"ज्यों की त्यों धर दीनी चदरिया -उर्मिला श्रीवास्तव": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:Urmila.JPG|thumb|100px|left|[[उर्मिला बहन]]]]रमेश भाई का जीवन अपने में अनेक ऐसे दुर्लभ गुणों के हीरे मोती समेटे हुए था जिसकी प्रेरक मोहक उज्जवलता को अनेक लोगों ने समय-समय पर महसूस किया एवं उससे प्रेरणा पायी।  
[[चित्र:Urmila.png|thumb|100px|left|[[उर्मिला बहन]]]]रमेश भाई का जीवन अपने में अनेक ऐसे दुर्लभ गुणों के हीरे मोती समेटे हुए था जिसकी प्रेरक मोहक उज्ज्वलता को अनेक लोगों ने समय-समय पर महसूस किया एवं उससे प्रेरणा पायी।  
सर्वोदय कार्यकर्ता के लिए गांधी विचार द्वारा जो खाका तैयार किया गया है, जिसमें उसके चिन्तनशील मष्तिष्क, करूणाशील हृदय एवं सजृनशील हांथों की अपेक्षा की गयी है, पर रमेश भाई खरे उतरते हैं।
सर्वोदय कार्यकर्ता के लिए गांधी विचार द्वारा जो खाका तैयार किया गया है, जिसमें उसके चिन्तनशील मष्तिष्क, करूणाशील हृदय एवं सजृनशील हांथों की अपेक्षा की गयी है, पर रमेश भाई खरे उतरते हैं।
उनके चिन्तनशील व्यक्तित्व की फलश्रुति समस्याओं के स्थायी, सर्वमान्य,दूरगामी समाधानों को ढूढने में दिखायी देती थी, मौलिक एवं कल्याणकारी योजनाओं का ताना-बाना बुनने में दिखाई देती थी एवं संगठन एवं नेतृत्व कुशलता में दिखाई देती थी।  
उनके चिन्तनशील व्यक्तित्व की फलश्रुति समस्याओं के स्थायी, सर्वमान्य,दूरगामी समाधानों को ढूढने में दिखायी देती थी, मौलिक एवं कल्याणकारी योजनाओं का ताना-बाना बुनने में दिखाई देती थी एवं संगठन एवं नेतृत्व कुशलता में दिखाई देती थी।  


उनके हृदय में सतत् करूणा का श्रोत प्रवाहित होता रहता था। इसी करूणा ने उनको आम आदमी के सुख-दुख से जुड़ना सिखाया एवं स्थायी भाव से सत्संकल्प लेने के लिए प्रेरित किया। इसी ने उनको साथियों के साथ श्रेष्ठ सहजीवन जीना सिखाया। इसीलिये उनके साथ कार्य करने वाले उनके सभी साथी अपने को एक ढाल से सुरक्षित पाते थे।
उनके हृदय में सतत् करुणा का श्रोत प्रवाहित होता रहता था। इसी करुणा ने उनको आम आदमी के सुख-दुख से जुड़ना सिखाया एवं स्थायी भाव से सत्संकल्प लेने के लिए प्रेरित किया। इसी ने उनको साथियों के साथ श्रेष्ठ सहजीवन जीना सिखाया। इसीलिये उनके साथ कार्य करने वाले उनके सभी साथी अपने को एक ढाल से सुरक्षित पाते थे।
   
   
कार्यकर्ताओं के सहज ज्ञान एवं लम्बे अनुभव ने अपने को पूरी तरह उनको सौंप रखा था इसलिए स्वर्गीय निर्मला दीदी गर्व के साथ कहा करती थीं,  
कार्यकर्ताओं के सहज ज्ञान एवं लम्बे अनुभव ने अपने को पूरी तरह उनको सौंप रखा था इसलिए स्वर्गीय निर्मला दीदी गर्व के साथ कहा करती थीं,  
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अंतिम दिनों से कुछ समय पूर्व धर्मपत्नी श्रीमती उर्मिला श्रीवास्तव के साथ स्व0 रमेश भाई का चित्र
अंतिम दिनों से कुछ समय पूर्व धर्मपत्नी श्रीमती उर्मिला श्रीवास्तव के साथ स्व0 रमेश भाई का चित्र
समान रूप से सब पर झरती करूणा के दर्शन उनके सभी साथियों को निरन्तर होते रहते थे। माताओं बहनों के लिए उनके हृदय में विशेष स्थान था क्योंकि ग्रामीण परिवेश में महिलाओं की स्थिति को उनके हृदय ने बार-बार छुआ था और यह महसूस किया था कि संकल्पबद्ध समर्थ महिला कार्यकर्ताओं की टीम ही उनके जीवन में कुछ किरणें बिखरा सकती है।  
समान रूप से सब पर झरती करुणा के दर्शन उनके सभी साथियों को निरन्तर होते रहते थे। माताओं बहनों के लिए उनके हृदय में विशेष स्थान था क्योंकि ग्रामीण परिवेश में महिलाओं की स्थिति को उनके हृदय ने बार-बार छुआ था और यह महसूस किया था कि संकल्पबद्ध समर्थ महिला कार्यकर्ताओं की टीम ही उनके जीवन में कुछ किरणें बिखरा सकती है।  


