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13:19, 21 मार्च 2010 का अवतरण

गीता अध्याय-16 श्लोक-5 / Gita Chapter-16 Verse-5

प्रसंग-


इस प्रकार देवी-सम्पत् और आसुरी-सम्पत् से युक्त पुरुषों के लक्षणों का वर्णन करके अब भगवान् दोनों सम्पदाओं का फल बतलाते हुए अर्जुन को दैवी- सम्पदा से युक्त बतलाकर आश्वासन देते हैं-


दैवीसंपद्विमोक्षाय निबन्धायासुरी मता ।

मा शुच: संपदं दैवीमभिजातोऽसि पाण्डव ।।5।।


दैवी-सम्पदा मुक्ति के लिये और आसुरी-सम्पदा बाँधने के लिये मानी गयी है । इसलिये हे <balloon link="अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर मे जीतने वाला वो ही था। ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> ! तू शोक मत कर, क्योंकि तू दैवी-सम्पदा को लेकर उत्पन्न हुआ है ।।5।।

The divine gift has been recognized as conducive to liberation, and the demoniac gift as conducive to bondage; Grieve not, Arjuna; for you are born with the divine endowment.(5)


दैवी संपत् = दैवी संपदा (तो) ; विमोक्षाय = मुक्ति के लिये (और) ; आसुरी = आसुरी (संपदा) ; निबन्धाय = बांधने के लिये ; मता = मानी गयी हे ; (अत:) = इसलिये ; पाण्डव = हे अर्जुन (तूं) ; मा शुच: = शोक मत कर ; (यत:) = क्योंकि (तूं) ; दैवीम् = दैवी ; संपदम् = संपदा को ; अभिजात: = प्राप्त हुआ ; असि = है ;



अध्याय सोलह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-16

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15, 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)