क्षारीय मिट्टी

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
फ़ौज़िया ख़ान (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:54, 23 अप्रैल 2012 का अवतरण ('{{पुनरीक्षण}} '''क्षारीय मिट्टी''' की उत्पत्ति शुष्क एवं ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
इस लेख का पुनरीक्षण एवं सम्पादन होना आवश्यक है। आप इसमें सहायता कर सकते हैं। "सुझाव"

क्षारीय मिट्टी की उत्पत्ति शुष्क एवं अर्धशुष्क भागों में जल तल के ऊँचा होने एवं जलप्रवाह के दोषपूर्ण होने के कारण होती है। ऐसी स्थिति में केशिकाकर्षण की क्रिया द्वारा सोडियम, कैल्शियम एवं मैग्नीशियम के लवण मृदा की ऊपरी सतह पर निक्षेपित हो जाते हैं।

  • इसे विभिन्न स्थानों पर थूर, ऊसर, कल्लर, रेह, करेल, राँकड़, चोपन, नमकीन मिट्टी आदि नामों से जाना जाता है।
  • समुद्र तटीय क्षेत्रों में ज्वार के समय नमकीन जल भूमि पर फैल जाने से भी इस मृदा का निर्माण होता है।
  • प्रायः यह मिट्टी उर्वरता से रहित होती है जबकि जीवांश आदि नहीं मिलते है। ऐसी मृदा में नाइट्रोजन की कमी होती है।
  • यह एक अंतःक्षेत्रीय मिट्टी है, जिसका विस्तार सभी जलवायु प्रदेशों में पाया जाता है।
  • यह मिट्टी मुख्यतः दक्षिणी पंजाब, दक्षिणी हरियाणा, पश्चिमी राजस्थान, गंगा के बायें किनारे के क्षेत्र, केरल तट, सुंदरवन क्षेत्र सहित वैसे क्षेत्रों में भी पाई जाती है जहाँ सिंचाई के कारण जल स्तर ऊपर उठ गया है। यह एक अनुपजाऊ मृदा है।
  • तटीय क्षेत्रों में इस मृदा में नारियल एवं तेल ताड़ की कृषि की जाती है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख