"गीता 5:11": अवतरणों में अंतर
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इस प्रकार के कर्म करने वाला भक्ति प्रधान कर्मयोगी पापों से लिप्त नहीं होता और कर्म प्रधान कर्मयोगी का अन्त:करण शुद्ध हो जाता है, यह सुनने पर इस बात की जिज्ञासा होती है कि कर्मयोग का यह अन्त:करण शुद्धि रूप इतना ही फल है, या इसके अतिरिक्त कुछ विशेष फल भी हैं ? एवं इस प्रकार कर्म न करके सकामभाव से शुभ कर्म करने में क्या हानि है ? अतएव अब इसी बात को स्पष्ट रूप से समझाने के लिये भगवान् कहते हैं – | इस प्रकार के कर्म करने वाला [[भक्ति]] प्रधान कर्मयोगी पापों से लिप्त नहीं होता और कर्म प्रधान कर्मयोगी का अन्त:करण शुद्ध हो जाता है, यह सुनने पर इस बात की जिज्ञासा होती है कि कर्मयोग का यह अन्त:करण शुद्धि रूप इतना ही फल है, या इसके अतिरिक्त कुछ विशेष फल भी हैं ? एवं इस प्रकार कर्म न करके सकामभाव से शुभ कर्म करने में क्या हानि है ? अतएव अब इसी बात को स्पष्ट रूप से समझाने के लिये भगवान् कहते हैं – | ||
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योगिन: =निष्काम कर्मयोगी ( | योगिन: =निष्काम कर्मयोगी (ममत्वबुद्धिरहित ) केवलै; =केवल; इन्द्रियै: = इन्द्रिय; मनसा = मन; बुद्वया= बुद्धि (और); कायेन =शरीर द्वारा; अपि =भी; सग्ड़म = आसक्ति को; त्यक्त्वा=त्यागकर; आत्मशुद्वये = अन्त:करण की शुद्वि के लिये; कुर्वन्ति = करते हैं। | ||
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==संबंधित लेख== | |||
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08:17, 15 सितम्बर 2017 के समय का अवतरण
गीता अध्याय-5 श्लोक-11 / Gita Chapter-5 Verse-11
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टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |
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