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बरमूडा त्रिकोण / बरमूडा त्रिभुज / ( बारमूडा ट्रायएंगल / Bermuda Triangle ) अटलांटिक महासागर का वो भाग है, जिसे दानवी त्रिकोण / शैतानी त्रिभुज / मौत के त्रिकोण / भुतहा त्रिकोण ( डेविल्स ट्राइएंगल ) भी कहा जाता है क्योकि वर्ष 1854 से इस क्षेत्र में कुछ ऐसी घटनाऍं / दुर्घटनाऍं घटित होती रही हैं। यह एक रहस्यमयी जलक्षेत्र जो उत्तरी अटलांटिक महासागर में स्थित है, जिसकी गुत्थी आज तक कोई नहीं सुलझा सका है। यहाँ अब तक सैकड़ों - हज़ारों की संख्या में विमान, पानी के जहाज़ तथा व्यक्ति गये और संदिग्ध रूप से लापता हो गये और लाख कोशिशों के बाद भी उनका पता नहीं लगाया जा सका है। ऐसा कभी-कभार नहीं, बल्कि कई बार हो चुका है। यही वह कारण है कि आज भी इसके आस-पास से गुजरने वाले जहाजों और वायुयानों के चालक दल के सदस्य व यात्री सिहर उठते हैं। सैकडॊं वर्षों से यह त्रिकोण वैज्ञानिकों, इतिहासकर्ताओं और खोजकर्ताओं के लिए भी एक बड़ा रहस्य बना हुआ है।
अटलांटिक महासागर के इस भाग में जहाजों और वायुयानों के गायब होने की जो घटनाएं अब तक हुई हैं उनमें पाया गया है कि जब भी कोई जहाज़ या वायुयान यहां पहुंचता है, उसके राडार, रेडियो वायरलेस और कम्पास जैसे यन्त्र या तो ठीक से काम नहीं करते या फिर धीरे-धीरे काम करना ही बन्द कर देते हैं। जिस से इन जहाजों और वायुयानों का शेष विश्व से संपर्क टूट जाता है। उनके अपने दिशासूचक यन्त्र भी ख़राब हो जाते हैं। इस प्रकार ये अपना मार्ग भटक कर या तो किसी दुघर्टना का शिकार हो जाते हैं या फिर इस रहस्यमय क्षेत्र में कहीं गुम होकर इसके रहस्य को और भी अधिक गहरा देते हैं। कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि इस क्षेत्र में भौतिक के कुछ नियम बदल जाते हैं, जिस कारण ऐसी दुर्घटनाएं होती हैं। कुछ लोग इसे किसी परालौकिक ताकत की करामात मानते हैं, तो कुछ को यह सामान्य घटनाक्रम लग रहा है। यह विषय कितना रोचक है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इस पर कई किताबें और लेख लिखे जाने के साथ ही फ़िल्में भी बन चुकी हैं। तमाम तरह के शोध भी हुए लेकिन तमाम शोध और जांच - पड़ताल के बाद भी इस नतीजे पर नहीं पहुंचा जा सका है कि आखिर गायब हुए जहाजों का पता क्यों नहीं लग पाया, उन्हें आसमान निगल गया या समुद्र लील गया, दुर्घटना की स्थिति में भी मलबा तो मिलता, लेकिन जहाजों और विमानों का मलबा तक नहीं मिला ।
बरमूडा त्रिकोण की स्थित
संयुक्त राज्य अमेरिका के दक्षिण पूर्वी अटलांटिक महासागर के अक्षांश 25 डिग्री से 45 डिग्री उत्तर तथा देशांतर 55 से 85 डिग्री के बीच फैले 39,00,000 वर्ग किमी0 के बीच फैली जगह, जोकि एक काल्पनिक त्रिकोण जैसी दिखती है, बरमूडा त्रिकोड़ अथवा बरमूडा त्रिभुज के नाम से जानी जाती है। इस त्रिकोण के तीन कोने बरमूडा, मियामी तथा सेन जआनार, पुतौरिका को स्पर्श करते हैं तथा बरमूडा ट्राएंगल -- स्ट्रेट्स ऑफ फ्लॉरिडा, यूर्टोरिको एवं अटलांटिक महासागर के बीच स्थित बरमूडा द्वीप के मध्य स्थित है। ज्यादातर दुर्घटनाएं त्रिकोण की दक्षिणी