उस महापुरुष का इस विश्व में न तो कर्म करने से कोई प्रयोजन रहता है और न कर्मों के न करने से ही कोई प्रयोजन रहता है। तथा सम्पूर्ण प्राणियों में भी इसका किज्चिन्मात्र भी स्वार्थ का सम्बन्ध नहीं रहता ।।18।।
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In this world that great soul has no use whatsoever for things done nor for things not done; nor has he selfish dependence of any kind on any creature.(18)
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