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[[चित्र:Kushinagar.jpg|[[बुद्ध]]<br /> Budha|thumb|250px]]
{{सूचना बक्सा पर्यटन
'''कुशीनगर / Kushinagar'''<br />
|चित्र=Nirvana-Temple-Kushinagar.jpg
|चित्र का नाम=परिनिर्वाण मंदिर कुशीनगर
|विवरण='कुशीनगर' [[बुद्ध|भगवान बुद्ध]] से सम्बंधित अनेक ऐतिहासिक स्थलों के लिए प्रसिद्ध है। यह स्थान [[बौद्ध धर्म]] के अनुयायियों का प्रमुख तीर्थ स्थल है।
|राज्य=[[उत्तर प्रदेश]]
|केन्द्र शासित प्रदेश=
|ज़िला=कुशीनगर
|निर्माता=
|स्वामित्व=
|प्रबंधक=
|निर्माण काल=
|स्थापना=[[किंवदंती]] के अनुसार माना जाता है कि कुशीनगर की स्थापना [[राम|श्रीराम]] के पुत्र [[कुश]] ने की थी।
|भौगोलिक स्थिति=[[गोरखपुर]] से 51 कि.मी. की दूरी पर स्थित।
|मार्ग स्थिति=
|मौसम=
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|प्रसिद्धि=बौद्ध तीर्थ स्थान
|कब जाएँ=
|कैसे पहुँचें=
|हवाई अड्डा=[[बनारस]]
|रेलवे स्टेशन=[[देवरिया]]
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|कहाँ ठहरें=
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|संबंधित लेख=[[कुशीनगर का इतिहास]], [[बुद्ध]], [[मल्ल महाजनपद]],
|शीर्षक 1=क्षेत्रफल
|पाठ 1=2,873.5 कि.मी.<sup>2</sup>
|शीर्षक 2=आधिकारिक वेबसाइट
|पाठ 2=[http://www.kushinagar.nic.in/ कुशीनगर]
|अन्य जानकारी=सन [[1861]] ई. में  जब [[कनिंघम|जनरल कनिंघम]] ने खोज द्वारा इस नगर का पता लगाया तो यहाँ जंगल ही जंगल थे। उस समय इस स्थान का नाम 'माथा कुंवर का कोट' था।
|बाहरी कड़ियाँ=
|अद्यतन=
}}'''कुशीनगर''' अथवा '''कुशीनारा''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Kushinagar'') [[बुद्ध]] के महापरिनिर्वाण का स्थान है। यह [[उत्तर प्रदेश|उत्तर प्रदेश राज्य]] का एक प्रसिद्ध ज़िला तथा छोटा क़स्बा है। भगवान बुद्ध से सम्बंधित कई ऐतिहासिक स्थानों के लिए कुशीनगर संसार भर में प्रसिद्ध है। ज़िले का मुख्यालय कुशीनगर से लगभग 15 कि.मी. दूर पडरौना में स्थित है। कुशीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 28 पर [[गोरखपुर]] से 51 कि.मी. की दूरी पर पूरब में स्थित है। महात्मा बुद्ध का निर्वाण यहीं हुआ था। यहाँ मुख्यत: विश्व भर के [[बौद्ध धर्म|बौद्ध]] तीर्थयात्री भ्रमण के लिये आते हैं। कुशीनगर से पूरब की ओर बढ़ने पर लगभग 20 कि.मी. के बाद [[बिहार|बिहार राज्य]] आरम्भ हो जाता है।
==इतिहास==
{{main|कुशीनगर का इतिहास}}
कुशीनगर [[प्राचीन भारत]] के तत्कालीन [[महाजनपद|महाजनपदों]] में से एक एवं [[मल्ल महाजनपद|मल्ल राज्य]] की राजधानी था।<ref>[[अंगुत्तरनिकाय]], भाग 1, पृ. 213 तत्रैव, भाग 4 पृ. 252 महावस्तु, भाग 1 पृ. 34</ref> [[कनिंघम]] ने कुशीनगर को वर्तमान [[देवरिया ज़िला|देवरिया ज़िले]] में स्थित 'कसिया' से समीकृत किया है।<ref>ए. कनिंघम, दि ऐंश्येंट ज्योग्राफी आफ् इंडिया, पृ. 363</ref> अपने समीकरण की पुष्टि में उन्होंने '[[निर्वाण स्तूप, कुशीनगर|परिनिर्वाण मंदिर]]' के पीछे स्थित [[स्तूप]] में मिले ताम्रपत्र का उल्लेख किया है, जिस पर 'परिनिर्वाणचैत्य ताम्रपत्र इति' उल्लिखित है।<ref>आर्कियोलाजिकल् सर्वे आफ् इंडिया, वार्षिक रिपोर्ट, 1911-12, पृ. 17</ref> कनिंघम के इस समीकरण से विंसेंट स्मिथ<ref>विस्तृत, जर्नल् आफ़ दि रायल एशियाटिक सोसायटी (1902), पृ. 139 और आगे स्मिथ अर्ली हिस्ट्री आफ़ इंडिया (चतुर्थ संस्करण), पृ. 167, पादटिप्पणी-5 (स्मिथ का यह मत सर्वमान्य नहीं है, क्योंकि ह्वेनसांग के विवरणों के आधार पर कुछ निश्चित करना संभव नहीं है। ह्वेनसांग के आगमन के पश्चात् भी इस स्थान पर निरंतर परिवर्तन होते रहे। रोचक है, सारनाथ में भी, जिसकी स्थिति संदिग्ध नहीं है, ऐसी ही विषमता पाई जाती है।</ref> और पार्जिटर प्रभृति विद्वान् सहमत नहीं हैं। उनके अनुसार कसिया के [[अवशेष|अवशेषों]] एवं चीनी यात्री [[ह्वेनसांग]] के यात्रा विवरणों में पर्याप्त भिन्नता है। इस भिन्नता को ध्यान में रखते हुए स्मिथ ने कुशीनगर को [[नेपाल]] में पहाड़ियों की पहली श्रृंखला के पार स्थित होने के मत को उचित माना है।<ref>जर्नल आफ़ दि रायल एशियाटिक सोसायटी, 1913, पृ. 152 तु., विमल चरण लाहा, प्राचीन भारत का ऐतिहासिक भूगोल, पृ. 171</ref>


