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12:53, 21 मार्च 2010 का अवतरण

गीता अध्याय-14 श्लोक-12 / Gita Chapter-14 Verse-12

प्रसंग-


इस प्रकार सत्त्वगुण की वृद्धि के लक्षणों का वर्णन करके अब रजोगुण की वृद्धि के लक्षण बतलाते हैं-


लोभ: प्रवृत्तिरारम्भ: कर्मणामशम: स्पृहा ।
रजस्येतानि जायन्ते विवृद्धे भरतर्षभ ।।12।।



हे <balloon link="अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर मे जीतने वाला वो ही था। ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> ! रजोगुण के बढ़ने पर लोभ प्रवृत्ति, स्वार्थ बुद्धि से कर्मों का सकाम भाव से आरम्भ, अशान्ति और विषय भोगों की लालसा – ये सब उत्पन्न होते हैं ।।12।।

With the preponderance of rajas, Arjuna, greed, activity, undertaking of actions with an interested motive, restlessness and a thirst for enjoyment make their appearance. (12)


भरतर्षभ = हे अर्जुन ; रजसि = रजोगुण के ; विवृद्धे = बढने पर ; लोभ: = लोभ (और) ; प्रवृत्ति: = सांसारकि चेष्टा (तथा) ; कर्मणाम् = सब प्रकार के कर्मोंका (स्वार्थबुद्धि से) ; आरम्भ: = आरम्भ (एवं) ; अशम: = अशान्ति अर्थात् मनकी चच्चलता (और) ; स्पृहा = विषयभोगों की लालसा ; एतानि = यह सब ; जायन्ते = उत्पन्न होते



अध्याय चौदह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-14

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)