"इस उठान के बाद नदी -अजेय": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
('{| style="background:transparent; float:right" |- | {{सूचना बक्सा कविता |चित्र=Ajey.JPG |चि...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
छो (Text replacement - "==संबंधित लेख==" to "==संबंधित लेख== {{स्वतंत्र लेख}}")
 
(2 सदस्यों द्वारा किए गए बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
{{स्वतंत्र लेखन नोट}}
{| style="background:transparent; float:right"
{| style="background:transparent; float:right"
|-
|-
पंक्ति 64: पंक्ति 65:
ताज़ा कटे कछार  
ताज़ा कटे कछार  
अच्छे से ठोक ठुड़क कर छाँट लेते हर दिन  
अच्छे से ठोक ठुड़क कर छाँट लेते हर दिन  
पूरा एक खज़ाना
पूरा एक ख़ज़ाना
तुम चुन लो अपना एक शंकर  
तुम चुन लो अपना एक शंकर  
और मुट्ठी भर उस के गण  
और मुट्ठी भर उस के गण  
पंक्ति 93: पंक्ति 94:
<references/>
<references/>
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
{{स्वतंत्र लेख}}
{{समकालीन कवि}}
{{समकालीन कवि}}
[[Category:समकालीन साहित्य]][[Category:अजेय]][[Category:कविता]]
[[Category:समकालीन साहित्य]][[Category:अजेय]][[Category:कविता]]

13:18, 26 जनवरी 2017 के समय का अवतरण

यह लेख स्वतंत्र लेखन श्रेणी का लेख है। इस लेख में प्रयुक्त सामग्री, जैसे कि तथ्य, आँकड़े, विचार, चित्र आदि का, संपूर्ण उत्तरदायित्व इस लेख के लेखक/लेखकों का है भारतकोश का नहीं।
इस उठान के बाद नदी -अजेय
कवि अजेय
जन्म स्थान (सुमनम, केलंग, हिमाचल प्रदेश)
बाहरी कड़ियाँ आधिकारिक वेबसाइट
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
अजेय की रचनाएँ

इस नदी को देखने लिए
आप इस के एक दम क़रीब जाएं

घिस घिस कर कैसे कठोर हुए हैं और सुन्दर
कितने ही रंग और बनक लिए पत्थर

उतरती रही होगी
पिछली कितनी ही उठानों पर
भुरभुरी पोशाकें इन की
कि गुम सुम धूप खा रहीं
उकड़ूँ ध्यान मगन
और पसरी हुई कोई ठाठ से
आज जब उतर चुका है पानी

 
अलग अलग बिछे हुए
पेड़
मवेशी
कनस्तर
डिब्बे
लत्ते
ढेले
कंकर
रेत .................

कि नदी के बाहर भी बह रही थीं
कुछ नदियाँ शायद
उन्हें क़रीब से देखने की ज़रूरत थी.


कुछ बच्चे माला माल हो गए अचानक
खंगालते हुए
लदे फदे
ताज़ा कटे कछार
अच्छे से ठोक ठुड़क कर छाँट लेते हर दिन
पूरा एक ख़ज़ाना
तुम चुन लो अपना एक शंकर
और मुट्ठी भर उस के गण
मैं कोई बुद्ध देखता हूँ अपने लिए
हो सके तो एकाध अनुगामी श्रमण
और खेलेंगे भगवान भगवान दिन भर .

ठूँस लें अपनी जेबों में आप भी
ये जो बिखरी हुई हैं नैमतें
शाम घिरने से पहले वरना
वो जो नदी के बाहर है
पानी के अलावा
जिस की अपनी अलग ही एक हरारत है
बहा ले जाएगा गुपचुप अपनी बिछाई हुई चीज़ें
आने वाले किसी भी अँधेरे में
आप आएं

आप आएं
और देख लें इस भरी पूरी नदी को
यहाँ एक दम क़रीब आ कर .


2001


टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

स्वतंत्र लेखन वृक्ष