*कुशीनगर [[बुद्ध]] के महापरिनिर्वाण का स्थान है।
रीज डेविड्स के अनुसार यदि हम चीनी यात्रियों के यात्रा विवरणों पर विश्वास करें तो कुशीनगर के मल्लों का प्रदेश, [[शाक्य गणराज्य|शाक्य प्रदेश]] के पूर्व में पहाड़ी ढाल पर स्थित होना चाहिए। कुछ अन्य विद्वान् उनका प्रदेश शाक्यों के दक्षिण में एवं वज्जिगण के पूर्व में स्थित बतलाते हैं।<ref>रीज डेविड्स बुद्धिस्ट इंडिया, वाराणसी, इंडोलाजिकल बुक हाउस (1979) पुनर्मुद्रित, पृ. 26</ref> [[चित्र:Kushinagar-1.jpg|thumb|200px|left|[[भिक्कु|बौद्ध भिक्षु]] ध्यान स्थली, कुशीनगर]]लेकिन बाद के (1906-1907) पुरातात्विक उत्खनन से प्राप्त सामग्रियों के आधार पर [[कनिंघम]] की समीक्षा को उचित मानते हुए 'कसिया' और 'कुशीनगर' को एक ही मानना उचित होगा। कनिंघम को इन भग्नावशेषों से ‘महापरिनिर्वाण विहार’ नामांकित अनेक मृण्मुद्राएँ और स्तूप के भीतर से कुछ ताम्रपत्र भी मिले हैं। इनके अतिरिक्त इन [[खंडहर|खंडहरों]] से [[बुद्ध|महात्मा बुद्ध]] की वैसी ही विशाल मूर्ति प्राप्त हुई है, जैसी कि ह्वेनसांग ने कुशीनगर में देखी थी। 'तथागत' की निर्वाण मूर्ति बौद्ध शिल्पियों का प्रिय विषय रही है, परंतु कसिया जैसी पत्थर की विशाल प्रतिमा अन्यत्र नहीं मिलती। ये विभिन्न तथ्य भी कनिंघम के समीकरण के औचित्य की पुष्टि करते हैं।
*पूर्वी उत्तर प्रदेश के गोरखपुर ज़िले से 51 किमी की दूरी पर स्थित है।
====किंवदंती====
*किंवदंती के अनुसार यह नगर श्री [[राम|रामचन्द्र]] जी के ज्येष्ठ पुत्र [[लव कुश|कुश]] द्वारा बसाया गया था।  
*[[किंवदंती]] के अनुसार यह माना जाता है कि कुशीनगर [[अयोध्या]] के [[दशरथ|राजा दशरथ]] के पुत्र [[राम|रामचन्द्र]] के ज्येष्ठ पुत्र [[लव कुश|कुश]] द्वारा बसाया गया था।  
*बौध्द ग्रंथ महावंश<balloon title="महावंश2,6" style=color:blue>*</balloon> में कुशीनगर का नाम इसी कारण कुशावती भी कहा गया है। [[बौद्ध]]काल में यही नाम कुशीनगर या [[पालि भाषा|पाली]] में कुसीनारा हो गया।  
बौद्ध ग्रंथ '[[महावंश]]'<ref>महावंश2,6</ref> में कुशीनगर का नाम इसी कारण 'कुशावती' भी कहा गया है। [[बौद्ध]] काल में यही नाम कुशीनगर या [[पालि भाषा|पाली]] में 'कुसीनारा' हो गया।  
*एक अन्य बौद्ध किंवदंती के अनुसार [[तक्षशिला]] के [[इक्ष्वाकु]] वंशी राजा तालेश्वर का पुत्र तक्षशिला से अपनी राजधानी हटाकर कुशीनगर ले आया था। उसकी वंश परम्परा में बारहवें राजा सुदिन्न के समय तक यहाँ राजधानी रही। इनके बीच में कुश और महादर्शन नामक दो प्रतापी राजा हुए जिनका उल्लेख [[गौतम बुद्ध]] ने<balloon title="(महादर्शनसुत्त के अनुसार)"  style=color:blue>*</balloon> किया था।
*एक अन्य बौद्ध किंवदंती के अनुसार [[तक्षशिला]] के [[इक्ष्वाकु वंश|इक्ष्वाकु वंशी]] राजा तालेश्वर का पुत्र तक्षशिला से अपनी राजधानी हटाकर कुशीनगर ले आया था। उसकी वंश परम्परा में बारहवें राजा सुदिन्न के समय तक यहाँ राजधानी रही। इनके बीच में कुश और महादर्शन नामक दो प्रतापी राजा हुए, जिनका उल्लेख [[गौतम बुद्ध]] ने<ref>महादर्शनसुत्त के अनुसार</ref> किया था।
==नगर का वैभव==
[[चित्र:Shrilanka-Temple-Kushinagar.jpg|thumb|250px|श्रीलंका मन्दिर, कुशीनगर]]
*'महादर्शनसुत्त' में कुसीनारा (कुशीनगर) के वैभव का वर्णन है-'राजा महासुदर्शन के समय में कुशावती पूर्व से पश्चिम तक बारह [[योजन]] और उत्तर से दक्षिण तक सात [[योजन]] थी। कुशावती राजधानी  समृद्ध और सब प्रकार से सुख-शान्ति से भरपूर थी। जैसे देवताओं की [[अलकनन्दा]] नामक राजधानी समृद्ध है, वैसे ही कुशावती थी। यहाँ दिन रात [[हाथी]], घोड़े, रथ, भेरी, [[मृदंग]], गीत, [[झांझ]], ताल, [[शंख]] और खाओ-पिओ-के दस शब्द गूंजते रहते थे। नगरी सात परकोटों से घिरी थी। इनमें चार [[रंग|रंगों]] के बड़े-बड़े द्वार थे। चारों ओर ताल वृक्षों की सात पक्तियाँ नगरी को घेरे हुई थीं। इस पूर्व बुद्धकालीन वैभव की झलक हमें कसिया में खोदे गये कुओं के अन्दर से प्राय: बीस फुट की गहराई पर प्राप्त होने वाली भित्तियों के अवशेषों से मिलती है।


==कुसीनारा के वैभव का वर्णन==
*'[[महापरिनिब्बानसुत्त|महापरिनिर्वाणसुत्त]]' से ज्ञात होता है कि कुशीनगर बहुत समय तक समस्त [[जंबुद्वीप]] की राजधानी भी रही थी। [[बुद्ध]] के समय (छठी शती ई. पू.) में कुशीनगर [[मल्ल महाजनपद]] की राजधानी थी। नगर के उत्तरी द्वार से साल वन तक एक राजमार्ग जाता था, जिसके दोनों ओर [[साल वृक्ष|साल वृक्षों]] की पंक्तियाँ थीं। साल वन से नगर में प्रवेश करने के लिए पूर्व की ओर जाकर दक्षिण की ओर मुड़ना पड़ता था। साल वन से नगर के दक्षिण द्वार तक बिना नगर में प्रवेश किए ही एक सीधे मार्ग से पहुँचा जा सकता था। पूर्व की ओर [[हिरण्यवती नदी]] (राप्ती) बहती थी, जिसके तट पर मल्लों की अभिषेकशाला थी। इसे 'मुकुटबंधन चैत्य' कहते थे। नगर के दक्षिण की ओर भी एक नदी थी, जहाँ कुशीनगर का श्मशान था। बुद्ध ने कुशीनगर आते समय इरावती ([[अचिरवती नदी|अचिरवती]], [[अजिरावती नदी|अजिरावती]] या [[राप्ती नदी]]) पार की थी।<ref>बुद्ध चरित 25, 53</ref>
{{tocright}}
[[चित्र:A-Shop-in-kushinagar.jpg|thumb|250px|left|कुशीनगर स्थित एक दुकान]]
*'महादर्शनसुत्त' में कुसीनारा के वैभव का वर्णन है-'राजा महासुदर्शन के समय में कुशावती पूर्व से पश्चिम तक बारह [[योजन]] और उत्तर से दक्षिण तक सात [[योजन]] थी। कुशावती राजधानी  समृद्ध और सब प्रकार से सुख-शान्ति से भरपूर थी। जैसे देवताओं की [[अलकनन्दा]] नामक राजधानी समृद्ध है वैसे ही कुशावती थी। यहाँ दिन रात हाथी, घोड़े, रथ, भेरी, मृदंग, गीत, झांझ, ताल, शंख और खाओ-पिओ-के दस शब्द गूंजते रहते थे। नगरी सात परकोटों से घिरी थी। इनमें चार रंगो के बड़े-बड़े द्वार थे। चारों ओर ताल वृक्षों की सात पक्तियाँ नगरी को घेरे हुई थीं। इस पूर्व बुद्धकालीन वैभव की झलक हमें कसिया में खोदे गये कुओं के अन्दर से प्राय: बीस फुट की गहराई पर प्राप्त होने वाली भित्तियों के अवशेषों से मिलती है।
नगर में अनेक सुन्दर सड़कें थीं। चारों दिशाओं के मुख्य द्वारों से आने वाले राजपथ नगर के मध्य में मिलते थे। इस चौराहे पर मल्ल गणराज्य का प्रसिद्ध संथागार था, जिसकी विशालता इसी से जानी जा सकती है कि इसमें गणराज्य के सभी सदस्य एक साथ बैठ सकते थे। संथागार के सभी सदस्य राजा कहलाते थे और बारी-बारी से शासन करते थे। शेष व्यापार आदि कार्यों में व्यस्त रहते थे। कुशीनगर में मल्लों की एक सुसज्जित सेना रहती थी। इस सेना पर मल्लों को गर्व था। इसी के बल पर वे युद्ध के अस्थि-अवशेषों को लेने के लिए अन्य लोगों से लड़ने के लिए तैयार हो गए थे। भगवान बुद्ध अपने जीवनकाल में कई बार कुशीनगर आए थे। वे साल वन बिहार में ही प्राय: ठहरते थे। उनके समय में ही यहाँ के निवासी बौद्ध हो गए थे। इनमें से अनेक [[भिक्कु|भिक्षु]] भी बन गए थे। दब्बमल्ल स्थविर, आयुष्मान सिंह, यशदत्त स्थविर इनमें प्रसिद्ध थे। कोसलराज प्रसेनजित का सेनापति बंधुलमल्ल, दीर्घनारायण, राजमल्ल, वज्रपाणिमल्ल और वीरांगना मल्लिका यहीं के निवासी थे।
*'महापरिनिर्वाणसुत्त' से ज्ञात होता है कि कुशीनगर बहुत समय तक समस्त जंबुद्वीप की राजधानी भी रही थी। बुद्ध के समय (छठी शती ई॰ पू॰) में कुशीनगर मल्ल जनपद की राजधानी थी। नगर के उत्तरी द्वार से शाल वन तक एक राजमार्ग जाता था जिसके दोनों ओर शाल वृक्षों की पंक्तियाँ थीं। शाल वन से नगर में प्रवेश करने के लिए पूर्व की ओर जाकर दक्षिण की ओर मुड़ना पड़ता था। शाल वन से नगर के दक्षिण द्वार तक बिना नगर में प्रवेश किए ही एक सीधे मार्ग से पहुँचा जा सकता था। पूर्व की ओर [[हिरण्यवती नदी]] (राप्ती) बहती थी जिसके तट पर मल्लों की अभिषेकशाला थी। इसे मुकुटबंधन चैत्य कहते थे। नगर के दक्षिण की ओर भी एक नदी थी जहाँ कुशीनगर का श्मशान था। बुद्ध ने कुशीनगर आते समय इरावती (अचिरावती, अजिरावती या राप्ती नदी) पार की थी।<balloon title="(बुद्ध चरित 25, 53)" style=color:blue>*</balloon> नगर में अनेक सुन्दर सड़कें थीं। चारों दिशाओं के मुख्य द्वारों से आने वाले राजपथ नगर के मध्य में मिलते थे। इस चौराहे पर मल्ल गणराज्य का प्रसिद्ध संथागार था जिसकी विशालता इसी से जानी जा सकती है कि इसमें गणराज्य के सभी सदस्य एक साथ बैठ सकते थे। संथागार के सभी सदस्य राजा कहलाते थे और बारी-बारी से शासन करते थे। शेष व्यापार आदि कार्यों में व्यस्त रहते थे। कुशीनगर में मल्लों की एक सुसज्जित सेना रहती थी। इस सेना पर मल्लों को गर्व था। इसी के बल पर वे युद्ध के अस्थि-अवशेषों को लेने के लिए अन्य लोगों से लड़ने के लिए तैयार हो गए थे। भगवान बुद्ध अपने जीवनकाल में कई बार कुशीनगर आए थे। वे शाल वन बिहार में ही प्राय: ठहरते थे। उनके समय में ही यहाँ के निवासी बौद्ध हो गए थे। इनमें से अनेक भिक्षु भी बन गए थे। दब्बमल्ल स्थविर, आयुष्मान सिंह, यशदत्त स्थविर इन में प्रसिद्ध थे। कोसलराज प्रसेनजित का सेनापति बंधुलमल्ल, दीर्घनारायण, राजमल्ल, वज्रपाणिमल्ल और वीरांगना मल्लिका यहीं के निवासी थे।
==बुद्ध के उपदेश==
 
