"हीनयान": अवतरणों में अंतर

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13:45, 21 मार्च 2014 के समय का अवतरण

हीनयान बौद्ध धर्म की एक प्राचीन शाखा है जो इस धर्म के आरंभिक रूप को मानती है। हीनयान बौद्ध धर्म के दो सम्प्रदायों में से एक हैं। इसे थेरवाद भी कहा जाता है। थेरवाद या हीनयान बुद्ध के मौलिक उपदेश ही मानता है। बौद्ध धर्म का दूसरा सम्प्रदाय महायान थेरावादियों को "हीनयान" (छोटी गाड़ी) कहते हैं। श्रावकयान और प्रत्येक बुद्धयान को हीनयान और बोधिसत्त्वयान को महायान कहते हैं। बौद्ध दर्शन के दिव्यावदान में महायान एवं हीनयान दोनों के अंश पाए जाते हैं।

हीनयान का उल्लेख इन लेखों में भी है: बौद्ध धर्म, बौद्ध दर्शन, महायान, महायान साहित्य, फ़ाह्यान, ह्वेन त्सांग एवं अल्प

अर्थ

'हीन' शब्द से गिरे हुए या नीचे का जो बोध आज होता है, आरंभ में हीनयान का यह आशय नहीं था। इसका अर्थ था, देवता या स्वर्ग की स्थिति में विश्वास न करना। हीनयान के अनुसार गौतम बुद्ध महामानव थे। वह उन्हें आदर और सम्मान का पात्र मानता है। उसमें महायान की भांति गौतम को अलौकिक और अमानत रूप प्रदान नहीं किया जाता। हीनयान में भिक्षु अष्टांगिक मार्ग का अनुगमन करता है और चार आर्य सत्यों में विश्वास करता है।

बुद्धवचन

वैभाषिक महायानसूत्रों को बुद्धवचन नहीं मानते, क्योंकि उनमें वर्णित विषय उन्हें अभीष्ट नहीं हैं। वे केवल हीनयानी त्रिपिटक को ही बुद्धवचन मानते हैं। महायानी आचार्य हीनयानी और महायानी सभी सूत्रों को बुद्धवचन मानते हैं।

ग्रन्थ

अवदानशतक हीनयान का ग्रन्थ है- ऐसी मान्यता है। अवदानशतक के चीनी अनुवादकों का ही नहीं, अपितु अवदानशतक के अन्तरंग इसका प्रमाण भी है।

भेद

वैभाषिक और सौत्रान्तिक दर्शन हीनयानी तथा योगाचार और माध्यमिक महायान दर्शन हैं इसमें कुछ सत्यांश होने पर भी दर्शन-भेद यान-भेद का नियामक क़तई नहीं होता, अपितु उद्देश्य-भेद या जीवनलक्ष्य का भेद ही यानभेद का नियामक होता है। उद्देश्य की अधिक व्यापकता और अल्प व्यापकता ही महायान और हीनयान के भेद का अधार है। यहाँ 'हीन' शब्द का अर्थ 'अल्प' है, न कि तुच्छ, नीच या अधम आदि, जैसा कि आजकल हिन्दी में प्रचलित है।

विभाजन

अठारहों निकायों को दार्शनिक विभाजन के अवसर पर वैभाषिक कहने की बौद्ध दार्शनिकों की परम्परा रही है। इसलिए हम भी वैभाषिक, सौत्रान्तिक, योगाचार और माध्यमिक इन प्रसिद्ध चार बौद्ध दर्शनों के विचारों को ही तुलनात्मक दृष्टि से प्रस्तुत करेंगे। यह भी ज्ञात है कि वैभाषिक और सैत्रान्तिकों को हीनयान तथा योगाचार और माध्यमिकों को महायान कहने की परम्परा है। यद्यपि हीनयान और महायान के विभाजन का आधार दर्शन बिलकुल नहीं है।

बौद्ध धर्म का विस्तार

ऐसा प्रतीत होता है कि जब बौद्ध धर्म का विस्तार हुआ और पालि भाषा के स्थान पर संस्कृत का आयोग होने लगा, नये मत-मतांतरों का प्रश्रय मिलने लगा, पुराने मूल रूप से कुछ हटकर महायान संप्रदाय का आविर्भाव हुआ तो अपनी उच्चता सिद्ध करने के लिए महायान के अनुयायियों ने हीनयान के 'हीन' शब्द में निम्नता के भाव का आरोपण किया। वास्तव में हीनयान ही बौद्ध धर्म का आदि रूप था जिसका उल्लेख ई.पू. 350 ई. के प्राप्त पालि साहित्य में भी पाया जाता है। अब बौद्धों में यह विभेद समाप्तप्राय है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