"गीता 5:1": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
छो (Text replace - "सन्यास" to "सन्न्यास")
छो (Text replace - "संन्यास" to "सन्न्यास")
 
पंक्ति 16: पंक्ति 16:
----
----
<div align="center">
<div align="center">
'''संन्यासं कर्मणां कृष्ण पुनर्योगं च शंससि ।'''<br/>
'''सन्न्यासं कर्मणां कृष्ण पुनर्योगं च शंससि ।'''<br/>
'''यच्छ्रेय एतयोरेकं तन्मे ब्रूहि सुनिश्चितम् ।।1।।'''
'''यच्छ्रेय एतयोरेकं तन्मे ब्रूहि सुनिश्चितम् ।।1।।'''
</div>
</div>
पंक्ति 28: पंक्ति 28:
'''अर्जुन बोले-'''
'''अर्जुन बोले-'''
----
----
हे [[श्रीकृष्ण]]<ref>'गीता' कृष्ण द्वारा [[अर्जुन]] को दिया गया उपदेश है। कृष्ण भगवान [[विष्णु]] के [[अवतार]] माने जाते हैं। कृष्ण की स्तुति लगभग सारे [[भारत]] में किसी न किसी रूप में की जाती है।</ref> ! आप कर्मों के संन्यास की और फिर कर्मयोग की प्रशंसा करते हैं। इसलिये इन दोनों में से जो एक मेरे लिये भली-भाँति निश्चित कल्याणकारक साधन हो, उसको कहिये ।।1।।
हे [[श्रीकृष्ण]]<ref>'गीता' कृष्ण द्वारा [[अर्जुन]] को दिया गया उपदेश है। कृष्ण भगवान [[विष्णु]] के [[अवतार]] माने जाते हैं। कृष्ण की स्तुति लगभग सारे [[भारत]] में किसी न किसी रूप में की जाती है।</ref> ! आप कर्मों के सन्न्यास की और फिर कर्मयोग की प्रशंसा करते हैं। इसलिये इन दोनों में से जो एक मेरे लिये भली-भाँति निश्चित कल्याणकारक साधन हो, उसको कहिये ।।1।।


| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"|
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"|
पंक्ति 40: पंक्ति 40:
|-
|-
| style="width:100%;text-align:center; font-size:110%;padding:5px;" valign="top" |
| style="width:100%;text-align:center; font-size:110%;padding:5px;" valign="top" |
कर्मणाम् = कर्मों के; संन्यासम् = सन्न्यास की; पुन: = फिर; योगम् = निष्काम कर्मयोग की; शंससि = प्रशंसा करते हो (इसलिये) एतयो: = इन दोनों में; एकम् = एक; यत् = जो; सुनिश्चितम् = निश्चय किया हुआ; श्रेय: = कल्याण कारक (होवे); तत् = उसको; मे = मेरे लिये; ब्रूहि = कहिये  
कर्मणाम् = कर्मों के; सन्न्यासम् = सन्न्यास की; पुन: = फिर; योगम् = निष्काम कर्मयोग की; शंससि = प्रशंसा करते हो (इसलिये) एतयो: = इन दोनों में; एकम् = एक; यत् = जो; सुनिश्चितम् = निश्चय किया हुआ; श्रेय: = कल्याण कारक (होवे); तत् = उसको; मे = मेरे लिये; ब्रूहि = कहिये  
|-
|-
|}
|}

13:53, 2 मई 2015 के समय का अवतरण

गीता अध्याय-5 श्लोक-1 / Gita Chapter-5 Verse-1

पच्चमोऽध्याय: प्रसंग-


भगवान् के श्रीमुख से ही 'ब्रह्मर्पण ब्रह्म हवि:', 'ब्रह्मग्नावपरे यज्ञं यज्ञेनैवोपजुहृति', 'तद्विद्वि प्राणिपातेन' आदि वचनों द्वारा ज्ञानयोग अर्थात् कर्मसन्न्यास की भी प्रशंसा अर्जुन ने सुनी । इससे अर्जुन[1] यह निर्णय नहीं कर सके कि इन दोनों में से मेरे लिये कौन-सा साधन श्रेष्ठ है । अतएव अब भगवान् के श्रीमुख से ही उसका निर्णय कराने के उद्देश्य से अर्जुन उनसे प्रश्न करते हैं- इस पच्चम अध्याय में कर्मयोग-निष्ठा और सांख्ययोग-निष्ठा का वर्णन है, सांख्ययोग का ही पर्यायवाची शब्द 'सन्न्यास' है। इसलिये इस अध्याय का नाम 'कर्म-सन्न्यासयोग' रखा गया है ।

प्रसंग-

अब भगवान् अर्जुन के इस प्रश्न का उत्तर देते हैं-

सन्न्यासं कर्मणां कृष्ण पुनर्योगं च शंससि ।
यच्छ्रेय एतयोरेकं तन्मे ब्रूहि सुनिश्चितम् ।।1।।



अर्जुन बोले-


हे श्रीकृष्ण[2] ! आप कर्मों के सन्न्यास की और फिर कर्मयोग की प्रशंसा करते हैं। इसलिये इन दोनों में से जो एक मेरे लिये भली-भाँति निश्चित कल्याणकारक साधन हो, उसको कहिये ।।1।।

Arjuna said:


Krishna, you extol sankhyayoga the Yoga of knowledge and then the yoga of action. Pray tell me which of the two is decidedly conducive to my good. (1)


कर्मणाम् = कर्मों के; सन्न्यासम् = सन्न्यास की; पुन: = फिर; योगम् = निष्काम कर्मयोग की; शंससि = प्रशंसा करते हो (इसलिये) एतयो: = इन दोनों में; एकम् = एक; यत् = जो; सुनिश्चितम् = निश्चय किया हुआ; श्रेय: = कल्याण कारक (होवे); तत् = उसको; मे = मेरे लिये; ब्रूहि = कहिये



अध्याय पाँच श्लोक संख्या
Verses- Chapter-5

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8, 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 ,28 | 29

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत के मुख्य पात्र है। वे पाण्डु एवं कुन्ती के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। द्रोणाचार्य के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। द्रौपदी को स्वयंवर में भी उन्होंने ही जीता था।
  2. 'गीता' कृष्ण द्वारा अर्जुन को दिया गया उपदेश है। कृष्ण भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं। कृष्ण की स्तुति लगभग सारे भारत में किसी न किसी रूप में की जाती है।

संबंधित लेख