"गीता 16:6": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
छो (Text replace - "{{गीता2}}" to "{{प्रचार}} {{गीता2}}")
No edit summary
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
<table class="gita" width="100%" align="left">
<table class="gita" width="100%" align="left">
<tr>
<tr>
पंक्ति 9: पंक्ति 8:
'''प्रसंग-'''
'''प्रसंग-'''
----
----
इस अध्याय के प्रारम्भ में और इसके पूर्व भी दैवी-सम्पदा का विस्तार से वर्णन किया गया, परंतु आसुरी-सम्पदा का वर्णन अब तक बहुत संक्षेप से ही हुआ । अतएव आसुरी प्रकृति वाले मनुष्यों के स्वभाव और आचार-व्यवहार का विस्तारपूर्वक वर्णन करने के लिये अब भगवान् उसको प्रस्तावना करते हैं-
इस अध्याय के प्रारम्भ में और इसके पूर्व भी दैवी-सम्पदा का विस्तार से वर्णन किया गया, परंतु आसुरी-सम्पदा का वर्णन अब तक बहुत संक्षेप से ही हुआ। अतएव आसुरी प्रकृति वाले मनुष्यों के स्वभाव और आचार-व्यवहार का विस्तारपूर्वक वर्णन करने के लिये अब भगवान् उसको प्रस्तावना करते हैं-
----
----
<div align="center">
<div align="center">
पंक्ति 22: पंक्ति 21:
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"|
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"|


हे <balloon link="अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर मे जीतने वाला वो ही था।
हे [[अर्जुन]]<ref>[[महाभारत]] के मुख्य पात्र है। वे [[पाण्डु]] एवं [[कुन्ती]] के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। [[द्रोणाचार्य]] के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। [[द्रौपदी]] को [[स्वयंवर]] में भी उन्होंने ही जीता था।</ref> ! इस लोक में भूतों की सृष्टि यानी मनुष्य समुदाय दो ही प्रकार का है, एक तो दैवी प्रकृति वाला और दूसरा आसुरी प्रकृति वाला। उनमें से दैवी प्रकृति वाला तो विस्तारपूर्वक कहा गया, अब तू आसुरी प्रकृति वाले मनुष्य-समुदाय को भी विस्तारपूर्वक मुझसे सुन ।।6।।
¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> ! इस लोक में भूतों की सृष्टि यानी मनुष्य समुदाय दो ही प्रकार का है, एक तो दैवी प्रकृति वाला और दूसरा आसुरी प्रकृति वाला । उनमें से दैवी प्रकृति वाला तो विस्तारपूर्वक कहा गया, अब तू आसुरी प्रकृति वाले मनुष्य-समुदाय को भी विस्तारपूर्वक मुझसे सुन ।।6।।
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"|
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"|
There are only two types of men in this world, Arjuna, the one possessing a divine nature and the other possessing a demoniac disposition. Of these, the type possessing a divine nature has been dealt with at length; now hear in detail from Me about the type possessing demoniac disposition.(6)
There are only two types of men in this world, Arjuna, the one possessing a divine nature and the other possessing a demoniac disposition. Of these, the type possessing a divine nature has been dealt with at length; now hear in detail from Me about the type possessing demoniac disposition.(6)
|-
|-
पंक्ति 58: पंक्ति 54:
<tr>
<tr>
<td>
<td>
{{प्रचार}}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
==संबंधित लेख==
{{गीता2}}
{{गीता2}}
</td>
</td>

11:58, 6 जनवरी 2013 के समय का अवतरण

गीता अध्याय-16 श्लोक-6 / Gita Chapter-16 Verse-6

प्रसंग-


इस अध्याय के प्रारम्भ में और इसके पूर्व भी दैवी-सम्पदा का विस्तार से वर्णन किया गया, परंतु आसुरी-सम्पदा का वर्णन अब तक बहुत संक्षेप से ही हुआ। अतएव आसुरी प्रकृति वाले मनुष्यों के स्वभाव और आचार-व्यवहार का विस्तारपूर्वक वर्णन करने के लिये अब भगवान् उसको प्रस्तावना करते हैं-


द्वौ भूतसर्गौ लोकेऽस्मिन्दैव आसुर एव च ।

दैवो विस्तरश: प्रोक्त आसुरं पार्थ मे श्रृणु ।।6।।


हे अर्जुन[1] ! इस लोक में भूतों की सृष्टि यानी मनुष्य समुदाय दो ही प्रकार का है, एक तो दैवी प्रकृति वाला और दूसरा आसुरी प्रकृति वाला। उनमें से दैवी प्रकृति वाला तो विस्तारपूर्वक कहा गया, अब तू आसुरी प्रकृति वाले मनुष्य-समुदाय को भी विस्तारपूर्वक मुझसे सुन ।।6।।

There are only two types of men in this world, Arjuna, the one possessing a divine nature and the other possessing a demoniac disposition. Of these, the type possessing a divine nature has been dealt with at length; now hear in detail from Me about the type possessing demoniac disposition.(6)


पार्थ = हे अर्जुन ; अस्मिन् = इस ; लोके = लोक में ; भूतसर्गौं =भूतों के स्वभाव ; द्वौ = दो प्रकार के ; मतौ = माने गये हैं ; एव = ही ; विस्तरश: = विस्तारपूर्वक ; प्रोक्त: = कहा गया है ; (अत:) = इसलिये (अब) ; दैव: = देवों के जैसा ; च = और (दूसरा) ; आसुर: = असुरो के जैसा (उनमें) ; दैव: = देवों का स्वभाव ; आसुरम् = असुरों के स्वभाव को (भी) विस्तारपूर्वक ; मे = मेरे से ; श्रृणु = सुन ;



अध्याय सोलह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-16

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15, 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत के मुख्य पात्र है। वे पाण्डु एवं कुन्ती के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। द्रोणाचार्य के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। द्रौपदी को स्वयंवर में भी उन्होंने ही जीता था।

संबंधित लेख