सीमा के पास होती है, जो बहामास और फ्लॉरिडा के पास स्थित है। सदियों से चर्चा का विषय रहे इस त्रिकोण के क्षेत्रफल को लेकर भी तरह - तरह की बातें कही और लिखी गई हैं। इस मसले पर शोध कर चुके कुछ लेखकों ने इसकी परिधि फ्लोरिडा, बहमास, सम्पूर्ण केरेबियन द्वीप तथा महासागर के उत्तरी हिस्से के रूप में बाँधी है। कुछ ने इसे मैक्सिको की खाड़ी तक बढ़ाया है। शोध करने वालों में इसके क्षेत्रफल को लेकर सर्वाधिक चर्चा हुई है।
कोलंबस और बरमूडा त्रिकोण
बरमूडा ट्राइएंगल में न जाने ऐसी कौन सी रहस्यमय शक्ति है जो बड़े से बड़े जहाज़ और हवा में उड़ते विमानों को भी अपनी ओर खींच लेती है और फिर पलक झपकते ही सब कुछ गायब हो जाता है। बरमूडा ट्राइएंगल अबतक 100 से भी ज़्यादा हवाईजहाजों को निगल चुका है, हैरानी की बात है कि यहाँ गायब होने वाले सैकड़ों लोगों की लाशें तक नहीं मिली है। पिछले 500 सालों से रहस्यमय शक्ति का केन्द्र बने इस जलक्षेत्र के बारे में सबसे पहले अमेरिका को खोजने वाले क्रिस्टोफर कोलंबस ने दुनिया को बताया था। कोलम्बस ही वह पहले नाविक - खोजकर्ता थे, जिनका सामना बरमूडा ट्राइएंगल से हुआ था। 15 वीं शताब्दी के अन्त में क्रिस्टोफर कोलंबस पहला ऐसा व्यक्ति था जिसने सन् 1492 की अपनी समुद्री यात्रा के दौरान बरमूदा त्रिकोण में कम्पास के विचित्र व्यवहार की बात कही थी। जानकारों का मानना है कि जब कोलम्बस का जहाज़ बरमूडा ट्राइएंगल के क़रीब पहुँचा, तो उसके कम्पास ( दिशा बताने वाला यंत्र ) ने गड़बड़ी करना शुरू कर दी। इसके बाद उसके नाविकों में हड़कंप मच गया। ऐसा कहा जाता है कि इसके बाद कोलम्बस को आसमान से एक रहस्यमयी बिजली गिरती दिखाई दी और दिखाई दिया आग का एक बहुत बड़ा गोला, जो आसमान से निकलकर सीधे समुद्र में समा गया। हालांकि आधुनिक विद्वानों ने इसे भ्रम करार दिया है। कोलम्बस का जहाज़ जैसे-तैसे इस रहस्यमयी क्षेत्र से आगे तो बढ़ा लेकिन तब से लेकर अब तक क़रीब एक हज़ार लोग यहाँ लापता हो चुके हैं। परन्तु इस क्षेत्र में जहाजों और वायुयानों के गायब होने की ज्ञात घटनाएं 19 वीं और 20 वीं सदी में ही ज़्यादा हुईं।
बरमूडा त्रिकोण का इतिहास
बरमूडा ट्रायएंगल अब तक कई जहाजों और विमानों को अपने आगोश में ले चुका है, जिसके बारे में कुछ पता नहीं चल पाया। सबसे पहले 1872 में जहाज़ द मैरी बरमूडा त्रिकोण में लापता हुआ, जिसके बारे में कुछ पता नहीं चल पाया। लेकिन बारमूडा ट्रायएंगल का रहस्य दुनिया के सामने पहली बार तब सामने आया, जब 16 सितंबर 1950 को पहली बार इस बारे में अखबार में लेख भी छपा था। दो साल बाद फैट पत्रिका ने ‘सी मिस्ट्री एट अवर बैक डोर’ शीर्षक से जार्ज एक्स. सेंड का एक संक्षिप्त लेख भी प्रकाशित किया था। इस लेख में कई हवाई तथा समुद्री जहाजों समेत अमेरिकी जलसेना के पाँच टीबीएम बमवर्षक विमानों ‘फ्लाइट 19’ के लापता होने का ज़िक्र किया गया था। फ्लाइट 19 के गायब होने की घटना को काफ़ी गंभीरता से लिया गया। इसी सिलसिले में अप्रैल 1962 में एक पत्रिका में प्रकाशित किया गया था कि बरमूडा त्रिकोण में गायब हो रहे विमान चालकों को यह कहते सुना गया था कि हमें नहीं पता हम कहां हैं, पानी हरा है और कुछ भी सही होता नज़र नहीं आ रहा है । जलसेना के अधिकारियों के हवाले ये भी कहा गया था कि विमान किसी दूसरे ग्रह पर चले गए। यह पहला आर्टिकल था, जिसमें विमानों के गायब होने के पीछे किसी परलौकिक शक्ति यानी दूसरे ग्रह के प्राणियों का हाथ बताया गया। 