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15:07, 21 मार्च 2010 का अवतरण

गीता अध्याय-5 श्लोक-16 / Gita Chapter-5 Verse-16

प्रसंग-


यथार्थ ज्ञान से परमात्मा की प्राप्ति होती है, यह बात संक्षेप में कहकर अब छब्बीसवें श्लोक तक ज्ञानयोग द्वारा परमात्मा को प्राप्त होने के साधन तथा परमात्मा को प्राप्त सिद्ध पुरुषों के लक्षण, आचरण, महत्व और स्थिति का वर्णन करने के उद्देश्य से पहले यहाँ ज्ञानयोग के एकान्त साधन द्वारा परमात्मा की प्राप्ति बतलाते हैं-


ज्ञानेन तु तदज्ञानं येषां नाशितमात्मन: ।
तेषामादित्यवज्ज्ञानं प्रकाशयति तत्परम् ।।16।।



परन्तु जिसका वह अज्ञान परमात्मा के तत्व ज्ञान द्वारा नष्ट कर दिया गया है, उनका वह ज्ञान सूर्य के सदृश उस सच्चिदानन्दघन परमात्मा को प्रकाशित कर देता है ।।16।।

In the case, however, to those whose said ignorance has been set aside by true knowledge of god, that wisdom shining like the sun reveals the supreme. (16)


तु = परन्तु; येषाम् = जिनका; तत् = वह; आत्मन: = अन्त;करण का; अज्ञानम् = अज्ञान; ज्ञानेन = आत्मज्ञानद्वारा; नाशितम् = नाश हो गया है तेषाम् = उनका; ज्ञानम् = सूर्य के सदृश; तत्परम् = उस सच्चिदानन्द धन की परमात्मा को; प्रकाशयति = प्रकाशता है।



अध्याय पाँच श्लोक संख्या
Verses- Chapter-5

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8, 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 ,28 | 29

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)