भगवान बुद्ध की मृत्यु 483 ई. में कुसीनारा में हुई थी।<ref>बुद्ध चरित 25, 52</ref> अपनी शिष्य मंडली के साथ चुंद के यहाँ भोजन करने के पश्चात् उसे उपदेश देकर वे कुशीनगर आए थे। उन्होंने साल वन के उपवन में युग्मशाल वृक्षों के नीचे चिर समाधि ली थी।<ref>बुद्ध चरित 25, 55</ref> निर्वाण के पूर्व कुशीनगर पहुँचने पर तथागत कुशीनगर में [[कमल|कमलों]] से सुशोभित एक तड़ाग के पास उपवन में ठहरे थे।<ref>बुद्ध चरित 25, 53</ref> अंतिम समय में बुद्ध ने कुसीनारा को बौद्धों का महातीर्थ बताया था। उन्होंने यह भी कहा था कि "पिछले जन्मों में छ: बार वे चक्रवर्ती राजा होकर कुशीनगर में रहे थे।"
==भगवान बुद्ध के उपदेश==
[[चित्र:Nirvana-Temple-Kushinagar-6.jpg|thumb|250px|निर्वाण मंदिर में [[बुद्ध]] की प्रतिमा]]
भगवान बुद्ध की मृत्यु 483 ई॰ में कुसीनारा में हुई थी<balloon title="बुद्ध चरित 25, 52" style=color:blue>*</balloon> 'तब शिष्य मंडली के साथ चुंद के यहाँ भोजन करने के पश्चात उसे उपदेश देकर वे कुशीनगर आए।' उन्होंने शाल वन के उपवन में युग्मशाल वृक्षों के नीचे चिर समाधि ली थी।<balloon title="(बुद्ध चरित 25, 55)" style=color:blue>*</balloon> निर्वाण के पूर्व कुशीनगर पहुँचने पर तथागत कुशीनगर में कमलों से सुशोभित एक तड़ाग के पास उपवन में ठहरे थे।<balloon title="बुद्ध चरित 25, 53" style=color:blue>*</balloon> अंतिम समय में बुद्ध ने कुसीनारा को बौद्धों का महातीर्थ बताया था। उन्होंने यह भी कहा था कि पिछले जन्मों में छ: बार वे चक्रवर्ती राजा होकर कुशीनगर में रहे थे।
====बुद्ध के शरीर का दाहकर्म====
 