1964 में आरगोसी नामक पत्रिका में बरमूडा त्रिकोण पर लेख प्रकाशित हुआ। इस लेख को विसेंट एच गोडिस ने लिखा था। इसके बाद से लगातार सम्पूर्ण विश्व में इस पर इतना कुछ लिखा गया कि 1973 में एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका में भी इसे जगह मिल गयी। वहीं बारमूडा त्रिकोण में विमान और जहाज़ के लापता होने का सिलसिला जारी रहा ।
बरमूडा त्रिकोण से जुड़े अनसुलझे घटनायें
- अबतक बरमूडा त्रिकोण में लापता हुआ जहाज़ -----
- 1872 में जहाज़ 'द मैरी सैलेस्ट' बरमूडा त्रिकोण में लापता हुआ, जिसका आजतक कुछ पता नहीं।
- 1945 में नेवी के पांच हवाई जहाज़ बरमूडा त्रिकोण में समा गये। ये जहाज़ फ्लाइट-19 के थे।
- 1947 में सेना का सी-45 सुपरफोर्ट जहाज़ बरमूडा त्रिकोण के ऊपर रहस्यमयी तरीके से गायब हो गया।
- 1948 में जहाज़ ट्यूडोर त्रिकोण में खो गया। इसका भी कुछ पता नहीं। ( डीसी-3 )
- 1950 में अमेरिकी जहाज़ एसएस सैंड्रा यहां से गुजरा, लेकिन कहां गया कुछ पता नहीं।
- 1952 में ब्रिटिश जहाज़ अटलांटिक में विलीन हो गया। 33 लोग मारे गये, किसी के शव तक नहीं मिले।
- 1962 में अमेरिकी सेना का केबी-50 टैंकर प्लेन बरमूडा त्रिकोण के ऊपर से गुजरते वक़्त अचानक लापता हुआ।
- 1972 में जर्मनी का एक जहाज़ त्रिकोण में घुसते ही डूब गया। इस जहाज़ का भार 20 हज़ार टन था।
- 1997 में जर्मनी का विमान बरमूडा त्रिकोण में घुसते ही कहां गया, कुछ पता नहीं।
- द मैरी सैलेस्ट
बरमूदा त्रिकोण के संबन्द्ध में सबसे अधिक रहस्यमयी घटना को `मैरी सैलेस्ट´ नामक जहाज़ के साथ जोड़ कर देखा जाता है। 5 नवम्बर, 1872 को यह जहाज़ न्यूयॉर्क से जिनोआ के लिए चला, लेकिन वहां कभी नहीं पहुंच पाया। बाद में ठीक एक माह के उपरान्त 5 दिसम्बर, 1872 को यह जहाज़ अटलांटिक महासागर में सही-सलामत हालत में मिला, परन्तु इस पर एक भी व्यक्ति नहीं था। अन्दर खाने की मेज सजी हुई थी, किन्तु खाने वाला कोई न था। इस पर सवार सभी व्यक्ति कहां चले गये ? खाने की मेज किसने, कब और क्यों लगाई ? ये सभी सवाल आज तक एक अनसुलझी पहेली ही बने हुए हैं।
- फ्लाइट 19
इसी प्रकार अमेरिकी नौ - सेना में टारपीडो बमवर्षक विमानों के दस्ते फ्लाइट 19 के पांच विमानों ने 5 दिसम्बर, 1945 को लेफ्टिनेंट चाल्र्स टेयलर के नेतृत्व में 14 लोगों के साथ `फोर्ट लोडअरडेल´, फलोरिडा से इस क्षेत्र के ऊपर उड़ान भरी और फिर ये लोग कभी वापिस नहीं लौट सके। जिसमें पॉंच तारपीडो यान नष्ट हो गये थे। इस स्थान पर पहुंचने पर लेफ्टिनेंट टेयलर के कंपास ने काम करना बन्द कर दिया था। `फ्लाइट 19´ के रेडियो से जो अन्तिम शब्द सुने गए वे थे, 'हमें नहीं पता हम कहाँ हैं, सब कुछ ग़लत हो गया है, पानी हरा है और कुछ भी सही होता नज़र नहीं आ रहा है। समुद्र