"आर्कटिक वेधशाला से कुछ नोट्स -अजेय": अवतरणों में अंतर
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|कवि =[[अजेय]] | |कवि =[[अजेय]] | ||
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|जन्म स्थान=( | |जन्म स्थान=(सुमनम, केलंग, [[हिमाचल प्रदेश]]) | ||
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<div style="border:thin solid #a7d7f9; margin:10px"> | <div style="border:thin solid #a7d7f9; margin:10px"> | ||
{| align="center" | {| align="center" | ||
! | ! अजेय की रचनाएँ | ||
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<div style="height: 250px; overflow:auto; overflow-x: hidden; width:99%"> | <div style="height: 250px; overflow:auto; overflow-x: hidden; width:99%"> | ||
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<poem> | <poem> | ||
'''सुबह होगी और दिन भर बसंत रहेगा''' | '''सुबह होगी और दिन भर बसंत रहेगा''' | ||
9. | |||
पौ फट रही है | |||
क्षितिज बैंगनी हो गया है | क्षितिज बैंगनी हो गया है | ||
इस लम्बी सर्दी के बाद जो सूरज उगेगा | इस लम्बी सर्दी के बाद जो सूरज उगेगा | ||
पंक्ति 39: | पंक्ति 41: | ||
मनपसंद रंगों में धमा चौकड़ी मचाएंगे | मनपसंद रंगों में धमा चौकड़ी मचाएंगे | ||
10. | |||
बर्फ़ पर कोई सिंदूर छिड़क गया है। | |||
28. | |||
सारा खेल वक्त का है | |||
वक्त सूरज तय करता है | वक्त सूरज तय करता है | ||
सूरज हवाएँ पैदा करता है | सूरज हवाएँ पैदा करता है | ||
हवा समुद्र को छेड़ता है | हवा समुद्र को छेड़ता है | ||
समुद्र ने | समुद्र ने बर्फ़ को तोड़ना शुरू कर दिया है | ||
बर्फ़ पिघलते ही हरी काई के फीते तैरने लग जाएगें | |||
29. यह हलचल ही है | 29. | ||
यह हलचल ही है | |||
जहाँ जीवन दिखता है | |||
वह एक लहर थी | वह एक लहर थी | ||
जो मछलियों को तट तक बहा लाई | जो मछलियों को तट तक बहा लाई | ||
पंक्ति 60: | पंक्ति 65: | ||
दूर-दूर तक यह जगह एक शिकारगाह बन जाएगी। | दूर-दूर तक यह जगह एक शिकारगाह बन जाएगी। | ||
30. | 30. | ||
चट्टानों पर कोंपले निकल आएंगी | |||
तेज़ हवा की मार सहती हुई | |||
धीरे-धीरे धरती के साथ भूरी होती लोमड़ी | धीरे-धीरे धरती के साथ भूरी होती लोमड़ी | ||
झुंड से बिछडे़ चूज़ों को खाना शुरू करेगी | झुंड से बिछडे़ चूज़ों को खाना शुरू करेगी | ||
पंक्ति 67: | पंक्ति 73: | ||
बहुत छोटा है उसके लिए | बहुत छोटा है उसके लिए | ||
हारवेस्टिंग का यह मौसम/ फिर भी | हारवेस्टिंग का यह मौसम/ फिर भी | ||
आर्कटिक में भुखमरी | आर्कटिक में भुखमरी नहीं है! | ||
तुम्हारा नहीं होना | '''तुम्हारा नहीं होना''' | ||
25. | 25. | ||
इस गुनगुनी धूपवाली सुबह | |||
इस ठाठदार ‘स्नो रिज़ॉर्ट’ में | इस ठाठदार ‘स्नो रिज़ॉर्ट’ में | ||
तुम्हारा नहीं होना भी | तुम्हारा नहीं होना भी | ||
एक विलास है | एक विलास है | ||
रोयेंदार कम्बल की सलवटों डूबा हुआ | |||
टटोलती रहती है जिसमें मेरी उंगलियां | टटोलती रहती है जिसमें मेरी उंगलियां | ||
उन | उन ख़ास चीज़ों को | ||
रात भर साथ रहते हुए भी जो | रात भर साथ रहते हुए भी जो | ||
सुबह अकसर नदारद होती है - | सुबह अकसर नदारद होती है - | ||
एक सुविधाजनक रिमोट बटन | |||
एक सुकूनबख्श सिग्रेट लाईटर | एक सुकूनबख्श सिग्रेट लाईटर | ||
तुम्हारी यादों को दर्ज करने वाली | तुम्हारी यादों को दर्ज करने वाली | ||