एक लम्बे अंतराल तक जुडे़ अनुभवों ने मुझे अनुभव कराया  कि वह कितनी शिद्दत से प्रत्येक महिला को उस कार्यकर्ता के रूप में परिवर्तित देखना चाहते थे जो सामाजिक कामों को अपना जीवन लक्ष्य बना सके।  
एक लम्बे अंतराल तक जुडे़ अनुभवों ने मुझे अनुभव कराया  कि वह कितनी शिद्दत से प्रत्येक महिला को उस कार्यकर्ता के रूप में परिवर्तित देखना चाहते थे जो सामाजिक कामों को अपना जीवन लक्ष्य बना सके।  
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अपने कार्यकर्ताओं का उत्साहवर्धन करते रमेश भाई  
अपने कार्यकर्ताओं का उत्साहवर्धन करते रमेश भाई  
एक पत्नी होते हुए उन्होने मुझसे कभी अपनी व्यक्तिगत सेवा की अपेक्षा नही की। एक सामान्य गृहस्थ लड़की जब उन्हें पत्नी के रूप में मिली उस समय तक वह एक सर्वोदय आन्दोलन के प्रादेशिक नेता के रूप में स्थापित हो चुके थे।  
एक पत्नी होते हुए उन्होंने मुझसे कभी अपनी व्यक्तिगत सेवा की अपेक्षा नहीं की। एक सामान्य गृहस्थ लड़की जब उन्हें पत्नी के रूप में मिली उस समय तक वह एक सर्वोदय आन्दोलन के प्रादेशिक नेता के रूप में स्थापित हो चुके थे।  
जब कुछ लोगों ने कहा कि विवाह के इस निर्णय से कहीं आपकी गति शिथिल तो नही हो जायेगी। उन्होंने हंसकर कहा कि जब हम समाज बदलने का दावा करते हैं तो क्या एक व्यक्ति को नही बदल पायेंगे? और उनका लोगों को बदलना भी ऐसा जिसमें उसका व्यक्तित्व निरन्तर निखरता जाये।  
जब कुछ लोगों ने कहा कि विवाह के इस निर्णय से कहीं आपकी गति शिथिल तो नहीं हो जायेगी। उन्होंने हंसकर कहा कि जब हम समाज बदलने का दावा करते हैं तो क्या एक व्यक्ति को नहीं बदल पायेंगे? और उनका लोगों को बदलना भी ऐसा जिसमें उसका व्यक्तित्व निरन्तर निखरता जाये।  


बाद के समय में भी मेरे समेत अनेक लोगों को एक कार्यकर्ता के रूप में एक पहचान मिली और इसमें जीवन की सार्थकता के अनुभव हुए।
बाद के समय में भी मेरे समेत अनेक लोगों को एक कार्यकर्ता के रूप में एक पहचान मिली और इसमें जीवन की सार्थकता के अनुभव हुए।


वस्तुतः उनका लक्ष्य साफ एवं स्पष्ट था। महिलाओं को एक श्रेष्ठ कार्यकर्ता के रूप में तैयार करना जो ज्यादा गहराई से महिलाओं के जीवन में जाकर उनकी स्थिति बदलने के लिए कार्य कर सके। अपने को पीछे रखतेे हुए अपने सहकर्मियों को निरंतर आगे रखना, जिसमें वह अपनी सफलता से प्रेरित हो सके, उनके कार्य करने की सफल रणनीति थी। इसी ने अनेक सफल कार्यकर्ताओं को जन्म दिया।
वस्तुतः उनका लक्ष्य साफ एवं स्पष्ट था। महिलाओं को एक श्रेष्ठ कार्यकर्ता के रूप में तैयार करना जो ज्यादा गहराई से महिलाओं के जीवन में जाकर उनकी स्थिति बदलने के लिए कार्य कर सके। अपने को पीछे रखते हुए अपने सहकर्मियों को निरंतर आगे रखना, जिसमें वह अपनी सफलता से प्रेरित हो सके, उनके कार्य करने की सफल रणनीति थी। इसी ने अनेक सफल कार्यकर्ताओं को जन्म दिया।
   