वैसा नहीं दिखता जैसा कि दिखना चाहिए। हम नहीं जानते कि पश्चिम किस दिशा में है। हमें कोई भी दिशा समझ में नहीं आ रही है। हमें अपने अड्डे से 225 मील उत्तर पूर्व में होना चाहिए, लेकिन ऐसा लगता है कि, और उसके बाद आवाज़ आनी बंद हो गयी।' इस घटना के बाद 13 सदस्यों का बचाव दल एक समुद्रीयान के द्वारा `फलाइट 19´ की खोज में गया, परन्तु वह भी दुर्घटना का शिकार हो गया और कभी वापस नहीं आया। इसी सिलसिले में अप्रैल 1962 में एक पत्रिका में प्रकाशित किया गया था, जलसेना के अधिकारियों के हवाले से लिखा गया था कि विमान किसी दूसरे ग्रह पर चले गए। यह पहला लेख था, जिसमें विमानों के गायब होने के पीछे किसी परालौकिक शक्ति का हाथ बताया गया था। इसी बात को विंसेंट गाडिस, जान वालेस स्पेंसर, चार्ल्स बर्लिट्ज़, रिचर्ड विनर, और अन्य ने अपने लेखों के माध्यम से आगे बढ़ाया।
फ्लाइट 19 के गायब होने का घटनाक्रम में एरिजोना स्टेट विश्वविद्यालय के शोध लाइब्रेरियन और ‘द बरमूडा ट्रायंगल मिस्ट्रीः साल्व्ड’ के लेखक लारेंस डेविड कुशे ने काफ़ी शोध किया तथा उनका नतीजा बाकी लेखकों से अलग था। उन्होंने प्रत्यक्षदर्शियों के हवाले से विमानों के गायब होने की बात को ग़लत करार दिया। कुशे ने लिखा कि विमान प्राकृतिक आपदाओं के चलते दुर्घटनाग्रस्त हुए। इस बात को बाकी लेखकों ने नज़र अंदाज़कर दिया था। इस सम्बंध में चार्ल्स बर्लिट्ज ने 1974 में अपनी एक पुस्तक के द्वारा इस रहस्य की पर्तों को खोजने का दावा किया था। उसने अपनी पुस्तक 'दा बरमूडा ट्राइएंगिल मिस्ट्री साल्व्ड' में लिखा था कि यह घटना जैसी बताई जाती है, वैसी है नही। बॉबरों के पायलट अनुभवी नहीं थे। चार्ल्स के अनुसार वे सभी चालक उस क्षेत्र से पूरी तरह से अनभिज्ञ थे और सम्भवत: उनके दिशा सूचक यंत्र में ख़राबी होने के कारण ख़राब मौसम में एक दूसरे से टकरा कर नष्ट हो गये।
- 1918 में `साइक्लोप्स´, 1948 में `डीसी-3´, 1951 में `सी-124 ग्लोबमास्टर´, 1963 में `मरीन सल्फरीन´ और 1968 में परमाणु शक्ति चालित पनडुब्बी `स्कॉरपियन´ आदि जैसे कई जहाज़ तथा वायुयान इस क्षेत्र में या तो गुम हो चुके हैं या फिर किसी अनजान दुर्घटना के शिकार बने हैं। पिछली दो शताब्दियों में 50 से ज़्यादा जहाज, 20 से ज़्यादा वायुयान और हज़ार से ज़्यादा व्यक्ति बरमूदा त्रिभुज की रहस्यमयी शक्तियों के जाल में फंस चुके हैं।
बरमूडा त्रिकोण में हादसों के कारण और शोध
बरमूडा ट्राएंगल है, मौत का ट्राएंगल, 125 हवाई जहाजों और 50 जहाजों को लील चुका है। विज्ञान की इतनी प्रगति के बाद भी कोई इसका रहस्य खोल नहीं पाया। बरमूडा त्रिकोण में होने वाले हादसों के कारणों को अभी तक पक्के तौर पर नहीं जाना जा सका है। बारमूडा त्रिभुज की इस उलझी हुई गुत्थी को आज तक कोई भी व्यक्ति ठीक से नहीं सुलझा पाया। इस रहस्मयी क्षेत्र के विषय में सिद्धान्त तो कई प्रस्तुत किए गए, लेकिन उनमें से कोई भी पूर्णत सन्तुष्ट नहीं करता। इस संदर्भ में अटकलें और अनुमान ही ज़्यादा लगाए गए हैं। वैज्ञानिकों ने इसके पीछे ऐसे कारण बताए हैं जो इन घटनाओं के लिए ज़िम्मेदार हैं। ये कारण इस प्रकार हैं -----