एक मुलायम पेंसिल | एक मुलायम पेंसिल | ||
और जो पड़ी रहतीं हैं | और जो पड़ी रहतीं हैं | ||
सटी हुई आपस में | सटी हुई आपस में | ||
पंक्ति 90: | पंक्ति 97: | ||
कहाँ हो तुम। | कहाँ हो तुम। | ||
31. | 31. | ||
आज मैं उन तमाम चीज़ों के सैम्पल लूँगा | |||
दिन निकलते ही जो | दिन निकलते ही जो | ||
बरफ के क्रिस्टलों के बीच | बरफ के क्रिस्टलों के बीच | ||
पंक्ति 105: | पंक्ति 113: | ||
और मिट्टी ने | और मिट्टी ने | ||
खो जाना | खो जाना | ||
पानी में | पानी में | ||
और ठोस हो जाना? | और ठोस हो जाना? | ||
32. | 32. | ||
दोपहर तक | |||
तुम्हारा नहीं होना | तुम्हारा नहीं होना | ||
आर्द्रता के नहीं होने में तबदील हो गया है | आर्द्रता के नहीं होने में तबदील हो गया है | ||
पंक्ति 120: | पंक्ति 129: | ||
बेहूदा कोहरे की संपीड़ित परतों में। | बेहूदा कोहरे की संपीड़ित परतों में। | ||
33. | 33. | ||
सांझ ढलने पर तुम्हारा नहीं होना | |||
एक अलग ही भाव से शुक्र तारे का झिपझिपाना है | एक अलग ही भाव से शुक्र तारे का झिपझिपाना है | ||
मेरे एकान्त को चिढ़ाते हुए | मेरे एकान्त को चिढ़ाते हुए | ||
पंक्ति 134: | पंक्ति 144: | ||
अंधेरी हवाओं के सुपुर्द कर आता हूँ चुपचाप | अंधेरी हवाओं के सुपुर्द कर आता हूँ चुपचाप | ||
अपने संभावित आविष्कार की हज़ारों चिन्दियाँ। | अपने संभावित आविष्कार की हज़ारों चिन्दियाँ। | ||
36. | |||
36. | |||
‘फुली लोडेड’ हो कर भी, कभी | |||
शामिल हो जाती है जीवन में | शामिल हो जाती है जीवन में | ||
ऐसी अवशता | ऐसी अवशता | ||
पंक्ति 143: | पंक्ति 155: | ||
तुम्हारा नहीं होना | तुम्हारा नहीं होना | ||
दरअसल | दरअसल | ||
तमाम छूटी हुई गणनाओं से पहले | तमाम छूटी हुई गणनाओं से पहले | ||
तुम्हें खोज पाना है अपने भीतर | तुम्हें खोज पाना है अपने भीतर | ||
अपने ही भीतर | अपने ही भीतर | ||
आह | आह | ||
तुम! | तुम! | ||
एक शाश्वत नृत्य इसी बासी पृथ्वी पर | एक शाश्वत नृत्य इसी बासी पृथ्वी पर | ||
49. | |||
49. | |||
क्या तम्हें पता था | |||
झूमते रहते हैं देर रात तक | झूमते रहते हैं देर रात तक | ||
खूब सूरत ‘‘नॉर्दन लाईट्स’’ | खूब सूरत ‘‘नॉर्दन लाईट्स’’ | ||
मटमैले ध्रुवीय आसमान पर | |||
चलता रहता है उत्सव | चलता रहता है उत्सव | ||
शून्य से तीस डिग्री नीचे भी? | शून्य से तीस डिग्री नीचे भी? | ||
इतनी सुन्दर है प्रकृति | |||
और फैली हुई | और फैली हुई | ||
क्षण-क्षण अनगिनत रूपाकारों में | क्षण-क्षण अनगिनत रूपाकारों में | ||
पंक्ति 164: | पंक्ति 178: | ||
बाहर निकल कर देखा है कभी? | बाहर निकल कर देखा है कभी? | ||
50. | 50. | ||
खोज पाता होगा सदियों में कोई एक | |||
इस गुप्त उत्सव का रहस्य | इस गुप्त उत्सव का रहस्य | ||
जो चल रहा है लगातार | जो चल रहा है लगातार | ||
पंक्ति 170: | पंक्ति 185: | ||
जो देख नहीं पाते हम अपने ही सपनों के कारण | जो देख नहीं पाते हम अपने ही सपनों के कारण | ||
आह ! | आह ! | ||
क्या अनुभव है | क्या अनुभव है | ||
जागते हुए | जागते हुए | ||
खुले में | खुले में | ||
सन्नाटे में यह सब देख जाना। | सन्नाटे में यह सब देख जाना। | ||
55. | |||
इस तरह से सिकुड़े हुए थे हम | |||
55. | |||
कितने दयनीय | कितने दयनीय | ||
परत दर परत | परत दर परत | ||
पंक्ति 184: | पंक्ति 198: | ||
अपने दबावों में दबे हुए | अपने दबावों में दबे हुए | ||
बिछुड़े हुए | बिछुड़े हुए | ||