   
आश्रम में अपने मातृत्व की आभा विखेरती उर्मिला बहन
[[चित्र:Ramesh_bhai9.JPG|thumb|250px|left|'''आश्रम की दीवार पर अंकित [[महात्मा गांधी]] के सुप्रसिद्ध वक्तव्य से श्री [[मोतीलाल बोरा]] को परिचित कराते रमेश भाई''']]
 
परिणामों से अपने को अलिप्त रखते हुए, हंसते हुए, मस्ती में कामरेडशिप से काम करना उनका जीवन दर्शन था। प्रत्येक स्थिति में सकारात्मकता को अपनाना उनके कार्य करने का तरीका था।  
परिणामों से अपने को अलिप्त रखते हुए, हंसते हुए, मस्ती में कामरेडशिप से काम करना उनका जीवन दर्शन था। प्रत्येक स्थिति में सकारात्मकता को अपनाना उनके कार्य करने का तरीका था।  
किसी भी असफलता का श्रेय वह अपने उपर लेते हुये यह कहते थे कि अब हमारी व्यक्तिगत साधना कम हो गयी है इसीलिए शायद यह स्थिति आयी और इसके बाद वह एक निष्काम कर्मयोगी के समान सामाजिक साधना में रत हो जाते।  
किसी भी असफलता का श्रेय वह अपने उपर लेते हुये यह कहते थे कि अब हमारी व्यक्तिगत साधना कम हो गयी है इसीलिए शायद यह स्थिति आयी और इसके बाद वह एक निष्काम कर्मयोगी के समान सामाजिक साधना में रत हो जाते।  
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फिर चाहें वह औसत व्यक्ति से तीन गुना शारीरिक श्रम करने का कार्य हो अथवा रात-दिन जागकर संस्था निर्माण का कार्य।  
फिर चाहें वह औसत व्यक्ति से तीन गुना शारीरिक श्रम करने का कार्य हो अथवा रात-दिन जागकर संस्था निर्माण का कार्य।  
किशोरवय में किया गया गीता पारायण अंत तक उनको एक सच्चे कर्मयोगी की भांति रास्ता दिखाता गया जिससे उनके अनेक बडे़-बडे़ कार्य लोकेष्णा के बगैर सम्भव हो सके।
किशोरवय में किया गया गीता पारायण अंत तक उनको एक सच्चे कर्मयोगी की भांति रास्ता दिखाता गया जिससे उनके अनेक बडे़-बडे़ कार्य लोकेष्णा के बगैर सम्भव हो सके।
 
आश्रम की दीवार पर अंकित महात्मा गांधी के सुप्रसिद्ध वक्तव्य से श्री मोतीलाल बोरा को परिचित कराते रमेश भाई
रमेश भाई के सृजनशील जीवन ने अनेक व्यक्तियों, संस्थाओं परम्पराओं एवं विचारों को न केवल जन्म दिया है बल्कि परिपूर्ण पोषण से उन्हें सफलता भी प्रदान की है आज जबकि आस्था पर संकट है उनका जीवन हमें आस्थावान बनाता है एवं एक रास्ता दिखाता है। बहुत अंशों तक कबीर की यह वाणी उन पर खरी उतरती है कि  
रमेश भाई के सृजनशील जीवन ने अनेक व्यक्तियों, संस्थाओं परम्पराओं एवं विचारों को न केवल जन्म दिया है बल्कि परिपूर्ण पोषण से उन्हें सफलता भी प्रदान की है आज जबकि आस्था पर संकट है उनका जीवन हमें आस्थावान बनाता है एवं एक रास्ता दिखाता है। बहुत अंशों तक कबीर की यह वाणी उन पर खरी उतरती है कि  


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उनकी द्वितीय पुण्यतिथि पर हम सभी कार्यकर्ता उनके श्रेष्ठ विचारों का अनुसरण करते रहने का वचन देते हैं।
उनकी द्वितीय पुण्यतिथि पर हम सभी कार्यकर्ता उनके श्रेष्ठ विचारों का अनुसरण करते रहने का वचन देते हैं।