- मीथेन गैस
कुछ रसायन शास्त्रियों क मत है कि उस क्षेत्र में 'मीथेन हाइड्रेट' नामक रसायन इन दुर्घटनाओं का कारण है। समुद्र में बनने वाला यह हाइड्राइट जब अचानक ही फटता है, तो अपने आसपास के सभी जहाजों को चपेट में ले सकता है। यदि इसका क्षेत्रफल काफ़ी बड़ा हो, तो यह बड़े से बडे जहाज़ को डुबो भी सकता है। वैज्ञानिकों का मत है कि हाइड्राइट के विस्फोट के कारण डूबा हुआ जहाज़ जब समुद्र की अतल गहराई में समा जाता है, तो वहॉं पर बनने वाले हाइड्राइट की तलछट के नीचे दबकर गायब हो जाता है। यही कारण है कि इस तरह से गायब हुए जहाजों का बाद में कोई पता-निशां नहीं मिलता। ऑस्ट्रेलिया में किए गए शोध से पता चला है कि इस समुद्री क्षेत्र के बड़े हिस्से में मिथेन हाईड्राइड की बहुलता है। इससे उठने वाले बुलबुले भी किसी जहाज़ के अचानक डूबने का कारण बन सकते हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार ये बुलबुले पानी के घनत्व में कमी लाकर जहाज़ को डुबो देने की क्षमता रखते हैं। इस सिलसिले में अमेरिकी भौगोलिक सर्वेक्षण विभाग (यूएसजीएस) ने एक श्वेतपत्र भी जारी किया था। यह बात और है कि यूएसजीएस की वेबसाइट पर यह रहस्योद्घाटन किया गया है कि बीते 15000 सालों में समुद्री जल में से गैस के बुलबुले निकलने के प्रमाण नहीं मिले हैं। इस क्षेत्र में होने वाले वायुयानों की दुर्घटना के सम्बंध में वैज्ञानिकों का मत है कि इसी प्रकार जब मीथेन बड़ी मात्रा में वायुमण्डल में फैलती है, तो उसके क्षेत्र में आने वाले यान का मीथेन की सांद्रता के कारण इंजन में ऑक्सीजन का अभाव हो जाने सेवह बंद हो जाता है। ऐसी दशा में विमान पर चालक का नियंत्रण समाप्त हो जाता है और वह समुद्र के पेट में समा जाता है। अमेरिकी भौगोलिक सवेक्षण के अनुसार बरमूडा की समुद्र तलहटी में मीथेन का अकूत भण्डार भरा हुआ है। यही वजह है कि वहॉं पर जब-तब इस तरह की दुर्घटनाऍं होती रहती हैं।
- चुम्बकीय क्षेत्र
बहुत से विद्वानों का मत है कि सागर के इस भाग में एक शक्तिशाली चुम्बकीय क्षेत्र होने के कारण जहाजों में लगे उपकरण यहाँ काम करना बंद कर देते हैं तथा रेडियो तरंगों के संकेतों को काट कर इन यन्त्रों को ख़राब कर देता है इससे जहाज़ रास्ता भटक जाते हैं और दुर्घटना का शिकार हो जाते हैं। यानी यहां भौतिक के कुछ नियम बदल जाते हैं।
- इलेक्ट्रोमेगनेटिक फिल्ड
कुछ प्रत्यक्षदर्शियों ने बरमूडा टायएंगल के आसमान में बादलों के बीच तेज़ आवाज़ के बीच बिजलियां कड़कड़ते हुए देखने की बात कही, जिससे वहां इलेक्ट्रोमेगनेटिक फिल्ड बनता है और फिर बादल और समंदर के बीच बबंडर उठता है, जिसे इलेक्ट्रोनिक फॉग कहा गया। जिसमें फंस कर जहाज़ और विमान लापता हो जाते हैं। लेकिन बरमूडा में इलेक्ट्रानिक फॉग किस तरह बनता है, इसके बारे में जानकारी नहीं हैं।
- परग्रही
