"जलोढ़ मिट्टी": अवतरणों में अंतर
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12:48, 4 मई 2012 का अवतरण
जलोढ़ मिट्टी उत्तर भारत के पश्चिम में पंजाब से लेकर सम्पूर्ण उत्तरी विशाल मैदान को आवृत करते हुए गंगा नदी के डेल्टा क्षेत्र तक फैली है। अत्यधिक उर्वरता वाली इस मिट्टी का विस्तार सामान्यतः देश की नदियों के वेसिनों एवं मैदानी भागों तक ही सीमित है। हल्के भूरे रंगवाली यह मिट्टी 7.68 लाख वर्ग किमी को आवृत किये हुए है। इसकी भौतिक विशेषताओं का निर्धारण जलवायविक दशाओं विशेषकर वर्षा तथा वनस्पतियों की वृद्धि द्वारा किया जाता है। इस मिट्टी में उत्तरी भारत में सिंचाई के माध्यम से गन्ना, गेहूँ, चावल, जूट, तम्बाकू, तिलहन फसलों तथा सब्जियों की खेती की जाती है। उत्पत्ति, संरचना तथा उर्वरता की मात्रा के आधार पर इसको तीन प्रकारों में वर्गीकृत किया जाता है, जो निम्नलिखित है -
पुरातन जलोढ़ या बांगर मिट्टी
नदियों द्वारा बहाकर उनके पाश्र्ववर्ती भागों में अत्यधिक ऊंचाई तक बिछायी गयी पुरानी जलोढ़ मिट्टी को बांगर के नाम से जाना जाता है। नदियों में आने वाली बाढ़ का पानी ऊंचाई के कारण इन पर नहीं पहुंच पाता है। नदी जल की प्राप्ति न होने, धरातलीय ऊंचाई तथा जल-तल के नीचा होने के कारण उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान एवं बिहार की काफी मिट्टी ऊसर हो गयी है। ऐसी मिट्टी रेह या कल्लर कहलाती है।
नूतन जलोढ़ या खादर मिट्टी
यह मिट्टी नदियों के बाढ़ के मैदानों तक ही सीमित होती है। इसके कण बहुत ही महीन होते हैं तथा इनकी जलधारण शक्ति पुरातन जलोढ़ की अपेक्षा अधिक होती है। नदी घाटी में स्थित होने के कारण इस मिट्टी की आवश्यकता सामान्यतः नहीं होती है। रबी की फसल के लिए यह मिट्टी उत्तम है।
अतिनूतन जलोढ़ मिट्टी
इस प्रकार की मिट्टी गंगा, ब्रह्मपुत्र, महानदी, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी आदि बड़ी नदियों के डेल्टा क्षेत्र में ही मिलती है। यह मिट्टी दलदली एवं नमकीन प्रकृति की होती है। इसके कण अत्यधिक बारीक होते हैं तथा इसमें पोटाश, चूना, फास्फोरस, मैग्नीशियम एवं जीवांशों की अधिक मात्रा समाहित रहती है। इस मिट्टी में गन्ना, जूट आदि फसलों की कृषि की जाती है। डेल्टा के उच्च भागों में पुरानी काँप मिट्टी पायी जाती है, जिसे राढ़ कहते हैं।
उपर्युक्त प्रकार की जलोढ़ मिट्टियों का गठन बलुई-दोमट से लेकर मृत्तिकामय रूप में पाया जाता है तथा इनका रंग हल्का भूरा होता है। इस प्रकार की मिट्टी में नाइट्रोजन, फास्फोरस तथा वनस्पतियों के अंश कम मात्रा में मिलते हैं तथापित ये बहुत ऊपजाऊ हैं।
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