;आगे पढ़ने के लिए [[रमेश भाई -अशोक कुमार शुक्ला| ज्यों की त्यों धर दीनी चदरिया (संकलित आलेख)]] पर जाएँ
 
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
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==बाहरी कड़ियाँ==
==बाहरी कड़ियाँ==
# [http://www.gadyakosh.org/gk/%E0%A4%B9%E0%A5%83%E0%A4%A6%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B6_%E0%A4%95%E0%A4%BE_%E0%A4%A7%E0%A5%81%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%B5%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BE_/_%E0%A4%85%E0%A4%B2%E0%A4%96_%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%88 गद्य कोश पर ज्यों की त्यों धर दीनी चदरिया, आलेख: उर्मिला श्रीवास्तव]
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==संबंधित लेख==
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13:38, 1 अगस्त 2017 के समय का अवतरण

यह लेख स्वतंत्र लेखन श्रेणी का लेख है। इस लेख में प्रयुक्त सामग्री, जैसे कि तथ्य, आँकड़े, विचार, चित्र आदि का, संपूर्ण उत्तरदायित्व इस लेख के लेखक/लेखकों का है भारतकोश का नहीं।
ज्यों की त्यों धर दीनी चदरिया -उर्मिला श्रीवास्तव
रमेश भाई से जुड़े आलेख
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संपादक अशोक कुमार शुक्ला
प्रकाशक भारतकोश पर संकलित
देश भारत
पृष्ठ: 80
भाषा हिन्दी
विषय रमेश भाई के प्रेरक प्रसंग
मुखपृष्ठ रचना प्रेरक प्रसंग‎

ज्यों की त्यों धर दीनी चदरिया

आलेख: उर्मिला श्रीवास्तव
अध्यक्षा, सर्वोदय आश्रम, हरदोई
(धर्मपत्नी स्व0 रमेश भाई)

उर्मिला बहन
रमेश भाई का जीवन अपने में अनेक ऐसे दुर्लभ गुणों के हीरे मोती समेटे हुए था जिसकी प्रेरक मोहक उज्ज्वलता को अनेक लोगों ने समय-समय पर महसूस किया एवं उससे प्रेरणा पायी।

सर्वोदय कार्यकर्ता के लिए गांधी विचार द्वारा जो खाका तैयार किया गया है, जिसमें उसके चिन्तनशील मष्तिष्क, करूणाशील हृदय एवं सजृनशील हांथों की अपेक्षा की गयी है, पर रमेश भाई खरे उतरते हैं।
उनके चिन्तनशील व्यक्तित्व की फलश्रुति समस्याओं के स्थायी, सर्वमान्य,दूरगामी समाधानों को ढूढने में दिखायी देती थी, मौलिक एवं कल्याणकारी योजनाओं का ताना-बाना बुनने में दिखाई देती थी एवं संगठन एवं नेतृत्व कुशलता में दिखाई देती थी।

उनके हृदय में सतत् करुणा का श्रोत प्रवाहित होता रहता था। इसी करुणा ने उनको आम आदमी के सुख-दुख से जुड़ना सिखाया एवं स्थायी भाव से सत्संकल्प लेने के लिए प्रेरित किया। इसी ने उनको साथियों के साथ श्रेष्ठ सहजीवन जीना सिखाया। इसीलिये उनके साथ कार्य करने वाले उनके सभी साथी अपने को एक ढाल से सुरक्षित पाते थे।
 
कार्यकर्ताओं के सहज ज्ञान एवं लम्बे अनुभव ने अपने को पूरी तरह उनको सौंप रखा था इसलिए स्वर्गीय निर्मला दीदी गर्व के साथ कहा करती थीं,

’रमेश भाई! आपके पास हिन्दुस्तान की बेहतरीन टीम है।’

अंतिम दिनों से कुछ समय पूर्व धर्मपत्नी श्रीमती उर्मिला श्रीवास्तव के साथ स्व0 रमेश भाई का चित्र
समान रूप से सब पर झरती करुणा के दर्शन उनके सभी साथियों को निरन्तर होते रहते थे। माताओं बहनों के लिए उनके हृदय में विशेष स्थान था क्योंकि ग्रामीण परिवेश में महिलाओं की स्थिति को उनके हृदय ने बार-बार छुआ था और यह महसूस किया था कि संकल्पबद्ध समर्थ महिला कार्यकर्ताओं की टीम ही उनके जीवन में कुछ किरणें बिखरा सकती है।

