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12:18, 6 जनवरी 2013 के समय का अवतरण

गीता अध्याय-16 श्लोक-19 / Gita Chapter-16 Verse-19

प्रसंग-


अब उन दुर्गुण-दुराचारों में त्याज्य-बुद्धि कराने के लिए अगले दो श्लोकों में भगवान् वैसे लोगों की घोर निन्दा करते हुए उनकी दुर्गति का वर्णन करते हैं-


तानहं द्विषत: क्रूरान्संसारेषु नराधमान् ।

क्षिपाम्यजस्त्रमशुभानासुरीष्वेव योनिषु।।19।।


उन द्वेष करने वाले पापाचारी और क्रूरकर्मी नराधमों को मैं संसार में बार-बार आसुरी योनियों में ही डालता हूँ ।।19।।

These haters, sinful, cruel and vilest among men, I cast again and again into demoniacal wombs in this world.(19)


तान् = उन ; द्विषत: = द्वेष करने वाले ; अशुभान् = पापाचारी (और) ; क्रूरान् = क्रूरकर्मी ; नराधमान् = नराधमों को ; अहमृ = मैं ; संसारेषु = संसार में ; अजस्त्रम् = बारम्बार ; आसुरीषु = आसुरी ; योनिषु = योनियों में ; एव = ही ; क्षिपामि = गिरता हूं



अध्याय सोलह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-16

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15, 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

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