"गीता 5:10": अवतरणों में अंतर

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जो पुरुष सब कर्मों को परमात्मा में अर्पण करके और आसक्ति को त्याग कर कर्म करता है, वह पुरुष जल से कमल के पत्ते की भाँति पाप से लिप्त नहीं होता है ।।10।।
जो पुरुष सब कर्मों को परमात्मा में अर्पण करके और आसक्ति को त्याग कर कर्म करता है, वह पुरुष [[जल]] से [[कमल]] के पत्ते की भाँति पाप से लिप्त नहीं होता है ।।10।।


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13:31, 4 जनवरी 2013 के समय का अवतरण

गीता अध्याय-5 श्लोक-10 / Gita Chapter-5 Verse-10


ब्रह्ण्याधाय कर्माणि संग्ङं त्यक्त्वा करोति य: ।
लिप्तये न स पापेन पद्मपत्रमिवाम्भसा ||10||



जो पुरुष सब कर्मों को परमात्मा में अर्पण करके और आसक्ति को त्याग कर कर्म करता है, वह पुरुष जल से कमल के पत्ते की भाँति पाप से लिप्त नहीं होता है ।।10।।

He who acts offering all actions to God, and shaking off attachment, remains untouched by sin, as the lotus leaf by water.(10)


य: = जो पुरुष; कर्माणि = सब कर्मों को; ब्राह्मणि = परमात्मा में; आधाय = अर्पण करके (और); संग्ड़म् = आसक्ति को; त्यक्त्वा =त्यागकर; करोति = कर्म करता है; स: = वह पुरुष; अम्भसा = जल से; पझपत्रम् = कमल के पत्ते की; इव = सदृश; पापेन = पाप से; न लिप्यते = लिपायमान नहीं होता



अध्याय पाँच श्लोक संख्या
Verses- Chapter-5

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8, 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 ,28 | 29

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

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