बुद्ध के शरीर का दाहकर्म मुकुटबंधन चैत्य, वर्तमान रामाधार में किया गया था और उनकी अस्थियाँ नगर के संथागार में रक्खी गई थीं<ref>मुकुटबंधन चैत्य में मल्लराजाओं का राज्याभिषेक होता था। बुद्ध चरित 27, 70 के अनुसार बुद्ध की मृत्यु के पश्चात् 'नागद्वार के बाहर आकर मल्लों ने तथागत के शरीर को लिए हुए हिरण्यवती नदी पार की और मुकुट चैत्य के नीचे चिता बनाई'</ref>। बाद में उत्तर [[भारत]] के आठ राजाओं ने इन्हें आपस में बाँट लिया था। मल्लों ने मुकुटबंधन चैत्य के स्थान पर एक महान् [[स्तूप]] बनवाया था। बुद्ध के पश्चात् कुशीनगर को मगध-नरेश [[अजातशत्रु]] ने जीतकर [[मगध]] में सम्मिलित कर लिया और वहाँ का गणराज्य सदा के लिए समाप्त हो गया किंतु बहुत दिनों तक यहाँ अनेक स्तूप और विहार आदि बने रहे और दूर-दूर से बौद्ध यात्रियों को आकर्षित करते रहे।  
==बुद्ध के शरीर का दाहकर्म ==
बुद्ध के शरीर का दाहकर्म मुकुटबंधन चैत्य, वर्तमान रामाधार में किया गया था और उनकी अस्थियाँ नगर के संथागार में रक्खी गई थीं<ref>मुकुटबंधन चैत्य में मल्लराजाओं का राज्याभिषेक होता था। बुद्ध चरित 27, 70 के अनुसार बुद्ध की मृत्यु के पश्चात 'नागद्वार के बाहर आकर मल्लों ने तथागत के शरीर को लिए हुए हिरण्यवती नदी पार की और मुकुट चैत्य के नीचे चिता बनाई'</ref>। बाद में उत्तर भारत के आठ राजाओं ने इन्हें आपस में बाँट लिया था। मल्लों ने मुकुटबंधन चैत्य के स्थान पर एक महान [[स्तूप]] बनवाया था। बुद्ध के पश्चात कुशीनगर को मगध-नरेश [[अजातशत्रु]] ने जीतकर [[मगध]] में सम्मिलित कर लिया और वहाँ का गणराज्य सदा के लिए समाप्त हो गया किंतु बहुत दिनों तक यहाँ अनेक स्तूप और विहार आदि बने रहे और दूर-दूर से बौद्ध यात्रियों को आकर्षित करते रहे।  
==राजाओं द्वारा निर्माण==
==राजाओं द्वारा निर्माण==
बौद्ध अनुश्रुति के अनुसार [[मौर्य वंश|मौर्य]] सम्राट [[अशोक]]<balloon title="(मृत्यु 232 ई॰ पू॰)" style=color:blue>*</balloon> ने कुशीनगर की यात्रा की थी और एक लाख मुद्रा व्यय करके यहाँ के चैत्य का पुनर्निर्माण करवाया था। [[युवानच्वांग]] के अनुसार अशोक ने यहाँ तीन स्तूप और दो स्तंभ बनवाए थे। तत्पश्चात [[कनिष्क]] (120 ई॰) ने  कुशीनगर में कई विहारों का निर्माण करवाया। [[गुप्त काल]] में यहाँ अनेक [[बौद्ध]] विहारों का निर्माण हुआ तथा पुराने भवनों का जीर्णोद्धार भी किया गया। गुप्त-राजाओं की धार्मिक उदारता के कारण बौद्ध संघ को कोई कष्ट न हुआ। कुमार गुप्त (5वीं शती ई॰ का प्रारम्भ काल) के समय में हरिबल नामक एक श्रेष्ठी ने परिनिर्वाण मन्दिर में बुद्ध की बीस फुट ऊँची प्रतिमा की प्रतिष्ठापना की। छठी व सातवीं ई॰ से  कुशीनगर उजाड़ होना प्रारम्भ हो गया। हर्ष (606-647 ई॰) के शासनकाल में  कुशीनगर नष्ट प्रायः हो गया था यद्यपि यहाँ भिक्षओं की संख्या पर्याप्त थी। युवानच्वांग के यात्रा-वृत्त से सूचित होता है कि  कुशीनारा, [[सारनाथ]] से उत्तर-पूर्व 116 मील दूर था। युवान के परवर्ती दूसरे चीनी यात्री इत्सिंग के वर्णन से ज्ञात होता है कि उसके समय में  कुशीनगर में सर्वास्तिवादी भिक्षुओं का आधिपत्य था। हैहयवंशीय राजाओं के समय उनका स्थान [[महायान]] के अनुयायी भिक्षुओं ने ले लिया जो तांत्रिक थे। 16 वीं शती में मुसलमानों के आक्रमण के साथ ही  कुशीनगर का इतिहास अंधकार के गर्त में लुप्त सा हो जाता है। संभवत: 13 वीं शती में मुसलमानों ने यहाँ के सभी विहारों तथा अन्यान्य भवनों को तोड़-फोड़ डाला था।
बौद्ध अनुश्रुति के अनुसार [[मौर्य वंश|मौर्य]] [[अशोक|सम्राट अशोक]]<ref>मृत्यु 232 ई. पू.</ref> ने कुशीनगर की यात्रा की थी और एक लाख मुद्रा व्यय करके यहाँ के [[चैत्य गृह|चैत्य]] का पुनर्निर्माण करवाया था। [[युवानच्वांग]] के अनुसार अशोक ने यहाँ तीन स्तूप और दो स्तंभ बनवाए थे। तत्पश्चात् [[कनिष्क]] (120 ई.) ने  कुशीनगर में कई विहारों का निर्माण करवाया। [[गुप्त काल]] में यहाँ अनेक [[बौद्ध]] विहारों का निर्माण हुआ तथा पुराने भवनों का जीर्णोद्धार भी किया गया। गुप्त-राजाओं की धार्मिक उदारता के कारण बौद्ध संघ को कोई कष्ट न हुआ। कुमार गुप्त (5वीं शती ई. का प्रारम्भ काल) के समय में हरिबल नामक एक श्रेष्ठी ने परिनिर्वाण मन्दिर में बुद्ध की बीस फुट ऊँची प्रतिमा की प्रतिष्ठापना की। छठी व सातवीं ई. से  कुशीनगर उजाड़ होना प्रारम्भ हो गया। हर्ष (606-647 ई.) के शासनकाल में  कुशीनगर नष्ट प्रायः हो गया था यद्यपि यहाँ भिक्षओं की संख्या पर्याप्त थी। युवानच्वांग के यात्रा-वृत्त से सूचित होता है कि  कुशीनारा, [[सारनाथ]] से उत्तर-पूर्व 116 मील दूर था। युवान के परवर्ती दूसरे चीनी यात्री इत्सिंग के वर्णन से ज्ञात होता है कि उसके समय में  कुशीनगर में सर्वास्तिवादी भिक्षुओं का आधिपत्य था। हैहयवंशीय राजाओं के समय उनका स्थान [[महायान]] के अनुयायी भिक्षुओं ने ले लिया जो तांत्रिक थे। 16 वीं शती में मुसलमानों के आक्रमण के साथ ही  कुशीनगर का इतिहास अंधकार के गर्त में लुप्त सा हो जाता है। संभवत: 13 वीं शती में मुसलमानों ने यहाँ के सभी विहारों तथा अन्यान्य भवनों को तोड़-फोड़ डाला था।
 
