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विषय भोगों को काम-क्रोधादि के निमित्त से दुख के हेतु बतलाकर अब मनुष्य शरीर का महत्व दिखलाते हुए भगवान् काम-क्रोधादि दुर्जय शत्रुओं पर विजय प्राप्त कर लेने वाले पुरुष की प्रशंसा करते हैं-  
विषय भोगों को काम-क्रोधादि के निमित्त से दु:ख के हेतु बतलाकर अब मनुष्य शरीर का महत्त्व दिखलाते हुए भगवान् काम-क्रोधादि दुर्जय शत्रुओं पर विजय प्राप्त कर लेने वाले पुरुष की प्रशंसा करते हैं-  
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जो ये इन्द्रिय तथा विषयों के संयोग से उत्पन्न होने वाले सब भोग हैं, वे यद्यपि विषयी पुरुषों को सुख रूप भासते हैं तो भी दु:ख के ही हेतु हैं और आदि अन्त वाले अर्थात् अनित्य हैं । इसलिये हे <balloon link="अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर मे जीतने वाला वो ही था।
जो ये इन्द्रिय तथा विषयों के संयोग से उत्पन्न होने वाले सब भोग हैं, वे यद्यपि विषयी पुरुषों को सुख रूप भासते हैं तो भी दु:ख के ही हेतु हैं और आदि अन्त वाले अर्थात् अनित्य हैं । इसलिये हे [[अर्जुन]]<ref>[[महाभारत]] के मुख्य पात्र है। वे [[पाण्डु]] एवं [[कुन्ती]] के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। [[द्रोणाचार्य]] के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। [[द्रौपदी]] को [[स्वयंवर]] में भी उन्होंने ही जीता था।</ref> ! बुद्धिमान् विवेकी पुरुष उनमें नहीं रमता ।।22।।
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08:17, 15 सितम्बर 2017 के समय का अवतरण

गीता अध्याय-5 श्लोक-22 / Gita Chapter-5 Verse-22

प्रसंग-


विषय भोगों को काम-क्रोधादि के निमित्त से दु:ख के हेतु बतलाकर अब मनुष्य शरीर का महत्त्व दिखलाते हुए भगवान् काम-क्रोधादि दुर्जय शत्रुओं पर विजय प्राप्त कर लेने वाले पुरुष की प्रशंसा करते हैं-


ये हि संस्पर्शजा भोगा दु:खयोनय एव ते ।
आद्यन्तवन्त: कौन्तेय न तेषु रमते बुध: ।।22।।



जो ये इन्द्रिय तथा विषयों के संयोग से उत्पन्न होने वाले सब भोग हैं, वे यद्यपि विषयी पुरुषों को सुख रूप भासते हैं तो भी दु:ख के ही हेतु हैं और आदि अन्त वाले अर्थात् अनित्य हैं । इसलिये हे अर्जुन[1] ! बुद्धिमान् विवेकी पुरुष उनमें नहीं रमता ।।22।।

The pleasures which are born of sense-contacts are verily a source of suffering only (though appearing as enjoyable to worldly-minded pepole). They have a beginning and an end(they come and go). Arjuna, it is for this reason that a wise man does not indulge in them. (22)


संस्पर्शजा: = इन्द्रिय तथा विषयों के संयोग से उत्पन्न होने वाले; भोगा: = सब भोग हैं: ते = वे (यद्यपि विषयी पुरुषों को सुख रूप भासते हैं तोभी); हि =नि:सन्देह; दु;खयोनय: = दु:ख के ही हेतु हैं (और); आद्यन्तवन्त: = आदि अन्त वाले अर्थात् अनित्य हैं (इसलिये); कौन्तेय = हे अर्जुन: बुध: = बुद्धिमान् विवेकी पुरुष; तेषु = उनमें; न = नहीं; रमते = रमता



अध्याय पाँच श्लोक संख्या
Verses- Chapter-5

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8, 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 ,28 | 29

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत के मुख्य पात्र है। वे पाण्डु एवं कुन्ती के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। द्रोणाचार्य के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। द्रौपदी को स्वयंवर में भी उन्होंने ही जीता था।

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