"तुमसे तन-मन मिले प्राण प्रिय -फ़िरदौस ख़ान": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
छो (Adding category Category:स्वतंत्र लेखन (को हटा दिया गया हैं।))
छो (Text replacement - "==संबंधित लेख==" to "==संबंधित लेख== {{स्वतंत्र लेख}}")
 
(2 सदस्यों द्वारा किए गए बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 8: पंक्ति 8:
|मृत्यु=
|मृत्यु=
|मृत्यु स्थान=
|मृत्यु स्थान=
|अविभावक=स्वर्गीय सत्तार अहमद ख़ान और श्रीमती ख़ुशनूदी ख़ान
|अभिभावक=स्वर्गीय सत्तार अहमद ख़ान और श्रीमती ख़ुशनूदी ख़ान
|पालक माता-पिता=
|पालक माता-पिता=
|पति/पत्नी=
|पति/पत्नी=
पंक्ति 75: पंक्ति 75:
==बाहरी कड़ियाँ==
==बाहरी कड़ियाँ==
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
{{स्वतंत्र लेख}}
{{समकालीन कवि}}
{{समकालीन कवि}}
[[Category:समकालीन साहित्य]][[Category:पद्य साहित्य]][[Category:कविता]][[Category:हिन्दी कविता]][[Category:काव्य कोश]]
[[Category:समकालीन साहित्य]][[Category:पद्य साहित्य]][[Category:कविता]][[Category:हिन्दी कविता]][[Category:काव्य कोश]]
[[Category:स्वतंत्र लेखन]]
[[Category:स्वतंत्र लेखन]]
[[Category:स्वतंत्र लेखन कोश]]
__INDEX__
__INDEX__
__NOTOC__
__NOTOC__
__NOEDITSECTION__
__NOEDITSECTION__

13:18, 26 जनवरी 2017 के समय का अवतरण

तुमसे तन-मन मिले प्राण प्रिय -फ़िरदौस ख़ान
फ़िरदौस ख़ान
फ़िरदौस ख़ान
पूरा नाम फ़िरदौस ख़ान
अभिभावक स्वर्गीय सत्तार अहमद ख़ान और श्रीमती ख़ुशनूदी ख़ान
कर्म-क्षेत्र पत्रकार, शायरा और कहानीकार
मुख्य रचनाएँ वंदे मातरम् का पंजाबी अनुवाद, तुमसे तन-मन मिले प्राण प्रिय (गीत), ख़ामोश रात की तन्हाई में (नज़्म)
भाषा हिंदी, अंग्रेज़ी, उर्दू, पंजाबी
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी 'फ़िरदौस ख़ान स्टार न्यूज़ एजेंसी में संपादक हैं। 'स्टार न्यूज़ एजेंसी' और 'स्टार वेब मीडिया' नाम से उनके दो न्यूज़ पॉर्टल भी हैं।
बाहरी कड़ियाँ मेरी डायरी, फ़िरदौस डायरी (हिंदी)
अद्यतन‎
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची

तुमसे तन-मन मिले प्राण प्रिय! सदा सुहागिन रात हो गई
होंठ हिले तक नहीं लगा ज्यों जनम-जनम की बात हो गई

राधा कुंज भवन में जैसे
सीता खड़ी हुई उपवन में
खड़ी हुई थी सदियों से मैं
थाल सजाकर मन-आंगन में
जाने कितनी सुबहें आईं, शाम हुई फिर रात हो गई
होंठ हिले तक नहीं, लगा ज्यों जनम-जनम की बात हो गई

तड़प रही थी मन की मीरा
महा मिलन के जल की प्यासी
प्रीतम तुम ही मेरे काबा
मेरी मथुरा, मेरी काशी,
छुआ तुम्हारा हाथ, हथेली कल्प वृक्ष का पात हो गई
होंठ हिले तक नहीं, लगा ज्यों जनम-जनम की बात हो गई

रोम-रोम में होंठ तुम्हारे
टांक गए अनबूझ कहानी
तू मेरे गोकुल का कान्हा
मैं हूं तेरी राधा रानी
देह हुई वृंदावन, मन में सपनों की बरसात हो गई
होंठ हिले तक नहीं, लगा ज्यों जनम-जनम की बात हो गई

सोने जैसे दिवस हो गए
लगती हैं चांदी-सी रातें
सपने सूरज जैसे चमके
चन्दन वन-सी महकी रातें
मरना अब आसान, ज़िन्दगी प्यारी-सी सौगात ही गई
होंठ हिले तक नहीं, लगा ज्यों जनम-जनम की बात हो गई



पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

स्वतंत्र लेखन वृक्ष