==उत्खनन कार्य==
==खुदाई==
[[चित्र:Kushinagar-4.jpg|thumb|250px|कुशीनगर से सम्बंधित अभिलेख]]
*1876 ई॰ की खुदाई में यहाँ प्राचीन काल में होने वाले एक भयानक अग्निकाडं के चिन्ह मिले हैं, जिससे स्पष्ट है कि मुसलमानों के आक्रमण के समय यहाँ के सब विहारों आदि को भस्म कर दिया गया था। तिब्बत का इतिहास लेखक तारानाथ लिखता है कि इस आक्रमण के समय मारे जाने से बचे हुए भिक्षु भाग कर नेपाल, तिब्बत तथा अन्य देशों में चले गए थे। परिवर्ती काल में  कुशीनगर के अस्तित्व तक का पता नहीं मिलता।  
*सन [[1861]] ई. में  जब [[कनिंघम|जनरल कनिंघम]] ने खोज द्वारा इस नगर का पता लगाया तो यहाँ जंगल ही जंगल थे। उस समय इस स्थान का नाम 'माथा कुंवर का कोट' था। कनिंघम ने इसी स्थान को परिनिर्वाण-भूमिसिद्ध किया। उन्होंने 'आनुरुधवा' ग्राम को प्राचीन कुसीनारा और 'रामाधार' को मुकुटबंधन चैत्य बताया।
*1861 ई॰ में  जब जनरल [[कनिंघम]] ने खोज द्वारा इस नगर का पता लगाया तो यहाँ जंगल ही जंगल थे। उस समय इस स्थान का नाम माथा कुंवर का कोट था। कनिंघम ने इसी स्थान को परिनिर्वाण-भूमिसिद्ध किया। उन्होंने 'आनुरुधवा' ग्राम को प्राचीन कुसीनारा और 'रामाधार' को मुकुटबंधन चैत्य बताया।
*[[1876]] ई. की खुदाई में यहाँ प्राचीन काल में होने वाले एक भयानक अग्निकाडं के चिह्न मिले हैं, जिससे स्पष्ट है कि मुसलमानों के आक्रमण के समय यहाँ के सब विहारों आदि को भस्म कर दिया गया था। 'तिब्बत का इतिहास' लेखक तारानाथ लिखते हैं कि इस आक्रमण के समय मारे जाने से बचे हुए भिक्षु भाग कर [[नेपाल]], [[तिब्बत]] तथा अन्य देशों में चले गए थे। परिवर्ती काल में  कुशीनगर के अस्तित्व तक का पता नहीं मिलता।  
*1876 ई॰ में इस स्थान को स्वच्छ किया गया। पुराने टीलों की खुदाई में महापरिनिर्वाण स्तूप के अवशेष भी प्राप्त हुए। तत्पश्चात कई गुप्तकालीन विहार तथा मन्दिर भी प्रकाश में लाए गए। कलचुरि नरेशों के समय 12 वीं शती का एक विहार भी यहाँ से प्राप्त हुआ था। <br />
*वर्ष [[1876]] ई. में ही इस स्थान को स्वच्छ किया गया। पुराने टीलों की खुदाई में [[परिनिर्वाण मन्दिर कुशीनगर|महापरिनिर्वाण स्तूप]] के [[अवशेष]] भी प्राप्त हुए। तत्पश्चात् कई [[गुप्त काल|गुप्तकालीन]] विहार तथा मन्दिर भी प्रकाश में लाए गए। [[कलचुरि वंश|कलचुरि]] नरेशों के समय 12वीं शती का एक विहार भी यहाँ से प्राप्त हुआ था।
*कुशीनगर का सबसे अधिक प्रसिद्ध स्मारक बुद्ध की विशाल प्रतिमा है जो शयनावस्था में प्रदर्शित है (बुद्ध का निर्वाण दाहिनी करवट पर लेटे हुए हुआ था)। इसके ऊपर धातु की चादर जड़ी है।<br />
*कुशीनगर का सबसे अधिक प्रसिद्ध स्मारक [[बुद्ध]] की विशाल प्रतिमा है, जो शयनावस्था में प्रदर्शित है।<ref>बुद्ध का निर्वाण दाहिनी करवट पर लेटे हुए हुआ था।</ref> इसके ऊपर [[धातु]] की चादर जड़ी है। यहीं बुद्ध की साढ़े दस फुट ऊँची दूसरी मूर्ति है, जिसे 'माथाकुंवर' कहते हैं। इसकी चौकी पर एक ब्राह्मी लेख अंकित है। महापरिनिर्वाण स्तूप में से एक ताम्रपट्ट निकला था, जिस पर ब्राह्मी लेख अंकित है- '(परिनि) वार्ण चैत्य पाम्रपट्ट इति'। इस लेख से तथा हरिबल द्वारा प्रतिष्ठापित मूर्ति पर के अभिलेख '''देयधर्मोयं महाविहारे स्नामिनो हरिबलस्य प्रतिमा चेयं घटिता दीनेन माथुरेण''' से कसिया का कुशीनगर से अभिज्ञान प्रमाणित होता है।
*यहीं बुद्ध की साढ़े दस फुट ऊँची दूसरी मूर्ति है जिसे माथाकुंवर कहते हैं। इसकी चौकी पर एक ब्राह्मी लेख अंकित है। महापरिनिर्वाण स्तूप में से एक ताम्रपट्ट निकला था जिस पर ब्राह्मी लेख अंकित है- '(परिनि) वार्ण चैत्य पाम्रपट्ट इति'। इस लेख से तथा हरिबल द्वारा प्रतिष्ठापित मूर्ति पर के अभिलेख '''देयधर्मोयं महाविहारे स्नामिनो हरिबलस्य प्रतिमा चेयं घटिता दीनेन माथुरेण''' से कसिया का कुशीनगर से अभिज्ञान प्रमाणित होता है। <br />
*पहले विंसेंट स्मिथ का मत था कि  कुशीनगर नेपाल में अचिरवती (राप्ती) और हिरण्यवती (गंडक ?) के तट पर बसा हुआ था।  
*पहले विंसेंट स्मिथ का मत था कि  कुशीनगर नेपाल में अचिरवती (राप्ती) और हिरण्यवती (गंडक ?) के तट पर बसा हुआ था।  
*मजूमदार-शास्त्री कसिया को बेठदीप मानते हैं जिसका वर्णन बौद्ध साहित्य में है<balloon title="(दे॰ एंशेंट ज्याग्रेफ़ी आव इंडिया, पृ॰ 714)" style=color:blue>*</balloon>, किन्तु अब कसिया का  कुशीनगर से अभिज्ञान पूर्णरूपेण सिद्ध हो चुका है।
*मजूमदार-शास्त्री कसिया को बेठदीप मानते हैं, जिसका वर्णन बौद्ध साहित्य में है,<ref>दे. एंशेंट ज्याग्रेफ़ी आव इंडिया, पृ. 714</ref> किन्तु अब कसिया का  कुशीनगर से अभिज्ञान पूर्णरूपेण सिद्ध हो चुका है।
==दर्शनीय स्थल==
कुशीनगर के प्रसिद्ध दर्शनीय स्थल हैं-
====रामाभार टीला====
[[चित्र:Ramabhar-Stup-Kushinagar-3.jpg|thumb|150px|[[रामाभार टीला कुशीनगर|रामाभार टीला]], कुशीनगर]]
{{main|रामाभार टीला कुशीनगर}}
रामाभार टीला या स्तूप [[कुशीनगर]]-[[देवरिया]] मार्ग पर '[[माथा कुँवर मंदिर कुशीनगर|माथा कुँवर मंदिर]]' से 1.61 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। इस स्थान पर मल्लों की अभिषेकशाला थी और वहीं पर [[बुद्ध]] का '[[अंतिम संस्कार]]' किया गया था। इसे उस समय ‘मुकुट बंधन चैत्य’ के नाम से जाना जाता था। प्रथम बार इसकी खुदाई एक राजकीय कर्मचारी ने कराई थी। [[उत्खनन]] का द्वितीय चरण [[1910]] ई. में हीरानंद शास्त्री की अध्यक्षता में प्रारंभ हुआ, जिससे इसके वास्तविक स्वरूप का पता चला। 115 फुट व्यास में इसकी नींव थी और ऊपर 112 फुट व्यास का [[स्तूप]] बना था।
====परिनिर्वाण मन्दिर====
[[चित्र:Statue-Buddha-Kushinagar-1.jpg|thumb|150px|[[परिनिर्वाण मन्दिर कुशीनगर|परिनिर्वाण मन्दिर]] में [[बुद्ध]] प्रतिमा]]
{{main|परिनिर्वाण मन्दिर कुशीनगर}}
परिनिर्वाण मन्दिर कुशीनगर का प्रसिद्ध बौद्ध धार्मिक स्थल है। सर्वप्रथम कार्लाइल ने [[1876]] ई. में इस मन्दिर और परिनिर्वाण प्रतिमा को खोज निकाला था। कार्लाइल को ऊँची दीवारें तो मिली थीं, परंतु छत के [[अवशेष]] नहीं मिले थे। इसमें केवल गर्भगृह और उसके आगे एक प्रवेश कक्ष था। इस टीले के गर्भगृह में खुदाई करते समय कार्लाइल को एक ऊँचे सिंहासन पर [[तथागत]] की 20 फुट (लगभग 6.1 मीटर) लंबी परिनिर्वाण मुद्रा की प्रतिमा मिली थी। यह प्रतिमा चित्तीदार बलुआ पत्थर की है। इसमें [[बुद्ध]] को पश्चिम की तरफ मुख करके लेटे हुए दिखाया गया है। इसका सिर उत्तराभिमुख है, दाहिना हाथ सिर के नीचे और बायाँ हाथ जंघे पर स्थित है। पैर एक-दूसरे के ऊपर हैं।
==आवागमन==
:'''हवाईअड्डा''' - [[वाराणसी]] (बनारस) यहाँ का निकटतम प्रमुख हवाईअड्डा है। [[दिल्ली]], [[लखनऊ]], [[कोलकाता]] और [[पटना]] आदि शहरों से यहाँ के लिए नियमित उड़ानें हैं। इसके अतिरिक्त लखनऊ और [[गोरखपुर]] भी वायुयान से आकर यहाँ आया जा सकता है।
:'''रेल मार्ग''' - [[देवरिया]] कुशीनगर का निकटतम रेलवे स्टेशन है, जो यहाँ से 35 कि.मी. की दूरी पर है। कुशीनगर से 51 कि.मी. दूर स्थित गोरखपुर यहाँ का प्रमुख रेलवे स्टेशन है, जो देश के अनेक प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है।