अपने-अपने गहरे खन्दकों की | अपने-अपने गहरे खन्दकों की | ||
अंधेरी भूल भूलैया में | अंधेरी भूल भूलैया में | ||
दुबके, अकड़े हुए | दुबके, अकड़े हुए | ||
जहाँ नरक है, नीचे | जहाँ नरक है, नीचे | ||
पंक्ति 191: | पंक्ति 205: | ||
नए नक्षत्रों की दूरियाँ | नए नक्षत्रों की दूरियाँ | ||
खोजनी थी नई दुनिया | खोजनी थी नई दुनिया | ||
58. | |||
58. | |||
अरे , कौन रुका रहना चाहता था ? | |||
कौन ? | |||
63. धूप सी बरसती थी | 63. | ||
धूप सी बरसती थी | |||
संतप्त हहराती आकांक्षा | संतप्त हहराती आकांक्षा | ||
भाप सा उड़ जाता था | भाप सा उड़ जाता था | ||
इस | इस महान् पृथ्वी का तरल सौन्दर्य | ||
कि कूच कर जाना था ऐसे ही एक दिन | कि कूच कर जाना था ऐसे ही एक दिन | ||
मुझे | मुझे | ||
तुम्हें | तुम्हें | ||
हम सब को | हम सब को | ||
सहस्त्रों आकाश गंगाओं की तलाश में | सहस्त्रों आकाश गंगाओं की तलाश में | ||
इस वेधशाला से तेरह अरब प्रकाश वर्ष दूर | इस वेधशाला से तेरह अरब प्रकाश वर्ष दूर | ||
जैसे ही अवसर मिले। | जैसे ही अवसर मिले। | ||
64. | 64. | ||
कौन रूका रहना चाहता था | |||
इस बासी पृथ्वी पर? | इस बासी पृथ्वी पर? | ||
75. लेकिन रुको दोस्त | 75. | ||
अपनी युटोपिया पर तुम्हारा पूरा पूरा हक है | लेकिन रुको दोस्त | ||
अपनी युटोपिया पर तुम्हारा पूरा पूरा हक है | |||
लेकिन माफ करना, | लेकिन माफ करना, | ||
एक छोटी सी छूट लेना चाहता हूँ मैं | एक छोटी सी छूट लेना चाहता हूँ मैं | ||
यहां खलल डालते हुए | यहां खलल डालते हुए | ||
क्या तुम अपने इस अत्याधुनिक ‘डिवाईस’ से | क्या तुम अपने इस अत्याधुनिक ‘डिवाईस’ से | ||
इस बीहड़ आर्कटिक के काले आसमान पर | इस बीहड़ आर्कटिक के काले आसमान पर | ||
पंक्ति 219: | पंक्ति 238: | ||
उन सुन्दर ध्रुवीय प्रकाशों की पृष्टभूमि पर | उन सुन्दर ध्रुवीय प्रकाशों की पृष्टभूमि पर | ||
बार-बार उभारना चाहता हूँ | बार-बार उभारना चाहता हूँ | ||
अपनी प्रतिछाया | अपनी प्रतिछाया | ||
बादल पर | बादल पर | ||
बिजली और इन्द्रधनुषों की तरह | बिजली और इन्द्रधनुषों की तरह | ||
नाचना चाहता हूँ | नाचना चाहता हूँ | ||
76. | |||
76. | |||
ओ वेगवान तूफ़ान | |||
ओ स्थिर जलमग्न हिमखंड ! | ओ स्थिर जलमग्न हिमखंड ! | ||
ओ उफनते समुद्र | |||
ओ खामोश सितारो ! | ओ खामोश सितारो ! | ||
ओ मेरे प्रिय साजिन्दो !! | |||
ओ | |||
मेरे प्रिय साजिन्दो !! | |||
आज की रात तुम खूब बजाना | |||
दिल से | दिल से | ||
कि रूपान्तरित हो जाना है हम सब को | कि रूपान्तरित हो जाना है हम सब को | ||
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<references/> | <references/> | ||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{स्वतंत्र लेख}} | |||
{{समकालीन कवि}} | {{समकालीन कवि}} | ||
[[Category:समकालीन साहित्य]][[Category:अजेय]][[Category:कविता]] | [[Category:समकालीन साहित्य]][[Category:अजेय]][[Category:कविता]] |
14:11, 30 जून 2017 के समय का अवतरण
यह लेख स्वतंत्र लेखन श्रेणी का लेख है। इस लेख में प्रयुक्त सामग्री, जैसे कि तथ्य, आँकड़े, विचार, चित्र आदि का, संपूर्ण उत्तरदायित्व इस लेख के लेखक/लेखकों का है भारतकोश का नहीं। |
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सुबह होगी और दिन भर बसंत रहेगा |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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