgoing and the apana ingoing breaths flowing within the nostrils; he who has brought his senses, mind and intellect under control,- such a contemplative soul intent on liberation and free from desire, fear and anger, is ever liberated. (27,28)
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