{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक= |माध्यमिक= माध्यमिक1|पूर्णता= |शोध= }}
==वीथिका==
==वीथिका==
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चित्र:Myanmar-Golden-Monastery.jpg|म्यांमार स्वर्ण मठ<br /> Myanmar Golden Monastery
चित्र:Myanmar-Golden-Monastery.jpg|म्यांमार स्वर्ण मठ
चित्र:Srilanka-Temple-Kushinagar.jpg|श्रीलंका मंदिर<br /> Srilanka Temple
चित्र:Srilanka-Temple-Kushinagar.jpg|श्रीलंका मंदिर, कुशीनगर
चित्र:Nirvana-Temple-Kushinagar.jpg|निर्वाण मंदिर<br /> Nirvana Temple
चित्र:Ramabhar-Stup-Kushinagar-5.jpg|[[रामाभार टीला कुशीनगर|रामाभार स्तूप]], कुशीनगर
चित्र:Buddha-SriLanka-Temple-Kushinagar.jpg|श्रीलंका मंदिर<br /> Srilanka Temple
चित्र:Buddha-SriLanka-Temple-Kushinagar.jpg|श्रीलंका मंदिर  
चित्र:Buddha-Head-Kushinagar.jpg|[[बुद्ध]] मस्तक<br /> Buddha Head
चित्र:Buddha-Head-Kushinagar.jpg|बुद्ध मस्तक
चित्र:Buddha-Kushinagar.jpg|[[बुद्ध]]<br /> Buddha
चित्र:Buddha-Kushinagar.jpg|[[बुद्ध]]
चित्र:Kushinagar-1.jpg|[[बुद्ध]] भिक्षु ध्यान स्थली
चित्र:Statue-Buddha-Kushinagar-2.jpg|बुद्ध मूर्ति
चित्र:Statue-Buddha-Kushinagar-1.jpg|[[बुद्ध]] मूर्ति<br /> Buddha Statue
चित्र:Ramabhar-Stup-Kushinagar-4.jpg|[[रामाभार टीला कुशीनगर|रामाभार स्तूप]], कुशीनगर
चित्र:Statue-Buddha-Kushinagar-2.jpg|[[बुद्ध]] मूर्ति<br /> Buddha Statue
चित्र:Buddhist-Centers-Map.jpg|बुद्ध केंद्र
चित्र:Buddhist-Centers-Map.jpg|उत्तर प्रदेश प्रमुख बुद्ध केंद्र<br /> Uttar Pradesh Prominent Buddhist Centres
चित्र:Kushinagar-2.jpg|बुद्ध प्रतिमा, कुशीनगर
चित्र:Kushinagar-3.jpg|कुशीनगर स्थित निर्वाण स्तूप
चित्र:Nirvana-Temple-Kushinagar-5.jpg|प्राचीन अवशेष, निर्वाण मंदिर, कुशीनगर
चित्र:Shrilanka-Temple-Kushinagar-1.jpg|श्रीलंका मंदिर
चित्र:Ramabhar-Stup-Kushinagar.jpg|[[रामाभार टीला कुशीनगर|रामाभार स्‍तूप]], कुशीनगर
चित्र:Ramabhar-Stup-Kushinagar-1.jpg|[[रामाभार टीला कुशीनगर|रामाभार स्तूप]]
चित्र:Thai-Temple-Kushinagar.jpg|थाई मंदिर, [[कुशीनगर]]
चित्र:Kushinagar.jpg|कुशीनगर स्थित बुद्ध प्रतिमाएँ
चित्र:Nirvana-Temple-Kushinagar-1.jpg|निर्वाण मंदिर, कुशीनगर
चित्र:Nirvana-Temple-Kushinagar-2.jpg|बौद्ध भिक्षु, निर्वाण मंदिर, कुशीनगर
चित्र:Ramabhar-Stup-Kushinagar-6.jpg|[[रामाभार टीला कुशीनगर|रामाभार स्तूप]], कुशीनगर
चित्र:Nirvana-Temple-Kushinagar-3.jpg|निर्वाण मंदिर, कुशीनगर
चित्र:Nirvana-Temple-Kushinagar-4.jpg|मंदिर के निकट स्थित प्राचीन अवशेष
चित्र:Nirvana-Temple-Kushinagar-7.jpg|निर्वाण मंदिर का सुंदर दृश्य
चित्र:Ramabhar-Stup-Kushinagar-2.jpg|[[रामाभार टीला कुशीनगर|रामाभार स्तूप]], कुशीनगर
चित्र:Wat-Thai-Kushinara-Chalermraj-1.jpg|थाई मंदिर, कुशीनगर
चित्र:Kushinagar-5.jpg|थाई मन्दिर का प्रवेश द्वार, कुशीनगर
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<br />
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
*ऐतिहासिक स्थानावली | विजयेन्द्र कुमार माथुर |  वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग | मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार
==टीका-टिप्पणी==  
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10:17, 9 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण

कुशीनगर
परिनिर्वाण मंदिर कुशीनगर
परिनिर्वाण मंदिर कुशीनगर
विवरण 'कुशीनगर' भगवान बुद्ध से सम्बंधित अनेक ऐतिहासिक स्थलों के लिए प्रसिद्ध है। यह स्थान बौद्ध धर्म के अनुयायियों का प्रमुख तीर्थ स्थल है।
राज्य उत्तर प्रदेश
ज़िला कुशीनगर
स्थापना किंवदंती के अनुसार माना जाता है कि कुशीनगर की स्थापना श्रीराम के पुत्र कुश ने की थी।
भौगोलिक स्थिति गोरखपुर से 51 कि.मी. की दूरी पर स्थित।
प्रसिद्धि बौद्ध तीर्थ स्थान
हवाई अड्डा बनारस
रेलवे स्टेशन देवरिया
संबंधित लेख कुशीनगर का इतिहास, बुद्ध, मल्ल महाजनपद, क्षेत्रफल 2,873.5 कि.मी.2
आधिकारिक वेबसाइट कुशीनगर
अन्य जानकारी सन 1861 ई. में जब जनरल कनिंघम ने खोज द्वारा इस नगर का पता लगाया तो यहाँ जंगल ही जंगल थे। उस समय इस स्थान का नाम 'माथा कुंवर का कोट' था।

कुशीनगर अथवा कुशीनारा (अंग्रेज़ी: Kushinagar) बुद्ध के महापरिनिर्वाण का स्थान है। यह उत्तर प्रदेश राज्य का एक प्रसिद्ध ज़िला तथा छोटा क़स्बा है। भगवान बुद्ध से सम्बंधित कई ऐतिहासिक स्थानों के लिए कुशीनगर संसार भर में प्रसिद्ध है। ज़िले का मुख्यालय कुशीनगर से लगभग 15 कि.मी. दूर पडरौना में स्थित है। कुशीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 28 पर गोरखपुर से 51 कि.मी. की दूरी पर पूरब में स्थित है। महात्मा बुद्ध का निर्वाण यहीं हुआ था। यहाँ मुख्यत: विश्व भर के बौद्ध तीर्थयात्री भ्रमण के लिये आते हैं। कुशीनगर से पूरब की ओर बढ़ने पर लगभग 20 कि.मी. के बाद बिहार राज्य आरम्भ हो जाता है।

इतिहास

कुशीनगर प्राचीन भारत के तत्कालीन महाजनपदों में से एक एवं मल्ल राज्य की राजधानी था।[1] कनिंघम ने कुशीनगर को वर्तमान देवरिया ज़िले में स्थित 'कसिया' से समीकृत किया है।[2] अपने समीकरण की पुष्टि में उन्होंने 'परिनिर्वाण मंदिर' के पीछे स्थित स्तूप में मिले ताम्रपत्र का उल्लेख किया है, जिस पर 'परिनिर्वाणचैत्य ताम्रपत्र इति' उल्लिखित है।[3] कनिंघम के इस समीकरण से विंसेंट स्मिथ[4] और पार्जिटर प्रभृति विद्वान् सहमत नहीं हैं। उनके अनुसार कसिया के अवशेषों एवं चीनी यात्री ह्वेनसांग के यात्रा विवरणों में पर्याप्त भिन्नता है। इस भिन्नता को ध्यान में रखते हुए स्मिथ ने कुशीनगर को नेपाल में पहाड़ियों की पहली श्रृंखला के पार स्थित होने के मत को उचित माना है।[5]

रीज डेविड्स के अनुसार यदि हम चीनी यात्रियों के यात्रा विवरणों पर विश्वास करें तो कुशीनगर के मल्लों का प्रदेश, शाक्य प्रदेश के पूर्व में पहाड़ी ढाल पर स्थित होना चाहिए। कुछ अन्य विद्वान् उनका प्रदेश शाक्यों के दक्षिण में एवं वज्जिगण के पूर्व में स्थित बतलाते हैं।[6]

बौद्ध भिक्षु ध्यान स्थली, कुशीनगर

लेकिन बाद के (1906-1907) पुरातात्विक उत्खनन से प्राप्त सामग्रियों के आधार पर कनिंघम की समीक्षा को उचित मानते हुए 'कसिया' और 'कुशीनगर' को एक ही मानना उचित होगा। कनिंघम को इन भग्नावशेषों से ‘महापरिनिर्वाण विहार’ नामांकित अनेक मृण्मुद्राएँ और स्तूप के भीतर से कुछ ताम्रपत्र भी मिले हैं। इनके अतिरिक्त इन खंडहरों से महात्मा बुद्ध की वैसी ही विशाल मूर्ति प्राप्त हुई है, जैसी कि ह्वेनसांग ने कुशीनगर में देखी थी। 'तथागत' की निर्वाण मूर्ति बौद्ध शिल्पियों का प्रिय विषय रही है, परंतु कसिया जैसी पत्थर की विशाल प्रतिमा अन्यत्र नहीं मिलती। ये विभिन्न तथ्य भी कनिंघम के समीकरण के औचित्य की पुष्टि करते हैं।

किंवदंती

बौद्ध ग्रंथ 'महावंश'[7] में कुशीनगर का नाम इसी कारण 'कुशावती' भी कहा गया है। बौद्ध काल में यही नाम कुशीनगर या पाली में 'कुसीनारा' हो गया।

  • एक अन्य बौद्ध किंवदंती के अनुसार तक्षशिला के इक्ष्वाकु वंशी राजा तालेश्वर का पुत्र तक्षशिला से अपनी राजधानी हटाकर कुशीनगर ले आया था। उसकी वंश परम्परा में बारहवें राजा सुदिन्न के समय तक यहाँ राजधानी रही। इनके बीच में कुश और महादर्शन नामक दो प्रतापी राजा हुए, जिनका उल्लेख गौतम बुद्ध ने[8] किया था।

