इस ज्ञान को आश्रय करके अर्थात् धारण करके मेरे स्वरूप को प्राप्त हुए पुरुष सृष्टि के आदि में पुन: उत्पन्न नहीं होते और प्रलयकाल में भी व्याकुल नहीं होते ।।2।।
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Those who, by practicing this wisdom, have entered into my being are not born again at the cosmic dawn nor feel distrurbed even during the cosmic night. (2)
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