एक्स्प्रेशन त्रुटि: अनपेक्षित उद्गार चिन्ह "२"।

मुनिसुब्रनाथ

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
व्यवस्थापन (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:42, 21 मार्च 2014 का अवतरण (Text replace - "Category:जैन धर्म कोश" to "Category:जैन धर्म कोशCategory:धर्म कोश")
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें

मुनिसुब्रनाथ जैन धर्म के बीसवें तीर्थंकर के रूप में प्रसिद्ध हैं। भगवान मुनिसुव्रतनाथ जी का जन्म राजगृह के हरिवंश कुल में ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को श्रवण नक्षत्र में हुआ था। इनकी माता का नाम पद्मावती देवी और पिता का नाम राजा सुमित्रा था। इनके शरीर का वर्ण श्याम वर्ण और चिह्न कछुआ था।

  • मुनिसुब्रनाथ के यक्ष का नाम वरुण और यक्षिणी का नाम नरदत्ता देवी था।
  • जैन धर्मावलम्बियों के अनुसार इनके गणधरों की कुल संख्या 18 थी, जिनमें मल्लि स्वामी इनके प्रथम गणधर थे।
  • मुनिसुव्रतनाथ स्वामी ने राजगृह में फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी को दीक्षा की प्राप्ति की थी।
  • दीक्षा प्राप्त करने के दो दिन बाद इन्होंने खीर से इन्होनें प्रथम पारणा किया था।
  • ग्यारह महीने तक कठोर तप करने के बाद फाल्गुन कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को मुनिसुव्रतनाथ राजगृह में ही 'चम्पक वृक्ष' के नीचे 'कैवल्य ज्ञान' की प्राप्ति की।
  • कई वर्षों तक सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलने के बाद भगवान मुनिसुव्रतनाथ एक हज़ार साधुओं के साथ सम्मेद शिखर पर ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि को निर्वाण को प्राप्त किया।[1]


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. श्री मुनिसुब्रनाथ जी (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 27 फ़रवरी, 2012।

संबंधित लेख