इसका रहस्य तब और भी अधिक गहरा हो जाता है जब कुछ लोग इन दुर्घटनाओं को परग्रही शक्तितियों और `उड़नतश्तरियों´ से जोड़ कर देखते हैं । इस त्रिकोण के पास सबसे ज़्यादा यूएफओ दिखने की बात सामने आई है। लोगों का कहना है कि इन उड़नतश्तरियों में सवार दूसरे ग्रह के प्राणी ही इन दुर्घटनाओं के ज़िम्मेदार हैं क्योंकि वे नहीं चाहते कि उनके इस क्षेत्र में कोई पृथ्वीवासी आवागमन करके उनके रहस्य को जान जाए या उनके कार्य में बाधा ड़ाले और इसलिए हो सकता है कि बरमूडा त्रिकोण दूसरे ग्रह के प्राणियों का रिसर्च स्टेशन हो। इसलिए परग्रही शक्तियां जहाजों और विमानों को गायब करते हों और फिर उस पर रिसर्च करते हों। दुनिया भर में यूएफओ देखने की बात सामने आती ही रहती है। ऐसे में बरमूडा त्रिकोण से गायब होने वाले विमान और जहाज़ में परग्रही शक्तियों का हाथ होने से इंकार नहीं किया जा सकता है। लेकिन बरमूडा त्रिकोण के रहस्य में परग्रही शक्तियों का ही हाथ है, इस पर बस अंदाजा ही लगाया जा सकता है। क्योंकि इसका ठोस कोई प्रमाण नहीं है, इस लिए बरमूडा त्रिकोण आज भी है रहस्यमयी।
- भौगोलिक स्थिति
बरमूडा ट्राएंगल में विमानों व जहाजों के गायब होने के पीछे सबसे प्रमुख कारण इसकी भौगोलिक स्थिति को माना जाता है। उत्तर पश्चिम अटलांटिक महासागर में स्थित इस क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि यहां दाखिल होते ही विमानों के कंपास सही दिशा दिखाना बंद कर देते हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि इस क्षेत्र में भौतिकी के नियम लागू नहीं होते जिसके कारण हादसे होते हैं। इसके साथ ही चांद की स्थिति को भी इसके लिए ज़िम्मेदार माना जाता है।
- शक्तिशाली समुद्री तूफ़ान
अटलांटिक महासागर के इस क्षेत्र में शक्तिशाली तूफ़ान आते रहते हैं। इन तूफ़ानों में फंसकर वायुयान व समुद्री जहाज़ डूब जाते हैं।
- विशाल तूफ़ानी धाराएं
कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि यहां वायु की अति विशाल तूफ़ानी धाराएं ऊपर से नीचे की ओर बहती हैं तथा जहाज़ व वायुयान इन्हीं तीव्र वायु धाराओं की चपेट में आकर सागर में डूब जाते हैं, जिन्हें बाद में समुद्र की शक्तिशाली लहरें कहीं और बहा कर ले जाती हैं। लेकिन अगर इस तर्क को सही माने, तो प्रश्न उठता है कि फिर रेडियों, वायरलेस, राडार और कम्पास जैसे उपकरणों में ख़राबी क्यों पैदा होती है ?
- गल्फ स्ट्रीम
इस क्षेत्र में शक्तिशाली गल्फ स्ट्रीम चलती हैं। ये गल्फ स्ट्रीम मैक्सिको की खाड़ी से निकलकर फ्लोरिडा के जलडमरू से उत्तरी अटलांटिक तक जाती हैं। यह गल्फ स्ट्रीम असल में समुद्र के अंदर नदी की तरह होती हैं। इसके तेज़ बहाव में जहाजों के डूबने की संभावना रहती है।
- मानवीय त्रुटि
इस क्षेत्र में वायुयानों और जहाजों के खो जाने की घटनाओं के पीछे मानवीय ग़लतियों को भी ज़िम्मेदार माना जाता है। जैसे इस इलाके में गायब हुए टैंकर वी. ए. के बारे में कहा जाता है कि इसके कर्मचारियों के प्रशिक्षण में कमी थी, जिसके कारण बेंजीन अवशिष्ट की सफाई में ग़लती हुई और जहाज़ डूब गया।
- और कई दूसरे कारण
