हे अर्जुन[1] ! मुझे इन तीनों लोकों में न तो कुछ कर्तव्य है और न कोई भी प्राप्त करने योग्य वस्तु अप्राप्त है, तो भी मैं कर्म में ही बरतता हूँ ।।22।।
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Arjuna, there is no work prescribed for me within all the three planetary systems. Nor am I in want of anything, nor have I need to obtain anything- and yet I am engaged in work.(22)
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