"गीता 5:2": अवतरणों में अंतर
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''' | '''सन्न्यास: कर्मयोगश्च नि:श्रेयसकरावुभौ ।'''<br/> | ||
'''तयोस्तु | '''तयोस्तु कर्मसन्न्यासात्कर्मयोगी विशिष्यते ।।2।।''' | ||
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'''श्रीभगवान् बोले-''' | '''श्रीभगवान् बोले-''' | ||
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कर्म | कर्म सन्न्यास और कर्मयोग-ये दोनों ही परम कल्याण के करने वाले हैं, परंतु उन दोनों में भी कर्म सन्न्यास से कर्मयोग साधन में सुगम होने से श्रेष्ठ है ।।2।। | ||
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सन्न्यास: = कर्मों का सन्न्यास; कर्मयोग: = निष्काम कर्मयोग; उभौ = यह दोनों ही; नि:श्रेयसकरौ = परम कल्याण के करने वाले हैं; तु =परन्तु; तयो: = उन दोनों में भी; कर्म सन्न्यासात् = कर्मों के सन्न्यास से; कर्मयोग; निष्काम कर्म योग (साधन सुगम होने से); विशिष्यते = श्रेष्ठ है | |||
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13:53, 2 मई 2015 के समय का अवतरण
गीता अध्याय-5 श्लोक-2 / Gita Chapter-5 Verse-2
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टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |
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