कुछ लोग इन घटनाओं को संयोग मानते हैं, परन्तु इतने सारे जहाजों और वायुयानों का केवल इस विशेष त्रिभुजाकार क्षेत्र में ही गायब होना मात्र संयोग नहीं हो सकता। जबकि कुछ वैज्ञानिक इन दुघर्टनाओं का कारण गुरुत्वाकर्षण की शक्ति बताते हैं। कुछ लोग इन घटनाओं को प्राकृति बताते हुए समुद्र के इस भाग के नीचे स्थित स्फटिक पदार्थों, जलचक्रों (भंवरों), समुद्री तल से उत्पन्न समुद्री भूचालों को इनका दोषी मानते हैं तथा बहुत से ऐसे व्यक्ति हैं जिनका मानना है कि ये दुर्घटनाएं मशीनी ख़राबी मात्र ही हैं। बरमूदा त्रिभुज पर डॉक्युमेंट्री फिल्म बनाने वाले रिचर्ड विनर का कहना है कि इस क्षेत्र के एक विशेषज्ञ ने तो अपने साक्षात्कार में यहां तक कहा था कि वहां गायब होने वाले जहाज़ और वायुयान एक भिन्न आयाम या दृश्यता में अभी भी वहीं हैं और इस भिन्न आयाम का कारण संभवत; `यूएफओ´ अर्थात् उड़नतश्तरी द्वारा स्थापित किया गया चुम्बकीय वातावरण ही है।
इस तरह की तमाम घटनाऍं उस क्षेत्र में होने का दावा समय समय पर किया जाता रहा है। इन रहस्यमयी घटनाओं के पीछे क्या कारण है ? यह जानने के लिए कई दशकों से वैज्ञानिक, अनुसंधानकर्ता, खोजकर्ता एवं शोधकर्ता लगे हुए हैं और वे लोग दावा भी करते हैं कि उन्होंने इन घटनाओं का हल ढूंढ निकाला है, किन्तु अभी भी बहुत से प्रश्न ऐसे हैं जिनका कोई सही व सटीक उत्तर नहीं मिल सका है। इसीलिए आज तक बरमूदा का यह रहस्यमयी त्रिभुजाकार क्षेत्र अपने आप में एक अनसुलझा रहस्य ही बना हुआ है। इस रहस्य से कभी पूरी तरह से पर्दा हटेगा, यह कहना मुश्किल है।
बरमूड त्रिकोण व्यस्त समुद्री मार्ग
रहस्यमयी बरमूडा ट्राएंगल के एरिया को लेकर रिसर्च किया गया। बारमूडा पर पर रिसर्च कर चुके कुछ वैज्ञानिको ने इसका एरिया फ्लोरिडा, बहमास और पूरा केरेबियन द्वीप के साथ महासागर के उत्तरी हिस्से के रूप में बताया। तो कुछ ने इसे मैक्सिको की खाड़ी तक बढ़ाया है। यानी रिसर्च के बाद बारमूडा के एरिया को लेकर अलग अलग राय दिए गए। समंदर में ये त्रिकोण भले ही खतरनाक रहे है, लेकिन ऐसा नहीं है कि बारमूडा त्रिकोण से होकर कोई जहाज़ नहीं गुजरता है। इस क्षेत्र में हवाई और समुद्री यातायात भी बहुतायत में रहता है, ये समुद्री इलाका दुनिया की व्यस्तम समुद्री यातायात वाले जलमार्ग के रूप में की जाती है। यहां से अमेरिका, यूरोप और केरेबियन द्वीपों के लिए रोजाना कई जहाज़ निकलते हैं, यही नहीं फ्लोरिडा, केरेबियन द्वीपों और दक्षिण अमेरिका की तरफ जाने वाले हवाई जहाज़ भी यहीं से गुजरते हैं। यही वजह है कि कुछ लोग यह मानने को तैयार नहीं हैं कि इतने यातायात के बावजूद कोई जहाज़ अचानक से गायब हो जाए या फिर ऐसे में कोई दुर्घटना जाए, तो किसी को कैसे पता नहीं चल पाएगा। लेकिन हकीकत तो यही है कि इस क्षेत्र से गायब हुए जहाज़ और विमान का अब कुछ पता नहीं चल पाया है
कितने विमान और जहाज़ हुए हैं लापता
इस दानवी त्रिभुज के बारे में कहा जाता है कि जो यहां गया वापस न आ सका। सबसे बड़ी बात तो यह है कि यहां गायब होने वाले जहाजों को ढूंढ़ पाना भी आसान नहीं होता। इस इलाके में गायब होने वाले जहाजों का कोई अता-पता नहीं चलता। यही कारण है कि बहुत से जहाजों व विमानों के गायब होने का कोई लिखित ब्यौरा भी नहीं है। दर्ज किए गए ब्यौरे के अनुसार इस इलाके में 125 वायुयान और क़रीब 50 जहाज़ डूब चुके हैं।
आखिर कहां पर है बारमूडा
