"गीता 14:3": अवतरणों में अंतर
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भारत = हे अर्जुन ; मम = मेरी ; महत् ब्रह्म = महत् ब्रह्मरूप प्रकृति अर्थात् त्रिगुणमयी माया (संपूर्ण भूतोंकी) ; गर्भम् = चेतनरूप बीज को ; दधामि = स्थापन करता हूं ; तत: = उस जडचेतन के संयोग से ; योनि: = योनि है | भारत = हे अर्जुन ; मम = मेरी ; महत् ब्रह्म = महत् ब्रह्मरूप प्रकृति अर्थात् त्रिगुणमयी माया (संपूर्ण भूतोंकी) ; गर्भम् = चेतनरूप बीज को ; दधामि = स्थापन करता हूं ; तत: = उस जडचेतन के संयोग से ; योनि: = योनि है अर्थात् गर्भाधान का स्थान हे (और) ; अहम् = मैं ; तस्मिन् = उस योनि में ; सर्वभूतानाम् = सब भूतों की ; संभव: = उत्पत्ति = उत्पत्ति ; भवति = होती है | ||
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07:52, 7 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण
गीता अध्याय-14 श्लोक-3 / Gita Chapter-14 Verse-3
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टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |
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