नगर का वैभव

श्रीलंका मन्दिर, कुशीनगर
  • 'महादर्शनसुत्त' में कुसीनारा (कुशीनगर) के वैभव का वर्णन है-'राजा महासुदर्शन के समय में कुशावती पूर्व से पश्चिम तक बारह योजन और उत्तर से दक्षिण तक सात योजन थी। कुशावती राजधानी समृद्ध और सब प्रकार से सुख-शान्ति से भरपूर थी। जैसे देवताओं की अलकनन्दा नामक राजधानी समृद्ध है, वैसे ही कुशावती थी। यहाँ दिन रात हाथी, घोड़े, रथ, भेरी, मृदंग, गीत, झांझ, ताल, शंख और खाओ-पिओ-के दस शब्द गूंजते रहते थे। नगरी सात परकोटों से घिरी थी। इनमें चार रंगों के बड़े-बड़े द्वार थे। चारों ओर ताल वृक्षों की सात पक्तियाँ नगरी को घेरे हुई थीं। इस पूर्व बुद्धकालीन वैभव की झलक हमें कसिया में खोदे गये कुओं के अन्दर से प्राय: बीस फुट की गहराई पर प्राप्त होने वाली भित्तियों के अवशेषों से मिलती है।
  • 'महापरिनिर्वाणसुत्त' से ज्ञात होता है कि कुशीनगर बहुत समय तक समस्त जंबुद्वीप की राजधानी भी रही थी। बुद्ध के समय (छठी शती ई. पू.) में कुशीनगर मल्ल महाजनपद की राजधानी थी। नगर के उत्तरी द्वार से साल वन तक एक राजमार्ग जाता था, जिसके दोनों ओर साल वृक्षों की पंक्तियाँ थीं। साल वन से नगर में प्रवेश करने के लिए पूर्व की ओर जाकर दक्षिण की ओर मुड़ना पड़ता था। साल वन से नगर के दक्षिण द्वार तक बिना नगर में प्रवेश किए ही एक सीधे मार्ग से पहुँचा जा सकता था। पूर्व की ओर हिरण्यवती नदी (राप्ती) बहती थी, जिसके तट पर मल्लों की अभिषेकशाला थी। इसे 'मुकुटबंधन चैत्य' कहते थे। नगर के दक्षिण की ओर भी एक नदी थी, जहाँ कुशीनगर का श्मशान था। बुद्ध ने कुशीनगर आते समय इरावती (अचिरवती, अजिरावती या राप्ती नदी) पार की थी।[9]
कुशीनगर स्थित एक दुकान

नगर में अनेक सुन्दर सड़कें थीं। चारों दिशाओं के मुख्य द्वारों से आने वाले राजपथ नगर के मध्य में मिलते थे। इस चौराहे पर मल्ल गणराज्य का प्रसिद्ध संथागार था, जिसकी विशालता इसी से जानी जा सकती है कि इसमें गणराज्य के सभी सदस्य एक साथ बैठ सकते थे। संथागार के सभी सदस्य राजा कहलाते थे और बारी-बारी से शासन करते थे। शेष व्यापार आदि कार्यों में व्यस्त रहते थे। कुशीनगर में मल्लों की एक सुसज्जित सेना रहती थी। इस सेना पर मल्लों को गर्व था। इसी के बल पर वे युद्ध के अस्थि-अवशेषों को लेने के लिए अन्य लोगों से लड़ने के लिए तैयार हो गए थे। भगवान बुद्ध अपने जीवनकाल में कई बार कुशीनगर आए थे। वे साल वन बिहार में ही प्राय: ठहरते थे। उनके समय में ही यहाँ के निवासी बौद्ध हो गए थे। इनमें से अनेक भिक्षु भी बन गए थे। दब्बमल्ल स्थविर, आयुष्मान सिंह, यशदत्त स्थविर इनमें प्रसिद्ध थे। कोसलराज प्रसेनजित का सेनापति बंधुलमल्ल, दीर्घनारायण, राजमल्ल, वज्रपाणिमल्ल और वीरांगना मल्लिका यहीं के निवासी थे।

बुद्ध के उपदेश

भगवान बुद्ध की मृत्यु 483 ई. में कुसीनारा में हुई थी।[10] अपनी शिष्य मंडली के साथ चुंद के यहाँ भोजन करने के पश्चात् उसे उपदेश देकर वे कुशीनगर आए थे। उन्होंने साल वन के उपवन में युग्मशाल वृक्षों के नीचे चिर समाधि ली थी।[11] निर्वाण के पूर्व कुशीनगर पहुँचने पर तथागत कुशीनगर में कमलों से सुशोभित एक तड़ाग के पास उपवन में ठहरे थे।[12] अंतिम समय में बुद्ध ने कुसीनारा को बौद्धों का महातीर्थ बताया था। उन्होंने यह भी कहा था कि "पिछले जन्मों में छ: बार वे चक्रवर्ती राजा होकर कुशीनगर में रहे थे।"

निर्वाण मंदिर में बुद्ध की प्रतिमा

बुद्ध के शरीर का दाहकर्म

बुद्ध के शरीर का दाहकर्म मुकुटबंधन चैत्य, वर्तमान रामाधार में किया गया था और उनकी अस्थियाँ नगर के संथागार में रक्खी गई थीं[13]। बाद में उत्तर भारत के आठ राजाओं ने इन्हें आपस में बाँट लिया था। मल्लों ने मुकुटबंधन चैत्य के स्थान पर एक महान् स्तूप बनवाया था। बुद्ध के पश्चात् कुशीनगर को मगध-नरेश अजातशत्रु ने जीतकर मगध में सम्मिलित कर लिया और वहाँ का गणराज्य सदा के लिए समाप्त हो गया किंतु बहुत दिनों तक यहाँ अनेक स्तूप और विहार आदि बने रहे और दूर-दूर से बौद्ध यात्रियों को आकर्षित करते रहे।

राजाओं द्वारा निर्माण

बौद्ध अनुश्रुति के अनुसार मौर्य सम्राट अशोक[14] ने कुशीनगर की यात्रा की थी और एक लाख मुद्रा व्यय करके यहाँ के चैत्य का पुनर्निर्माण करवाया था। युवानच्वांग के अनुसार अशोक ने यहाँ तीन स्तूप और दो स्तंभ बनवाए थे। तत्पश्चात् कनिष्क (120 ई.) ने कुशीनगर में कई विहारों का निर्माण करवाया। गुप्त काल में यहाँ अनेक बौद्ध विहारों का निर्माण हुआ तथा पुराने भवनों का जीर्णोद्धार भी किया गया। गुप्त-राजाओं की धार्मिक उदारता के कारण बौद्ध संघ को कोई कष्ट न हुआ। कुमार गुप्त (5वीं शती ई. का प्रारम्भ काल) के समय में हरिबल नामक एक श्रेष्ठी ने परिनिर्वाण मन्दिर में बुद्ध की बीस फुट ऊँची प्रतिमा की प्रतिष्ठापना की। छठी व सातवीं ई. से कुशीनगर उजाड़ होना प्रारम्भ हो गया। हर्ष (606-647 ई.) के शासनकाल में कुशीनगर नष्ट प्रायः हो गया था यद्यपि यहाँ भिक्षओं की संख्या पर्याप्त थी। युवानच्वांग के यात्रा-वृत्त से सूचित होता है कि कुशीनारा, सारनाथ से उत्तर-पूर्व 116 मील दूर था। युवान के परवर्ती दूसरे चीनी यात्री इत्सिंग के वर्णन से ज्ञात होता है कि उसके समय में कुशीनगर में सर्वास्तिवादी भिक्षुओं का आधिपत्य था। हैहयवंशीय राजाओं के समय उनका स्थान महायान के अनुयायी भिक्षुओं ने ले लिया जो तांत्रिक थे। 16 वीं शती में मुसलमानों के आक्रमण के साथ ही कुशीनगर का इतिहास अंधकार के गर्त में लुप्त सा हो जाता है। संभवत: 13 वीं शती में मुसलमानों ने यहाँ के सभी विहारों तथा अन्यान्य भवनों को तोड़-फोड़ डाला था।

