"गीता 5:22": अवतरणों में अंतर
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replace - " मे " to " में ") |
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replacement - "बुद्वि" to "बुद्धि") |
||
(2 सदस्यों द्वारा किए गए बीच के 4 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
<table class="gita" width="100%" align="left"> | <table class="gita" width="100%" align="left"> | ||
<tr> | <tr> | ||
पंक्ति 9: | पंक्ति 8: | ||
'''प्रसंग-''' | '''प्रसंग-''' | ||
---- | ---- | ||
विषय भोगों को काम-क्रोधादि के निमित्त से | विषय भोगों को काम-क्रोधादि के निमित्त से दु:ख के हेतु बतलाकर अब मनुष्य शरीर का महत्त्व दिखलाते हुए भगवान् काम-क्रोधादि दुर्जय शत्रुओं पर विजय प्राप्त कर लेने वाले पुरुष की प्रशंसा करते हैं- | ||
---- | ---- | ||
<div align="center"> | <div align="center"> | ||
पंक्ति 23: | पंक्ति 22: | ||
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"| | | style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"| | ||
जो ये इन्द्रिय तथा विषयों के संयोग से उत्पन्न होने वाले सब भोग हैं, वे यद्यपि विषयी पुरुषों को सुख रूप भासते हैं तो भी दु:ख के ही हेतु हैं और आदि अन्त वाले अर्थात् अनित्य हैं । इसलिये हे < | जो ये इन्द्रिय तथा विषयों के संयोग से उत्पन्न होने वाले सब भोग हैं, वे यद्यपि विषयी पुरुषों को सुख रूप भासते हैं तो भी दु:ख के ही हेतु हैं और आदि अन्त वाले अर्थात् अनित्य हैं । इसलिये हे [[अर्जुन]]<ref>[[महाभारत]] के मुख्य पात्र है। वे [[पाण्डु]] एवं [[कुन्ती]] के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। [[द्रोणाचार्य]] के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। [[द्रौपदी]] को [[स्वयंवर]] में भी उन्होंने ही जीता था।</ref> ! बुद्धिमान् विवेकी पुरुष उनमें नहीं रमता ।।22।। | ||
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"| | | style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"| | ||
पंक्ति 35: | पंक्ति 33: | ||
|- | |- | ||
| style="width:100%;text-align:center; font-size:110%;padding:5px;" valign="top" | | | style="width:100%;text-align:center; font-size:110%;padding:5px;" valign="top" | | ||
संस्पर्शजा: = इन्द्रिय तथा विषयों के संयोग से उत्पन्न होने वाले; भोगा: = सब भोग हैं: ते = वे (यद्यपि विषयी पुरुषों को सुख रूप भासते हैं तोभी); हि =नि:सन्देह; दु;खयोनय: = दु:ख के ही हेतु हैं (और); आद्यन्तवन्त: = आदि अन्त वाले अर्थात् अनित्य हैं (इसलिये); कौन्तेय = हे अर्जुन: बुध: = | संस्पर्शजा: = इन्द्रिय तथा विषयों के संयोग से उत्पन्न होने वाले; भोगा: = सब भोग हैं: ते = वे (यद्यपि विषयी पुरुषों को सुख रूप भासते हैं तोभी); हि =नि:सन्देह; दु;खयोनय: = दु:ख के ही हेतु हैं (और); आद्यन्तवन्त: = आदि अन्त वाले अर्थात् अनित्य हैं (इसलिये); कौन्तेय = हे अर्जुन: बुध: = बुद्धिमान् विवेकी पुरुष; तेषु = उनमें; न = नहीं; रमते = रमता | ||
|- | |- | ||
|} | |} | ||
पंक्ति 59: | पंक्ति 57: | ||
<tr> | <tr> | ||
<td> | <td> | ||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | |||
<references/> | |||
==संबंधित लेख== | |||
{{गीता2}} | {{गीता2}} | ||
</td> | </td> |
08:17, 15 सितम्बर 2017 के समय का अवतरण
गीता अध्याय-5 श्लोक-22 / Gita Chapter-5 Verse-22
|
||||
|
||||
|
||||
|
||||
टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |
||||