जलोढ़ पंख

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जलोढ़ पंख बालू, बजरी तथा अन्य निक्षेपों की पंखे की आकृति की एक संहति[1], जिसका शीर्ष ऊर्ध्व प्रवाही और ढाल उत्तल होता है। इसका निर्माण उस समय होता है जब कोई बहने वाली नदी किसी खुले मैदान या घाटी में प्रवेश करती है और अपने साथ लाये गये अवसादों को जमा कर देती है।

  • पर्वतीय ढाल से नीचे उतरती हुई नदी, जब गिरिपद के समीप समतल मैदान में प्रवेश करती है, तब उसके वेग में अचानक कमी आती है और उसके जल के साथ प्रवाहित होने वाले शैल खंड एवं जलोढ़क पर्वतीय ढाल के समीप निक्षेपित होते हैं, जिससे पंखे की आकृति वाली अर्द्धवृत्ताकार स्थलाकृति का निर्माण होता है। इसे 'जलोढ़ पंख' कहा जाता है।
  • शुष्क प्रदेशों में इस प्रकार की रचना सामान्य मानी जाती है, क्योंकि वहाँ पर्वतीय स्रोत सूख जाते हैं, और बाढ़ पुनः आ जाया करती है।
  • कभी-कभी जलोढ़ पंखा कई मील लम्बा हो जाता है, तथा अन्य पड़ौसी नदियों द्वारा बनाये गये अनेक पंखों के साथ मिलकर एक बड़े मैदान का निर्माण करता है जिसको पीडमांट मैदान की संज्ञा दी जाती है।
  • बड़े-बड़े शैलखंडों तथा बजरी का निक्षेप ढाल के समीप होता है और बारीक कणों वाले मलवे का जमाव बाहर की ओर परिधीय भाग में होता है।
  • जलोढ़ पंख का ढाल जलोढ़ शंकु की तुलना में कम होता है, किन्तु विस्तार अधिक होता है।
  • पर्वतीय ढाल के निचले भाग (गिरिपद) पर कई सरिताएँ पृथक-पृथक जलोढ़ पंखों का निर्माण करती हैं। इन जलोढ़ पंखों के बाह्य विस्तार के परिणामस्वरूप कई जलोढ़ पंख परस्पर मिल जाते हैं, जिससे विस्तृत जलोढ़ पंख का निर्माण होता है, जिसे 'संयुक्त जलोढ़ पंख'[2] कहते हैं।
  • कई जलोढ़ पखों के मिल जाने से निर्मित मैदान को 'गिरिपद जलोढ़ मैदान'[3] के नाम से भी जाना जाता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. mass
  2. composite alluvial fan
  3. Piedmont alluvial plain

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