उत्खनन कार्य

कुशीनगर से सम्बंधित अभिलेख
  • सन 1861 ई. में जब जनरल कनिंघम ने खोज द्वारा इस नगर का पता लगाया तो यहाँ जंगल ही जंगल थे। उस समय इस स्थान का नाम 'माथा कुंवर का कोट' था। कनिंघम ने इसी स्थान को परिनिर्वाण-भूमिसिद्ध किया। उन्होंने 'आनुरुधवा' ग्राम को प्राचीन कुसीनारा और 'रामाधार' को मुकुटबंधन चैत्य बताया।
  • 1876 ई. की खुदाई में यहाँ प्राचीन काल में होने वाले एक भयानक अग्निकाडं के चिह्न मिले हैं, जिससे स्पष्ट है कि मुसलमानों के आक्रमण के समय यहाँ के सब विहारों आदि को भस्म कर दिया गया था। 'तिब्बत का इतिहास' लेखक तारानाथ लिखते हैं कि इस आक्रमण के समय मारे जाने से बचे हुए भिक्षु भाग कर नेपाल, तिब्बत तथा अन्य देशों में चले गए थे। परिवर्ती काल में कुशीनगर के अस्तित्व तक का पता नहीं मिलता।
  • वर्ष 1876 ई. में ही इस स्थान को स्वच्छ किया गया। पुराने टीलों की खुदाई में महापरिनिर्वाण स्तूप के अवशेष भी प्राप्त हुए। तत्पश्चात् कई गुप्तकालीन विहार तथा मन्दिर भी प्रकाश में लाए गए। कलचुरि नरेशों के समय 12वीं शती का एक विहार भी यहाँ से प्राप्त हुआ था।
  • कुशीनगर का सबसे अधिक प्रसिद्ध स्मारक बुद्ध की विशाल प्रतिमा है, जो शयनावस्था में प्रदर्शित है।[15] इसके ऊपर धातु की चादर जड़ी है। यहीं बुद्ध की साढ़े दस फुट ऊँची दूसरी मूर्ति है, जिसे 'माथाकुंवर' कहते हैं। इसकी चौकी पर एक ब्राह्मी लेख अंकित है। महापरिनिर्वाण स्तूप में से एक ताम्रपट्ट निकला था, जिस पर ब्राह्मी लेख अंकित है- '(परिनि) वार्ण चैत्य पाम्रपट्ट इति'। इस लेख से तथा हरिबल द्वारा प्रतिष्ठापित मूर्ति पर के अभिलेख देयधर्मोयं महाविहारे स्नामिनो हरिबलस्य प्रतिमा चेयं घटिता दीनेन माथुरेण से कसिया का कुशीनगर से अभिज्ञान प्रमाणित होता है।
  • पहले विंसेंट स्मिथ का मत था कि कुशीनगर नेपाल में अचिरवती (राप्ती) और हिरण्यवती (गंडक ?) के तट पर बसा हुआ था।
  • मजूमदार-शास्त्री कसिया को बेठदीप मानते हैं, जिसका वर्णन बौद्ध साहित्य में है,[16] किन्तु अब कसिया का कुशीनगर से अभिज्ञान पूर्णरूपेण सिद्ध हो चुका है।

दर्शनीय स्थल

कुशीनगर के प्रसिद्ध दर्शनीय स्थल हैं-

रामाभार टीला

रामाभार टीला, कुशीनगर

रामाभार टीला या स्तूप कुशीनगर-देवरिया मार्ग पर 'माथा कुँवर मंदिर' से 1.61 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। इस स्थान पर मल्लों की अभिषेकशाला थी और वहीं पर बुद्ध का 'अंतिम संस्कार' किया गया था। इसे उस समय ‘मुकुट बंधन चैत्य’ के नाम से जाना जाता था। प्रथम बार इसकी खुदाई एक राजकीय कर्मचारी ने कराई थी। उत्खनन का द्वितीय चरण 1910 ई. में हीरानंद शास्त्री की अध्यक्षता में प्रारंभ हुआ, जिससे इसके वास्तविक स्वरूप का पता चला। 115 फुट व्यास में इसकी नींव थी और ऊपर 112 फुट व्यास का स्तूप बना था।

परिनिर्वाण मन्दिर

परिनिर्वाण मन्दिर में बुद्ध प्रतिमा

परिनिर्वाण मन्दिर कुशीनगर का प्रसिद्ध बौद्ध धार्मिक स्थल है। सर्वप्रथम कार्लाइल ने 1876 ई. में इस मन्दिर और परिनिर्वाण प्रतिमा को खोज निकाला था। कार्लाइल को ऊँची दीवारें तो मिली थीं, परंतु छत के अवशेष नहीं मिले थे। इसमें केवल गर्भगृह और उसके आगे एक प्रवेश कक्ष था। इस टीले के गर्भगृह में खुदाई करते समय कार्लाइल को एक ऊँचे सिंहासन पर तथागत की 20 फुट (लगभग 6.1 मीटर) लंबी परिनिर्वाण मुद्रा की प्रतिमा मिली थी। यह प्रतिमा चित्तीदार बलुआ पत्थर की है। इसमें बुद्ध को पश्चिम की तरफ मुख करके लेटे हुए दिखाया गया है। इसका सिर उत्तराभिमुख है, दाहिना हाथ सिर के नीचे और बायाँ हाथ जंघे पर स्थित है। पैर एक-दूसरे के ऊपर हैं।

आवागमन

हवाईअड्डा - वाराणसी (बनारस) यहाँ का निकटतम प्रमुख हवाईअड्डा है। दिल्ली, लखनऊ, कोलकाता और पटना आदि शहरों से यहाँ के लिए नियमित उड़ानें हैं। इसके अतिरिक्त लखनऊ और गोरखपुर भी वायुयान से आकर यहाँ आया जा सकता है।
रेल मार्ग - देवरिया कुशीनगर का निकटतम रेलवे स्टेशन है, जो यहाँ से 35 कि.मी. की दूरी पर है। कुशीनगर से 51 कि.मी. दूर स्थित गोरखपुर यहाँ का प्रमुख रेलवे स्टेशन है, जो देश के अनेक प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  • ऐतिहासिक स्थानावली | विजयेन्द्र कुमार माथुर | वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग | मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार
  1. अंगुत्तरनिकाय, भाग 1, पृ. 213 तत्रैव, भाग 4 पृ. 252 महावस्तु, भाग 1 पृ. 34
  2. ए. कनिंघम, दि ऐंश्येंट ज्योग्राफी आफ् इंडिया, पृ. 363
  3. आर्कियोलाजिकल् सर्वे आफ् इंडिया, वार्षिक रिपोर्ट, 1911-12, पृ. 17
  4. विस्तृत, जर्नल् आफ़ दि रायल एशियाटिक सोसायटी (1902), पृ. 139 और आगे स्मिथ अर्ली हिस्ट्री आफ़ इंडिया (चतुर्थ संस्करण), पृ. 167, पादटिप्पणी-5 (स्मिथ का यह मत सर्वमान्य नहीं है, क्योंकि ह्वेनसांग के विवरणों के आधार पर कुछ निश्चित करना संभव नहीं है। ह्वेनसांग के आगमन के पश्चात् भी इस स्थान पर निरंतर परिवर्तन होते रहे। रोचक है, सारनाथ में भी, जिसकी स्थिति संदिग्ध नहीं है, ऐसी ही विषमता पाई जाती है।
  5. जर्नल आफ़ दि रायल एशियाटिक सोसायटी, 1913, पृ. 152 तु., विमल चरण लाहा, प्राचीन भारत का ऐतिहासिक भूगोल, पृ. 171
  6. रीज डेविड्स बुद्धिस्ट इंडिया, वाराणसी, इंडोलाजिकल बुक हाउस (1979) पुनर्मुद्रित, पृ. 26
  7. महावंश2,6
  8. महादर्शनसुत्त के अनुसार
  9. बुद्ध चरित 25, 53
  10. बुद्ध चरित 25, 52
  11. बुद्ध चरित 25, 55
  12. बुद्ध चरित 25, 53
  13. मुकुटबंधन चैत्य में मल्लराजाओं का राज्याभिषेक होता था। बुद्ध चरित 27, 70 के अनुसार बुद्ध की मृत्यु के पश्चात् 'नागद्वार के बाहर आकर मल्लों ने तथागत के शरीर को लिए हुए हिरण्यवती नदी पार की और मुकुट चैत्य के नीचे चिता बनाई'
  14. मृत्यु 232 ई. पू.
  15. बुद्ध का निर्वाण दाहिनी करवट पर लेटे हुए हुआ था।
  16. दे. एंशेंट ज्याग्रेफ़ी आव इंडिया, पृ. 714

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