बरमूडा उत्तर अटलांटिक महासागर में स्थित ब्रिटेन का प्रवासी क्षेत्र है। यह संयुक्त राज्य अमेरिका के पूर्वी तट पर मियामी (फ्लोरिडा) से सिर्फ़ 1770 किलोमीटर और हैलिफैक्स, नोवा स्कोटिया (कनाडा) के दक्षिण में 1350 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह सबसे पुराना और सबसे अधिक जनसंख्या वाला ब्रिटेन का प्रवासी क्षेत्र है।
बरमूडा ट्राइएंगल रहस्य नहीं बल्कि टाइम जोन का एक छोर
जानकारों की मानें तो बरमूडा ट्राइएंगल रहस्य नहीं बल्कि टाइम जोन का एक छोर है। धरती पर एक ब्लैक होल की तरह है बरमूडा ट्राइएंगल दूसरी दुनिया में जाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। आसान सी भाषा में कहें तो बरमूडा ट्राइएंगल में एक ख़ास तरह के हालात पैदा होते हैं जिसके चलते वो एक टाइम जोन से दूसरे में जाने का ज़रिया बन जाता है। टाइम जोन समझाने के लिए हम एक और तरीका अपनाते हैं। मान लीजिए कि आप दिल्ली में हैं। अगर कुछ ऐसा हो जाए जिससे आप महाभारत के दौर में चले जाएं कौरवों-पांडवों की लड़ाई चल रही हो और आप भी वहां मौजूद हों। या फिर कुछ उस तरह जैसा फ़िल्म लव स्टोरी 2050 में हुआ प्रियंका चौपड़ा की मौत के बाद हीरो टाइम मशीन का सहारा लेकर 2050 में पहुंच जाता है। यानि पलक झपकते ही कई सालों का सफर तय कर लिया जाता है। कुल मिलाकर बरमूडा ट्राइएंगल को टाइम जोन में जाने का ज़रिया भी माना जाता है। यानि एक रहस्यमय टाइम मसीन की तरह काम करता है बरमूडा ट्राइएंगल।
सबसे बड़ी बात ये कि इस टाइम जोन का इस्तेमाल इंसान नहीं बल्कि दूसरी दुनिया के लोग करते हैं। यानि बरमूडा ट्राइएंगल धरती से हज़ारों किलोमीटर दूर बसे हुए एलियनों के लिए एक पोर्टल है। इस थ्योरी को और समझने के लिए ये वैज्ञानिक तथ्य जानने बेहद ज़रूरी हैं जो सालों की तहकीकात के बाद सामने आए। साल में 25 बार ऐसा होता है जब बरमूडा ट्राइएंगल का आकार सिकुड़कर सिर्फ़ ढाई वर्गमील तक हो जाता है। यानि 15 हज़ार वर्गमील से घटकर ढाई मील। सिर्फ़ 28 मिनट तक के लिए ख़ास तरह के हालात बने रहते हैं। इस वक़्त जो भी विमान या जहाज़ बरमूडा ट्राइएंगल के पास से गुजरता है। भयंकर शक्तिशाली इलेक्ट्रोमैगनेटिक तरंगें उसे अपनी ओर खींच लेती है। इस दौरान बरमूडा ड्राइएंगल टाइम जोन के पहले मुहाने की तरह काम करता है। दूसरा मुहाना धरती से लाखों किलोमीटर दूर होता है। यानि एक बार जो चीज़ बरमूडा ट्राइएंगल में गई वो दूसरी दुनिया में फेंक दी जाती है। इसी सिद्धांत को एलियन भी धरती पर आने के लिए अपनाते हैं। दूर अंतरिक्ष में टाइम जोन के एक मुहाने से एलियन भीतर दाखिल होते हैं पलक झपकते ही टाइम जोन का आकार बढ़ता है और वो उसके दूसरे छोर पर पहुंच जाते हैं यही दूसरा छोर है बरमूडा ट्राइएंगल। यही वजह है कि बरमूडा ट्राइएंगल के इर्दगिर्द एलीयन देखे जाने की घटनाएं सबसे ज्य़ादा सामने आती हैं। कहा तो ये भी जाता है कि टाइम जोन पर रिसर्च के लिए इसी हिस्से में अमेरिका की एक बहुत बड़ी सीक्रेट लैबोरेटरी है। यहां पर एरिया-51 की तरह ही एलीयन से जुड़ी रिसर्च भी की जाती है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