एक लम्बे अंतराल तक जुडे़ अनुभवों ने मुझे अनुभव कराया कि वह कितनी शिद्दत से प्रत्येक महिला को उस कार्यकर्ता के रूप में परिवर्तित देखना चाहते थे जो सामाजिक कामों को अपना जीवन लक्ष्य बना सके।
उनके हृदय पक्ष की कोमलता उनकी कविताओं में देखने को मिलती है। आश्चर्य होता है, उनकी इतनी कम उम्र में लिखी गयी इतनी परिपक्व कविताओं पर।
 
अपने कार्यकर्ताओं का उत्साहवर्धन करते रमेश भाई
एक पत्नी होते हुए उन्होंने मुझसे कभी अपनी व्यक्तिगत सेवा की अपेक्षा नहीं की। एक सामान्य गृहस्थ लड़की जब उन्हें पत्नी के रूप में मिली उस समय तक वह एक सर्वोदय आन्दोलन के प्रादेशिक नेता के रूप में स्थापित हो चुके थे।
जब कुछ लोगों ने कहा कि विवाह के इस निर्णय से कहीं आपकी गति शिथिल तो नहीं हो जायेगी। उन्होंने हंसकर कहा कि जब हम समाज बदलने का दावा करते हैं तो क्या एक व्यक्ति को नहीं बदल पायेंगे? और उनका लोगों को बदलना भी ऐसा जिसमें उसका व्यक्तित्व निरन्तर निखरता जाये।

बाद के समय में भी मेरे समेत अनेक लोगों को एक कार्यकर्ता के रूप में एक पहचान मिली और इसमें जीवन की सार्थकता के अनुभव हुए।

वस्तुतः उनका लक्ष्य साफ एवं स्पष्ट था। महिलाओं को एक श्रेष्ठ कार्यकर्ता के रूप में तैयार करना जो ज्यादा गहराई से महिलाओं के जीवन में जाकर उनकी स्थिति बदलने के लिए कार्य कर सके। अपने को पीछे रखते हुए अपने सहकर्मियों को निरंतर आगे रखना, जिसमें वह अपनी सफलता से प्रेरित हो सके, उनके कार्य करने की सफल रणनीति थी। इसी ने अनेक सफल कार्यकर्ताओं को जन्म दिया।
 

आश्रम की दीवार पर अंकित महात्मा गांधी के सुप्रसिद्ध वक्तव्य से श्री मोतीलाल बोरा को परिचित कराते रमेश भाई


परिणामों से अपने को अलिप्त रखते हुए, हंसते हुए, मस्ती में कामरेडशिप से काम करना उनका जीवन दर्शन था। प्रत्येक स्थिति में सकारात्मकता को अपनाना उनके कार्य करने का तरीका था।
किसी भी असफलता का श्रेय वह अपने उपर लेते हुये यह कहते थे कि अब हमारी व्यक्तिगत साधना कम हो गयी है इसीलिए शायद यह स्थिति आयी और इसके बाद वह एक निष्काम कर्मयोगी के समान सामाजिक साधना में रत हो जाते।

फिर चाहें वह औसत व्यक्ति से तीन गुना शारीरिक श्रम करने का कार्य हो अथवा रात-दिन जागकर संस्था निर्माण का कार्य।
किशोरवय में किया गया गीता पारायण अंत तक उनको एक सच्चे कर्मयोगी की भांति रास्ता दिखाता गया जिससे उनके अनेक बडे़-बडे़ कार्य लोकेष्णा के बगैर सम्भव हो सके।

रमेश भाई के सृजनशील जीवन ने अनेक व्यक्तियों, संस्थाओं परम्पराओं एवं विचारों को न केवल जन्म दिया है बल्कि परिपूर्ण पोषण से उन्हें सफलता भी प्रदान की है आज जबकि आस्था पर संकट है उनका जीवन हमें आस्थावान बनाता है एवं एक रास्ता दिखाता है। बहुत अंशों तक कबीर की यह वाणी उन पर खरी उतरती है कि

ज्यों की त्यों धर दीनी चदरियॉ

उनकी द्वितीय पुण्यतिथि पर हम सभी कार्यकर्ता उनके श्रेष्ठ विचारों का अनुसरण करते रहने का वचन देते हैं।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

  1. गद्य कोश पर ज्यों की त्यों धर दीनी चदरिया, आलेख: उर्मिला श्रीवास्तव

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