"गीता 5:5": अवतरणों में अंतर

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ज्ञानयोगियों द्वारा जो परमधाम प्राप्त किया जाता है, कर्मयोगियों द्वारा भी वहीं प्राप्त किया जाता है । इसलिये जो पुरुष ज्ञान योग और कर्मयोग को फलस्वरूप में एक देखता है, वही यथार्थ देखता है ।।5।।  
ज्ञानयोगियों द्वारा जो परमधाम प्राप्त किया जाता है, कर्मयोगियों द्वारा भी वहीं प्राप्त किया जाता है। इसलिये जो पुरुष ज्ञान योग और कर्मयोग को फलस्वरूप में एक देखता है, वही यथार्थ देखता है ।।5।।  


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13:26, 4 जनवरी 2013 के समय का अवतरण

गीता अध्याय-5 श्लोक-5 / Gita Chapter-5 Verse-5

प्रसंग-


सांख्ययोग और कर्मयोग के फल की एकता बतलाकर अब कर्मयोग की साधनविषयक विशेषता को स्पष्ट करते हैं-


यत्सांख्यै: प्राप्यते स्थानं तद्योगैरपि गम्यते ।
एकं सांख्यं च योगं च य: पश्यति स पश्यति ।।5।।




ज्ञानयोगियों द्वारा जो परमधाम प्राप्त किया जाता है, कर्मयोगियों द्वारा भी वहीं प्राप्त किया जाता है। इसलिये जो पुरुष ज्ञान योग और कर्मयोग को फलस्वरूप में एक देखता है, वही यथार्थ देखता है ।।5।।


The supreme state which is reached by the sankhyayogi is attained also by the karmayogi. Therefore, he alone who sees sankhyagoga and karmayoga as one so for as their result goes really sees. (5)


सांख्यै: = ज्ञानयोगियों द्वारा; यत् = जो; स्थानम् = परमधाम; प्राप्यते = प्राप्त किया जाता है; योगै: = निष्काम कर्मयोगियों द्वारा; अपि = भी; तत् = वही; गम्यते = प्राप्त किया जाता है(इसलिये); य: = जो (पुरुष) सांख्यम् = ज्ञान योग; योगम् = निष्काम कर्मयोग को फलरूप से; एकम् = एक; पश्यति = देखता है; स: = वह



अध्याय पाँच श्लोक संख्या
Verses- Chapter-5

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8, 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 ,28 | 29

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

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