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ज्वालाकाच वस्तुत: प्राकृतिक काच का दूसरा नाम है। नवीन परिभाषा के अनुसार "ज्वालाकाच उस स्थूल, अपेक्षाकृत सघन परंतु प्राय: झावाँ की भाँति दिखने वाले, गहरे [[भूरा रंग|भूरे]] या [[काला रंग|काले]], साँवले, [[पीला रंग|पीले]] या चितकबरे काच को कहते हैं, जो तोड़ने पर सूक्ष्म शंखाभ विभंग<ref>conchoidal fracture</ref> प्रदर्शित करता है। इस शिला का यह विशेष गुण है।<ref name="aa">{{cite web |url=http:// | ज्वालाकाच वस्तुत: प्राकृतिक काच का दूसरा नाम है। नवीन परिभाषा के अनुसार "ज्वालाकाच उस स्थूल, अपेक्षाकृत सघन परंतु प्राय: झावाँ की भाँति दिखने वाले, गहरे [[भूरा रंग|भूरे]] या [[काला रंग|काले]], साँवले, [[पीला रंग|पीले]] या चितकबरे काच को कहते हैं, जो तोड़ने पर सूक्ष्म शंखाभ विभंग<ref>conchoidal fracture</ref> प्रदर्शित करता है। इस शिला का यह विशेष गुण है।<ref name="aa">{{cite web |url=http://bharatkhoj.org/india/%E0%A4%9C%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%9A |title= ज्वालाकाच|accessmonthday= 05 जून|accessyear= 2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref> | ||
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प्राचीन काल में ज्वालाकाच का प्रयोग होता था और वर्तमान समय में भी अपने भौतिक गुणों एवं रासायनिक संरचना के कारण इसका प्रयोग हो रहा है। अभी हाल तक [[अमरीका]] की रेड इंडियन जाति अपने [[बाण अस्त्र|बाणों]] और भालों की नोक इसी शिला के तेज टुकड़ों से बनाती थी। [[प्लिनी]] के अनुसार ऑब्सिडियनस नामक व्यक्ति ने ईथियोपिया देश मे सर्वप्रथम इस शिला की खोज की थी। अत: इसका नाम 'ऑब्सिडियन' पड़ा। जॉनहिल (1746 ई.) के अनुसार एंटियंट जाति इस शिला पर पॉलिश चढ़ाकर दर्पण के रूप में इसका उपयोग करती थी। इनकी [[भाषा]] में ऑब्सिडियन का जो नाम था, वह कालांतर में लैटिन भाषा में क्रमश: 'ऑपसियनस', 'ऑपसिडियनस' तथा 'ऑवसिडियनस'<ref>obsiodianus</ref> लिखा जाने लगा। [[शब्द (व्याकरण)|शब्द]] की व्युत्पत्ति प्राय: पूर्णतया विस्मृत हो चुकी है, एवं भ्रमवश यह मान लिया गया है कि ऑब्सिडियन नाम उसके आविष्कर्ता ऑब्सिडियनस के नाम पर पड़ा। | प्राचीन काल में ज्वालाकाच का प्रयोग होता था और वर्तमान समय में भी अपने भौतिक गुणों एवं रासायनिक संरचना के कारण इसका प्रयोग हो रहा है। अभी हाल तक [[अमरीका]] की रेड इंडियन जाति अपने [[बाण अस्त्र|बाणों]] और भालों की नोक इसी शिला के तेज टुकड़ों से बनाती थी। [[प्लिनी]] के अनुसार ऑब्सिडियनस नामक व्यक्ति ने ईथियोपिया देश मे सर्वप्रथम इस शिला की खोज की थी। अत: इसका नाम 'ऑब्सिडियन' पड़ा। जॉनहिल (1746 ई.) के अनुसार एंटियंट जाति इस शिला पर पॉलिश चढ़ाकर दर्पण के रूप में इसका उपयोग करती थी। इनकी [[भाषा]] में ऑब्सिडियन का जो नाम था, वह कालांतर में लैटिन भाषा में क्रमश: 'ऑपसियनस', 'ऑपसिडियनस' तथा 'ऑवसिडियनस'<ref>obsiodianus</ref> लिखा जाने लगा। [[शब्द (व्याकरण)|शब्द]] की व्युत्पत्ति प्राय: पूर्णतया विस्मृत हो चुकी है, एवं भ्रमवश यह मान लिया गया है कि ऑब्सिडियन नाम उसके आविष्कर्ता ऑब्सिडियनस के नाम पर पड़ा। |
06:40, 6 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण
ज्वालाकाच (अंग्रेज़ी: Obsidian) रायोलाइट[1] नामक ज्वालामुखी शिला का अत्यंत काचीय रूप है। अत: रासायनिक एवं खनिज संरचना में ज्वालाकाच रायोलाइट अथवा ग्रेनाइट के समतुल्य है, परंतु अंतर के दृष्टिकोण से भौतिक संरचना एवं बाह्य रूप में दोनों में पर्याप्त भिन्नता है।
परिभाषा
ज्वालाकाच वस्तुत: प्राकृतिक काच का दूसरा नाम है। नवीन परिभाषा के अनुसार "ज्वालाकाच उस स्थूल, अपेक्षाकृत सघन परंतु प्राय: झावाँ की भाँति दिखने वाले, गहरे भूरे या काले, साँवले, पीले या चितकबरे काच को कहते हैं, जो तोड़ने पर सूक्ष्म शंखाभ विभंग[2] प्रदर्शित करता है। इस शिला का यह विशेष गुण है।[3]
खोज व नामकरण
प्राचीन काल में ज्वालाकाच का प्रयोग होता था और वर्तमान समय में भी अपने भौतिक गुणों एवं रासायनिक संरचना के कारण इसका प्रयोग हो रहा है। अभी हाल तक अमरीका की रेड इंडियन जाति अपने बाणों और भालों की नोक इसी शिला के तेज टुकड़ों से बनाती थी। प्लिनी के अनुसार ऑब्सिडियनस नामक व्यक्ति ने ईथियोपिया देश मे सर्वप्रथम इस शिला की खोज की थी। अत: इसका नाम 'ऑब्सिडियन' पड़ा। जॉनहिल (1746 ई.) के अनुसार एंटियंट जाति इस शिला पर पॉलिश चढ़ाकर दर्पण के रूप में इसका उपयोग करती थी। इनकी भाषा में ऑब्सिडियन का जो नाम था, वह कालांतर में लैटिन भाषा में क्रमश: 'ऑपसियनस', 'ऑपसिडियनस' तथा 'ऑवसिडियनस'[4] लिखा जाने लगा। शब्द की व्युत्पत्ति प्राय: पूर्णतया विस्मृत हो चुकी है, एवं भ्रमवश यह मान लिया गया है कि ऑब्सिडियन नाम उसके आविष्कर्ता ऑब्सिडियनस के नाम पर पड़ा।
काचीय रूप
साधारणत: रायोलाइट के काचीय रूप को ही ऑब्सिडियन कहते हैं, परंतु ट्रेकाइट[5] अथवा डेसाइट नामक ज्वालामुखी अम्लशैल[6] भी अत्यंत तीव्र गति से शीतल होकर प्राकृतिक काच को जन्म देते हैं। पर ऐसे शैलों को 'ट्रेफाइट' या 'डेसाइट' ऑब्सिडियन कहते हैं।[3]
रंग तथा घनत्व
सूक्ष्मदर्शी यंत्र से देखने पर ज्ञात होता है कि ऑब्सिडियन शैल का अधिकांश भाग काँच से निर्मित है। इसके अंतरावेश में अणुमणिभस्फट[7] देखे जा सकते हैं। इन मणिभों के विशेष विन्यास से स्पष्ट आभास मिलेगा कि कभी 'शैलमूल' या 'मैग्मा'[8] में प्रवाहशीलता थी। शिला का गहरा रंग इन्हीं सूक्ष्म स्फटों के बाहुल्य का प्रतिफल है। कभी-कभी ऑब्सिडियन धब्बेदार या धारीदार भी होता है। 'स्फेरूलाइट' तो इस शैल का सामान्य लक्षण है। ज्वालाकांच का आपेक्षिक घनत्व 2.30 से 2.58 तक होता है।
काचीय शिलाओं की उत्पत्ति
ऑब्सिडियन सदृश्य काचीय शिलाओं की उत्पत्ति ऐसे शैलमूलों के दृढ़ीभवन के फलस्वरूप होती है, जिनकी संरचना स्फटिक[9] एवं क्षारीय फैलस्पार[10] के 'यूटेकटिक मिश्रणों के निकट हो। 'यूटेकटिक मिश्रण' दो खनिजों के अविरल समानुपात की वह स्थिति है, जब ताप की एक निश्चित अवस्था में दोनों घटकों का एक साथ मणिभ बनने लगे। यूटेकटिक बिंदुओं के निकट इस प्रकार के शैलमूल पर्याप्त श्यान[11] हो उठते हैं। फलस्वरूप या तो मणिभीकरण पूर्णत: अवरुद्ध हो जाता है, या अतिशय बाधापूर्ण अवस्था में संपन्न होता है। तीव्र गति से शीतल होने के कारण ऐसे शैलों का उद्भव होता है जो प्राय: पूर्णत: काचीय होते हैं।[3]
प्राप्ति स्थान
ऑब्सिडियन क्लिफ, यलोस्टोन पार्क, संयुक्त राज्य अमरीका में 75' से 100' मोटे लावा स्तराेें के रूप में ऑब्सिडियन मिलता है। भारत में गिरनार एवं पावागढ़ के लावा स्तरों से ऑब्सिडियन की प्राप्ति प्रचुर मात्रा में होती है।
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