"गीता 14:4": अवतरणों में अंतर

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कौन्तेय = हे अर्जुन ; सर्वयोनिषु = (नाना प्रकार की) सब योनियों में जितनी;  या: = जितनी ; मूर्तय: = मूर्तियां अर्थात् शरीर ; संभवन्ति = उत्पन्न होते हैं ; तासाम् = उन सबकी ; महत् = त्रिगुणमयी माया (तो) ; योनि: = गर्भ को धारण करने वाली माता है (और) ; अहम् = मैं ; बीजप्रद: = बीजको स्थापन करने वाला ; पिता = पिता हूं  
कौन्तेय = हे अर्जुन ; सर्वयोनिषु = (नाना प्रकार की) सब योनियों में जितनी;  या: = जितनी ; मूर्तय: = मूर्तियां अर्थात् शरीर ; संभवन्ति = उत्पन्न होते हैं ; तासाम् = उन सबकी ; महत् = त्रिगुणमयी माया (तो) ; योनि: = गर्भ को धारण करने वाली माता है (और) ; अहम् = मैं ; बीजप्रद: = बीज को स्थापन करने वाला ; पिता = पिता हूं  
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07:33, 5 मई 2015 के समय का अवतरण

गीता अध्याय-14 श्लोक-4 / Gita Chapter-14 Verse-4


सर्वयोनिषु कौन्तेय मूर्तय: सम्भवन्ति या: ।
तासां ब्रह्रा महद्योनिरहं बीजप्रद: पिता ।।4।।



हे अर्जुन[1] ! नाना प्रकार की सब योनियों में जितनी मूर्तियाँ अर्थात् शरीर धारी प्राणी उत्पन्न होते हैं, प्रकृति तो उन सबकी गर्भ धारण करने वाली माता है और मैं बीज को स्थापन करने वाला पिता हूँ ।।4।।

Of all embodied beings that appear in all the species of various kinds Arjuna, Prakrti, or nature is the conceiving mother, while I am the seed-giving father. (4)


कौन्तेय = हे अर्जुन ; सर्वयोनिषु = (नाना प्रकार की) सब योनियों में जितनी; या: = जितनी ; मूर्तय: = मूर्तियां अर्थात् शरीर ; संभवन्ति = उत्पन्न होते हैं ; तासाम् = उन सबकी ; महत् = त्रिगुणमयी माया (तो) ; योनि: = गर्भ को धारण करने वाली माता है (और) ; अहम् = मैं ; बीजप्रद: = बीज को स्थापन करने वाला ; पिता = पिता हूं



अध्याय चौदह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-14

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत के मुख्य पात्र है। वे पाण्डु एवं कुन्ती के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। द्रोणाचार्य के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। द्रौपदी को स्वयंवर में भी उन्होंने ही जीता था।

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